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स्कूलों को बंद करती केन्द्र की सरकार

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स्कूलों को बंद करती केन्द्र की सरकार

भारत की केन्द्रीय सरकार ने भारतवासी को अशिक्षित बनाने की पूरी तैयारी कर ली है. आरएसएस की एजेंट यह केन्द्रीय मोदी सरकार शिक्षा को हानिकारक मानती है इसीलिए वह एक के बाद सरकारी स्कूलों को बंद करने का पूरे देश में एक अभियान चलाये हुए है, जो संविधान प्रदत्त शिक्षा के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. शिक्षा के खिलाफ इस मिशन में भाजपा और कांग्रेस दोनों तकरीबन एक समान है. परन्तु, भाजपा जहां आरएसएस के एजेंडे को लागू करना अपना लक्ष्य घोषित कर चुकी है, जिसमें मनुस्मृति के अनुसार शुद्रों को शिक्षा से वंचित कर उसे महज एक दास की अवस्था में धकेल देना है. मनुस्मृति के अनुसार शुद्र केवल ब्राह्मणों की सेवा करने के लिए ही जन्म लिये हैं. शुद्रों की इस परिभाषा के अनुसार दलित, पिछड़ा, आदिवासी व अन्य धर्माबलम्बी के लोग हैं, जिसकी संख्या वर्तमान भारत में करोड़ों है.

शिक्षा के खिलाफ चलाये जा रहे संघी एजेंट भाजपा पिछले 6 वर्षों में कितनी दुर्दशा कर दी है, इसके कुछ आंकड़े पेश करता हूं. एक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूलें लगातार बंद की जा रही हैं. लोकसभा में पेश एक आंकड़े के अनुसार सत्र 2014-15 से सत्र 2018-19 के बीच छत्तीसगढ़ में 2 हजार 811 शासकीय प्राथमिक स्कूलों में स्थाई रूप से ताला लगा दिया गया है. एक सवाल के जवाब में लोकसभा में ये चैंकाने वाले आंकड़े पेश किए गए हैं. लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक सत्र 2014-15 में प्रदेश में 35 हजार 149 प्राथमिक स्कूल थे, जो 2018-19 में घटकर 32 हजार 811 ही बच गये.

लोकसभा में मानव संसाधन व विकास मंत्री की ओर से स्कूलों की संख्या को लेकर आंकड़े पेश किए गए हैं. इसमें बताया गया है कि सत्र 2014-15 में प्रदेश में 35 हजार 149 प्राथमिक स्कूल थे. इसके बाद सत्र 2015 -16 में इनकी संख्या 32 हजार 826 हो गई. इसके बाद सत्र 2016-17 में संख्या थोड़ी बढ़ी और 2551 हो गई. फिर 2017-18 में संख्या और बढ़ी और 33 हजार 208 हो गई, लेकिन इसके बाद 2018-19 में स्कूलों की संख्या में फिर कमी हुई और संख्या घटकर 32 हजार 811 रह गई. ये प्राथमिक स्कूलों के आंकड़े थे, वहीं प्रदेश में माध्यमिक स्कूलों की संख्या को लेकर भी लोकसभा में आंकड़े पेश किए गए हैं. इसमें बताया गया है कि सत्र 2014-15 में प्रदेश में 2 हजार 521 प्राथमिक स्कूल थे. इसके बाद सत्र-2015 -16 में इनकी संख्या 2 हजार 465 हो गई. फिर सत्र- 2016-17 में संख्या थोड़ी बढ़ी और 2 हजार 551 हो गई. इसके बाद 2017-18 में संख्या और 4 हजार 136 और 2018-19 में माध्यमिक स्कूलों की संख्या घटकर 2 हजार 702 रह गई.

इसी तरह पिछले कई दशकों से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा के शासनकाल में 5315 स्कूलों को बंद करने की कोशिश की जा रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर छपी है. कपिल दवे की 7 जनवरी, 2019 की इस रिपोर्ट के अनुसार गुजरात में 32,772 सरकारी स्कूल हैं. इनमें से 12000 स्कूलों में एक या दो ही शिक्षक हैं. सोचिए एक तिहाई से ज्यादा 37 प्रतिशत स्कूल 1 या दो शिक्षक से चल रहे हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार 20 प्रतिशत स्कूलों में मात्र 51 छात्र हैं. क्या यह समझा जाए कि इन स्कूलों की गुणवत्ता इतनी खराब है कि गुजरात के माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजना ही नहीं चाहते हैं ? गुजरात के सरकारी स्कूलों में 90 लाख छात्र पढ़ते हैं. शिक्षक नहीं होने की कमी शिक्षक की भरती से पूरी होनी थी तो सरकार ने तरीका निकाला कि स्कूलों का विलय कर दिया जाए. इंडियन एक्सप्रेस की रितु शर्मा की 17 अगस्त, 2019 की रिपोर्ट. राज्य के 33000 प्राइमरी स्कूलों में से करीब 20,000 स्कूलों में 50 से 100 छात्र हैं. फैसला किया गया है कि अलग-अलग चरणों में ढाई से तीन हजार स्कूलों का विलय कर दिया जाएगा.

