गिरीश मालवीय
मीलोर्ड को यह अच्छी तरह से मालूम है कि टेलिकॉम विभाग के अदने से डेस्क ऑफिसर की इतनी हिम्मत नहींं हो सकती कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कुंडली मार कर बैठ जाए, लेकिन सारा ठीकरा उस अदने से ऑफिसर पर फोड़ कर मीलोर्ड खुश है. मीलोर्ड कहते है ‘हमें नहीं मालूम कि कौन ये बेतुकी हरकतें कर रहा है, क्या देश में कोई कानून नहीं बचा है. बेहतर है कि इस देश में न रहा जाए और देश छोड़ दिया जाए. एक अधिकारी आदेश पर रोक लगाने की धृष्टता करता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट को ताला लगाकर बंद कर देना चाहिए. देश में जिस तरह से चीजें हो रही हैं, इससे हमारी अंतरआत्मा हिल गयी है.’
वैसे ये जानकर अच्छा लगा कि न्यायपालिका के पास अंतरात्मा नाम की कोई चीज बची हुई है ! कल इस निर्णय के बाद 23 जनवरी के बाद से ही बेहोश पड़े टेलीकॉम विभाग को अचानक से होश आया और उसने कल रात 12 बजे तक टेलीकॉम कंपनियों को बकाया देने की टाइम लाइन दे दी.
किसी कम्पनी ने पैसा जमा कराया हो ऐसी कोई खबर नही है. एयरटेल ने महज 10 हजार करोड़ जमा करने की सिर्फ बात ही की है जबकि उस पर 62,187.73 करोड़ रुपये बकाया है. इस बीच एयरटेल अब विदेशी स्वामित्व वाली कम्पनी भी बन गयी है इसलिए उसके इरादे भी नेक नजर नहींं आ रहे. 54,183.9 करोड़ रुपये बकाया वाले वोडाफोन-आइडिया ने तो पहले ही हाथ ऊंचे कर दिए थे. भारत में दी जाने वाली सर्विसेज अब कुछ चंद दिनों की मेहमान है, उसका दीवालिया घोषित होना अब तय है.
वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल के पास संयुक्त तौर पर 70 करोड़ से अधिक ग्राहक हैं. अगर एक भी कम्पनी बन्द होती है तो दूसरी कम्पनियांं इतने करोड़ लोगों को सही सर्विसेज इतनी जल्दी दे पाएगी, इसकी क्या गारण्टी है ? वह तो पहले से ही कॉल ड्राप नेटवर्क जाम से जूझ रही है !
वोडाफोन 2013 में देश में सबसे बड़ा एफडीआई देने वाली कंपनी थी. उसके इस तरह से दीवालिया हो जाने से दुनिया भर में जो भारत की छवि बनेगी, वह आपके ‘इज ऑफ बिजनेस डूइंग’ पर दी जा रही खोखली दलीलों की धज्जियां दुनिया भर में बिखेर देगी. बताइये ऐसे माहौल में कौन आपके यहां इंडस्ट्री लगाने की हिम्मत करेगा ?
इसके व्यापक प्रभावों का आकलन अभी सरकार शायद लगा नहीं पा रही है. वोडाफोन-आइडिया अगर बंद होती है तो उसके शेयरधारकों के इक्विटी निवेश पर करीब 1.68 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा. उससे जुड़े लाखों लोगों के रोजगार को तो आप छोड़ ही दीजिए, उसके बकाया कर्ज़ का क्या होगा ?
वोडाफोन-आइडिया में बैंकों का कुल ऋण इस साल मार्च के अंत में 1.25 लाख करोड़ रुपये था. टेलीकॉम सेक्टर में अकेले एसबीआई का 43 हजार करोड़ रुपये फंसा हुआ है. संकट से टेलीकॉम उद्योग पर अप्रत्याशित दबाव बढ़ेगा और यह उद्योग बरबाद हो जाएगा. इससे उद्योग में निवेश घट जाएगा, सेवाएं खराब हो सकती हैं, नौकरियां जा सकती हैं और दो ऑपरेटरों से सरकार को मिलने वाला सालाना 60,000 करोड़ रुपये का राजस्व भी खतरे में पड़ जाएगा.
पूरे टेलीकॉम सेक्टर पर कुल 7.88 लाख करोड़ रुपये का भारी भरकम कर्ज है, इसमें से भारतीय कर्ज कुल 1.77 लाख करोड़ रुपये, विदेशी कर्ज 83,918 करोड़ रुपये और कुल बैंक/एफआई कर्ज 2.61 लाख करोड़ रुपये है. बैंक गारंटी 50,000 करोड़ रुपये है. दूरसंचार विभाग की डेफर्ड स्पेक्ट्रम लायबिलिटीज 2.95 लाख करोड़ रुपये है. यह संसद में दी गयी जानकारी है.
यह तो तय है कि वोडाफोन-आइडिया बकाया नहीं चुकाएगी, उसके बहाने से एयरटेल भी इस से बचने का प्रयास करेगी. क्या मोदी सरकार को इस संकट का हल निकालने के लिए शुरू से ही कोई प्रयास नहीं करने चाहिए थे ? लेकिन उनके मंत्रियों की सारी ऊर्जा तो जहरीले बयान देने में खर्च हो जाती है, उन्हें देश की इकनॉमी की कोई फिक्र कहां है ! सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि भारत में NPA के बोझ से दबी हुई बैंकेंं क्या इन बड़े डिफाल्टर का बोझ उठा पाएगी ? 2020 इकनॉमी के डिजास्टर का साल है. लिख कर रख लीजिए.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश राहुल चतुर्वेदी को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है. न्यायमूर्ति चतुर्वेदी वही है जिन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता चिन्मयानंद को यूपी के शाहजहांपुर में एक लॉ-कॉलेज की छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोप में जमानत दी थी. न्यायाधीश ने शिकायतकर्ता के आचरण को ‘हैरान करने वाला’ बताया था और कहा था कि उसने ‘फिरौती के लिए आरोपी को ब्लैकमेल करने की कोशिश की.’
साफ है कि सत्ताधारी दल के लोगो की मदद करते जाओ और तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते जाओ, यही अब हमारी न्यायपालिका का चरित्र नजर आ रहा है. कुछ महीने पहले इसी सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस विजया के. ताहिलरमानी का मेघालय हाईकोर्ट में तबादला करने की सिफारिश की थी. इसके विरोध में महिला जज तहिलरमानी ने इस्तीफा दे दिया.
बंबई हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के पद पर काम करते हुये जस्टिस ताहिलरमानी ने मई, 2017 में बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में सभी 11 व्यक्तियों की दोषसिद्धि और उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा था. जाहिर है ये फैसला सत्ताधारी दल को बिल्कुल पसंद नही आया था इसलिए उनको मेघालय कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया.
कुछ ऐसा ही किस्सा बॉम्बे हाइकोर्ट में कार्यरत न्यायाधीश जस्टिस अकील अब्दुलहमीद कुरैशी का है, जिन्हें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नति करने की कॉलेजियम की सिफारिश को केंद्र सरकार रोक कर बैठ गयी लेकिन कोलेजियम ने इसके लिए कोई नही आवाज उठाई. जस्टिस कुरैशी वही जज है जिन्होंने 2010 में वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में दो दिनों की पुलिस हिरासत में भेजा था. कोलेजियम में शामिल जब ऐसे जज पूछते हैं कि ‘क्या देश में कोई कानून बचा है?’ तो बॉय गॉड बड़ा बुरा फील होता है
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