Home युद्ध विज्ञान सेना, अर्ध-सेना एवं पुलिस, काॅरपोरेट घरानों का संगठित अपराधी और हत्यारों का गिरोह मात्र है

सेना, अर्ध-सेना एवं पुलिस, काॅरपोरेट घरानों का संगठित अपराधी और हत्यारों का गिरोह मात्र है

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पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त कार्रवाई में मारे गए मोतीलाल बास्के (बाएं)
मधुबन में आयोजित मारांड. बुरु बाहा पोरोब नाम के समारोह में मोतीलाल को विधि व्यवस्था बनाए जाने का आईकार्ड (दाएं)

कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित बातों-बातों में जब सेना अध्यक्ष विपिन रावत की तुलना ‘‘सड़क के गुण्डे’’ से करते हैं तो यह अनायास नहीं है कि शासक वर्ग में भूचाल मच जाता है. यह सेना के चरित्र पर एक वेबाक टिप्पणी है जो शासक वर्ग के ही एक प्रतिनिधि के माध्यम से एकाएक उजागर हो गई. बहरहाल संदीप दीक्षित ने तो माफी मांग ली पर यह सेना के चरित्र का बूखबी चित्रण कर गया.

सेना अध्यक्ष विपिन रावत पत्रकार वार्ता के दौरान जब यह घोषणा करते हैं कि ‘‘लोगों में सेना का भय खत्म होने पर देश का विनाश हो जाता है. विरोधियों के साथ आपके लोगों में भी सेना का डर होना चाहिए’’, तो यह भी अनायास नहीं है.

दोनों के बयान एक साथ जोड़ कर देखें तो यह साफ दर्शाता है कि सेना, अर्द्ध-सेना और पुलिस ये सब संगठित अपराधियों और हत्यारों का एक समूह मात्र है, जिसका काम देश के लोगों को आतंक से भर देना है. लोगों की हत्यायें करना और उसकी जर-जोरू और जमीन छीन कर सरकार और उसके आका काॅरपोरेट घरानों के खजानों को भर देना है. यहीं नहीं, सेना स्वयं अपने आम सैनिकों का भी सम्मान नहीं करती, यह इन दिनों सैनिकों के सोशल मीडिया पर लगातार आये विडियों और बयानों से स्पष्ट है.

देश के नागरिक जब इन संगठिक आपराधिक और हत्यारों के समूह सेना, अर्द्ध-सेना और पुलिस से अपने जर-जोरू और जमीन को बचाने के लिए आवाज उठाते हैं तो हत्यारों के ये समूह बेहिचक गोली चलाती है और उनकी हत्या करती है. यह प्रकरण देश के तमाम हिस्सों में आये दिन बखूबी देखी जा सकती है. चाहे वह मणिपुर हो या आसाम, चाहे काश्मीर, चाहे बस्तर, चाहे झारखण्ड या बिहार हो. भारत के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक जहां भी नजर दौरा लिजिये, इन अपराधिक समूहों का आतंक सहज ही दीख जाता है. कभी माओवादियों तो कभी आतंकवादियों के नाम पर. कभी आसामाजिक तत्व के नाम पर तो कभी आतंकवादियों के नाम पर. यहां तक कि दलितों-पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं के नाम पर भी.

देश के ही नागरिकों की हत्या कर जानवरों की तरह शवों को टांगकर ले जाते 

आंकड़े के अनुसार भारत में 1995 से लेकर 2016 ई. तक लगभग 3.23 लाख किसानों ने आत्महत्या की है जबकि आतंकवाद से 2001 से 2012 के बीच महज लगभग 10 हजार मौतें हुई. इसके अलावे भूख, बीमारी, सड़क दुर्घटना, रेल हादसा आदि के जरिये लाखों लोग मौत के घात उतार दिये गये हैं, इसके वाबजूद हमारी सरकार आतंकवाद को देश की प्रमुख समस्या बता कर देश के अन्दर सेना और अर्द्धसैनिक बलों का बड़े पैमाने पर सीमा के बजाय देश के अन्दर आम नागरिकों को डराने में इस्तेमाल करती है. यह महज संयोग नहीं हो सकता.

देश के सामने आज सबसे बड़ा खतरा पाकिस्तान और चीन के बजाय भय-भूख और अशिक्षा से है. देश की सरकारों को इसीलिए चुना जाता है कि वह इन समस्याओं से देश को निजात दिलाये. इसके बावजूद देश की तमाम सरकारों के लिए इस असली मुद्दों का कोई महत्व नहीं रह जाता. वह काॅरपोरेट घरानों और साम्राज्यवादी घरानों के हितों खातिर अपने ही देश के नागरिक की हत्या करने पर उतारू हो है. वह अपने ही छात्रों-नौजवानों को देशद्रोही बनाकर जेलों में ठूंस रही है. अपने ही किसानों को गोलियों से निशाना बना रही है.

सरकार होने और चुनने का अगर यही मायने और मतलब है तो चुनाव कराने और सरकार बनाने की जरूरत ही क्या है ? जब देश की जनता लगातार भय-भूख और अशिक्षा के साये में जीने को मजबूर हो तब इस सरकार और सेना पर भारी भरकम धनराशि खर्च करने की क्या जरूरत है ? ‘लोकतंत्रिक’ कहलाने की क्या जरूरत है ? किसी दिखावे की क्या जरूरत है ?

जरूरी है कि आज सेना के चरित्र और उसकी उपयोगिता पर बहस हो ताकि देश और सेना के जवान खुद इस सेना, अर्द्ध-सेना और पुलिस की उपयोगिता को समझ सके. देश ही सेना, अर्द्ध-सेना और पुलिस का निर्माण करती है, वह उससे कतई नहीं डरती, यह बात सेना, अर्द्ध-सेना और पुलिस को समझ लेनी चाहिए. जो सेना जनता को डराने लगे तो समझ लो वह सेना विनाश का कारण बनती है. देश गृहयुद्ध के कगार पर खड़ी हो जाती है. क्या विपिन रावत यही कहना चाहते हैं ?

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2 Comments

  1. S. Chatterjee

    June 16, 2017 at 1:26 pm

    It’s not only insensitive for the army Chief to make such irresponsible statement, it’s also a reflection on the imperialistic mindset of our ruling class.

    Reply

  2. Buhedife

    July 18, 2017 at 3:21 am

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