एक रिपोर्ट हरियाणा से आई है. हरियाणा में 25 से कम स्टूडेंट्स वाले 1026 प्राइमरी स्कूल बंद करने की तैयारी है, जिसे अगले सत्र से बंद किया जायेगा. दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार कम होने से अब इन पर ताले लगाने की नौबत आ गई है. विभाग की ओर से अब अगले सत्र से 1026 प्राइमरी स्कूलों को बंद करने की तैयारी कर ली है.गौरतलब है कि बंद होने वालों में सबसे ज्यादा पूर्व शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा के गृहजिले महेंद्रगढ़ के 122 स्कूल हैं. निदेशालय की ओर से कहा गया है कि इन छात्रों को करीबी स्कूलों में समायोजित यानी विलय किया जाना है.

राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष तरुण सुहाग बच्चों की संख्या कम होने में शिक्षकों की कमी नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री बयान दे रहे हैं कि प्राइवेट स्कूल की ओर से सरकारी स्कूल को गोद लिया जाए जबकि इसके उलट होना चाहिए था. बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी सरकार की है. उनका कहना है कि शिक्षकों को इतने गैर-शैक्षणिक कार्य दे दिए जाते हैं कि वे पढ़ाई का पूरा काम तो नहीं करा पा रहे. बच्चों की संख्या कम होने की बड़ी वजह सरकार की कमी है. तरूण सुहाग को संभवतः यह नहीं पता है कि अब सरकार की प्राथमिकता बदल गई है. शिक्षा देना अब सरकार की मौलिक जिम्मेवारी नहीं रही. उसकी सबसे बड़ी जिम्मेवारी है देश की बहुसंख्यक आबादी को शिक्षा से जितना संभव हो सके, दूर किया जाये.

आंकड़ों के मुताबिक झारखंड के 4532 स्कूलों के विलय होने के बाद से प्राइवेट स्कूलों का कारोबार काफी बढ़ गया है. स्कूलों के विलय के बाद सूबे में 2305 प्राइवेट स्कूल खोले जा चुके हैं. गौरतलब है कि स्कूलों में विलय की योजना के तहत जमशेदपुर में सर्वाधिक 393 स्कूलों को विलय किया गया है, जबकि दूसरे नंबर पर कोडरमा में 81 स्कूलों का विलय किया गया है. पिछले एक-दो सालों में सरकार ने सरकारी स्कूलों में बच्चों की कमी बताते हुए स्कूलों का विलय कराया. विलय के बाद करीब 3700 सरकारी स्कूल बंद हो गये.  एक ओर सरकारी स्कूलों में कम बच्चों का हवाला देते हुए सरकार स्कूलों का विलय कर रही है, वहीं दूसरी ओर शिक्षकों को हाईटेक बनाने के नाम पर पैसे खर्च किए जा रहे हैं.

देश के सबसे बड़े राजनैतिक सूबे उत्तर प्रदेश, जहां योगी आदित्यनाथ के असीम कृपा से राम राज्य आ चुका है में शिक्षा की स्थिति और भी बदतर है. हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 17,602 ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जहां सिर्फ एक ही शिक्षक मौजूद है. प्राथमिक शिक्षा के लिए चलाई जा रही अनेक ‘महत्वाकांक्षी’ योजनाओं के बावजूद उत्तर प्रदेश में पिछले एक साल में में ही 23 लाख बच्चे स्कूल से बेदखल हो गये हैं.

देश के विभिन्न राज्यों से आई ये चंद रिपोर्टे हैं, जो बताती है कि केन्द्र की भाजपा सरकार अपने पिछले 6 सालों के शासनकाल में किस कदर देश की विशाल आबादी से शिक्षा से दूर करने के लिए स्कूलों को बंद कर रही है. क्या स्कूलों को बंद कर देने और शिक्षा का निजीकरण कर देने भारत विश्व गुरू बन सकता है ? बिना स्कूलों के विश्वगुरू बनना महज ख्यालीपुलाव है, असली उद्देश्य तो यही है कि देश की महज चंद लोगों को ही शिक्षित बनाना है, शेष को अनपढ़-अशिक्षित रखकर उसे गुलाम (दास) बनाकर रखना है.

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