हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्त्ता
कल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायमूर्ति दतु साहब छत्तीसगढ़ आए थे. उन्होंने छत्तीसगढ़ में काम करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बात सुनना भी गवारा नहीं किया. उसके बाद न्यायमूर्ति महोदय ने पत्रकार वार्ता की और उसमें कहा कि ‘छत्तीसगढ़ में मानवाधिकार हनन के मामले सबसे कम है और अन्य राज्यों के मुकाबले छत्तीसगढ़ मानवाधिकार की रक्षा के मामले में सबसे अच्छा है.’
दतु साहब इस वक्त मोदी सरकार की खिदमत में हैं और छत्तीसगढ़ में मानवाधिकार के भयानक हनन के मामले भाजपा सरकार के दौरान ही हुए थे. दत्तू साहब अगर आपमें जरा भी गैरत बाकी है तो मेरे एक भी सवाल का जवाब देकर दिखाइए.
सुकमा जिले के सिंगारम गांव में 19 लड़के-लड़कियों को लाइन में खड़ा करके पुलिस ने गोली से उड़ा दिया और कहा यह माओवादियों के साथ मुठभेड़ थी. बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने माना कि वह मुठभेड़ फर्जी थी.
ताड़मेटला गांव में 5 महिलाओं से बलात्कार, 3 आदिवासियों की हत्या और 300 घर जलाए थे. सीबीआई ने जांच की और रिपोर्ट दी कि यह सब पुलिस ने किया था.
माटवाडा में पुलिस वालों ने 3 आदिवासियों की चाकू से आंखें निकालकर उनकी हत्या कर दी थी और इल्जाम माओवादियों पर लगा दिया था. लेकिन बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह हत्या पुलिस वालों ने ही की थी.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जांच करने के बाद यह भी पाया और अपनी रिपोर्ट में लिखा कि ’16 आदिवासी महिलाओं के पास प्राथमिक साक्ष्य मौजूद हैं कि उनके साथ सुरक्षा बल के सिपाहियों ने बलात्कार किया.’
सारकेगुड़ा में 17 आदिवासियों की सीआरपीएफ द्वारा हत्या करने के मामले में अभी जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘मारे गए लोग निर्दोष आदिवासी और बच्चे थे तथा सुरक्षा बलों ने जानबूझ कर उनकी हत्या की थी.
यह तो मैंने बहुत सारे मामलों में से चंद ही मामलों का यहां जिक्र किया है. क्या आप बता सकते हैं भारत के दूसरे किस राज्य में इतनी भयानक मानव अधिकार हनन की घटनाएं हुई है ? आपकी जुर्रत कैसे हुई यह बयान देने की कि ‘छत्तीसगढ़ में दूसरे राज्यों के मुकाबले मानवाधिकार हनन कम है ?’
आपको नरेंद्र मोदी की चाटुकारिता करनी है आप खूब मजे से कीजिए. आपको शायद अगली बार राज्यपाल पद का लालच होगा लेकिन हम लोग जिन्हें इस देश और इस देश की जनता से प्यार है, हम जनता के मानव अधिकारों तथा इस देश के संविधान और कानून की रक्षा के लिए अपनी जान देने, जेल जाने और अपनी जिंदगी बर्बाद कर के यह लड़ाई लड़ रहे हैं.
इस देश की जनता को एक अपराधी चरित्र के प्रधानमंत्री के तलवे चाटने वाला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नहीं चाहिए और ना ही चाहिए हमें आपका कोई सर्टिफिकेट. यदि आप में जरा भी नैतिक साहस है तो मुझसे टीवी पर सार्वजनिक चर्चा कीजिए.
अब उत्तर प्रदेश आते हैं. आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अजय बिष्ट मुख्यमंत्री बनने से पहले क्या करते थे ? उनका एक संगठन था जिसका नाम ‘हिंदू युवा वाहिनी’ था. इसका काम गुंडागर्दी करना अल्पसंख्यकों पर हमले करना तथा दंगे करना था. सैफरन टेरर नाम की डॉक्यूमेंट्री देखिए उसमें योगी आदित्यनाथ और हिंदू युवा वाहिनी के काले कारनामों की सारी पोल दिखाई गई है.
मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी के ऊपर बहुत सारे गुंडागर्दी और दंगे फसाद के आपराधिक केस थे. योगी ने मुख्यमंत्री बनते ही अपने सारे केस खत्म कर दिए. अब योगी मुसलमानों से एनआरसी विरोधी आंदोलन में भाग लेने के अपराध में जुर्माना वसूल रहा है और कह रहा है कि ‘आप लोगों ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.’
हमारे पास फोटोग्राफ, वीडियो और सारे डॉक्यूमेंट है, जिसमें हिंदू युवा वाहिनी ने भयानक आगजनी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था लेकिन योगी ने आज तक उसके बारे में कोई बात नहीं की.
गुंडों की एक खासियत होती है. गुंडों की अगर बात ना मानी जाए तो वे गुस्से से बुरी तरह पागल हो जाते हैं. गुंडों का लगता है कि इससे उनका रौब खत्म हो जाएगा इसलिए यूपी का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब किसी को जेल में डालता है और अगर वह व्यक्ति अदालत से जमानत लेकर बाहर आता है तो आदित्यनाथ बुरी तरह टूट चिढ़ जाता है और उसे दोबारा एनएसए लगा कर जेल में डाल देता है. चंद्रशेखर रावण के साथ भी योगी ने ऐसा ही किया था.
उसके बाद मैंने दिल्ली से सहारनपुर तक चंद्रशेखर रावण की रिहाई के पक्ष में और योगी के खिलाफ पदयात्रा की थी. तब भी मेरे चारों तरफ दिन में 20 – 20 पुलिस वाले घूमते रहते थे. अब योगी ने डॉक्टर कफील खान को जेल में डाला. कपिल खाल से योगी की पुरानी खुन्नस है.
गोरखपुर के अस्पताल में जब बच्चे बिना ऑक्सीजन के मर रहे थे, तब डॉक्टर कफील खान ने अपने पैसे से ऑक्सीजन सिलेंडर खरीद कर बच्चों की जान बचाई थी और योगी को दुनियाभर से फटकार मिली थी. उसके बाद योगी ने चिढ़कर डॉ. कफील खान को जेल में डाल दिया था.
अब फिर से डॉक्टर कफील खान को अलीगढ़ में एनआरसी खिलाफ भाषण देने के आरोप में जेल में डाल दिया लेकिन कोर्ट ने डॉ. कफील खान को जमानत दे दी.
योगी को लोकतंत्र की आदत तो है नहीं. उसे तो गुंडागर्दी की आदत है. योगी ने डॉ. कफील खान को रिहा नहीं किया. अदालत की बात नहीं मानी बल्कि उल्टे उनके ऊपर एनएसए लगा दिया. योगी के सामने अदालतों का कोई मतलब ही नहीं बचा.
पदयात्रा करने वाले लड़के-लड़कियों को योगी ने जेल में डाल दिया है. योगी की पुलिस ने मुसलमानों के घरों में घुसकर सामान तोड़ा और जला दिया है और मुसलमानों से ही उल्टा जुर्माना वसूला जा रहा है. यह मुल्क ऐसे गुंडे को कब तक बर्दाश्त करेगा ?
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