दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक चीज जो पूरी तरह स्पष्ट हो गया वह है आम आदमी पार्टी के खिलाफ भाजपा और दूसरी अन्य पार्टियों के पास अरविन्द केजरीवाल सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं है. उसके जुमलों की खेती अब पूरी तरह चुक गई है. केन्द्र की मोदी सरकार अपनी आजमायी हुई आतंकवाद के सहारे दिल्ली विधानसभा चुनाव की बैतरणी पार करना चाह रही थी. इसके लिए वह और उसकी दलाल मीडिया पूरी सिद्धत से प्रचार-प्रसार में जुट भी गई थी, परन्तु कश्मीर में दविन्दर सिंह और उसके साथ दिल्ली आने की यात्रा कर रहे आतंकवादियों की गिरफ्तारी से केन्द्र की मोदी-शाह की सरकार हताश हो गई. उसकी पालतू मीडिया के जुबान पर ताला लग गया क्योंकि दिल्ली आकर बम-विस्फोट को अंजाम देकर दिल्ली के नागरिकों को दहशत में भर देने की साजिश नाकाम हो गई.
अब जब दिल्ली विधानसभा चुनाव में आतंकवाद का सहारा खत्म हो गया है तब वह अरविन्द केजरीवाल सरकार के मुफ्त शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, पानी, महिलाओं की यात्रा जैसी अनेक योजनाओं पर ही हमले शुरू कर दिया है. आश्चर्यजनक तो यह है कि जो भाजपा अपने विधायकों, सांसदों वगैरह को मुफ्त में दी जा रही सुविधाओं को बढ़ा रही है, वहीं वह आम जनता की बुनियादी सुविधाओं को केजरीवाल सरकार के द्वारा मुफ्त में दिये जाने को देशद्रोह की संज्ञा से नवाज रही है, जैसा कि होना ही था, दिल्ली की जनता केन्द्र सरकार के द्वारा मुफ्त सुविधाओं पर किये जा रहे इन आरोपों का जवाब हंस कर देती है. परिणातः यह आरोप भी टांय-टांय फिस्स हो गई है.
अब मोदी-शाह की सरकार के सामने एकमात्र रास्ता बचा है हिंसक नारों को लगा कर दिल्ली की जनता को भयभीत करने का. यानी दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान वह हिंसक नारे लगाकर दिल्ली और देश की जनता को डराना चाह रही है. मसलन, वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को’ जैसा हिंसक नारे मंच से लगवाते हैं. प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकत्र्ता हिमांशु कुमार इस नारे के सम्बन्ध में बताते हैं –
दिल्ली के चुनाव प्रचार में भाजपा के मंत्री मंच से नारे लगवा रहे हैं कि देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को. चलिए थोड़ी देर के लिए हम इस बात से सहमत हो जाते हैं, अगर देश में हर देशभक्त को यह अधिकार दे दिया जाता है कि वह जिसे गद्दार समझे, उसे गोली मार दे तो क्या होगा ?
मान लीजिए आप यह मानते हैं कि जो सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहा है, वह गद्दार है और उसे गोली से उड़ा दिया जाना चाहिए. लेकिन दूसरा व्यक्ति सोच रहा है कि सीएए और एनआरसी भारत के संविधान के विरुद्ध बनाए गए कानून है और इस कानून का समर्थन करने वाले लोग संविधान के खिलाफ है, इसलिए देशद्रोही हैं. अब इन दोनों में कौन किस को गोली मार सकता है ? क्योंकि दोनों ही एक दूसरे को देशद्रोही समझ रहे हैं ?
इसी तरह तरह से मैं मानता हूं कि आदिवासी दलित अल्पसंख्यक गरीब किसान मजदूर ही असल में देश है इसलिए आदिवासी की जमीन छीनकर पूंजीपतियों को देने वाला नेता और वह पूंजीपति जो अपने मुनाफे के लिए लाखों लोगों की जमीन छीनकर उन्हें बेजमीन बना देता है और गरीबी और भुखमरी में धकेल कर उन्हें मार डालता है, वह देशद्रोही है. लेकिन आप मानते हैं कि आपका नेता और वह पूंजीपति मिलकर देश का विकास कर रहे हैं इसलिए आप के नेता और पूंजीपति का विरोध करने वाले देशद्रोही हैं, तो दोनों लोग एक दूसरे को देशद्रोही समझ रहे हैं.
आपकी नजर में नेता और पूंजीपति का विरोध करने वाला देशद्रोही है और सामने वाले की नजर में नेता और पूंजीपति का समर्थन करने वाला देशद्रोही है तो दोनों में से कौन किस को गोली मार सकता है ? किस का फैसला सही माना जाए ? किसकी समझ सही मानी जाए ?
क्या आप सोचते हैं कि गोली मारने का अधिकार सिर्फ सत्ता में बैठे लोगों को होना चाहिए ? वह जिसे चाहे देशद्रोही घोषित कर दें और उसे गोली मार दें ? तो लोकतंत्र में सत्ता आज अगर आपके पास है तो हो सकता है कल आपके हाथ से सत्ता चली जाय और जो आप के विपक्ष में है, कल को सत्ता पर भी आ सकते हैं तो वे आप को देशद्रोही कहकर अगर गोली से उड़ा दे तो क्या आप उसका समर्थन करेंगे ? और अगर देश में सब एक दूसरे को गोली मार सकते हैं तो फिर पुलिस, सेना, अदालत और सरकार की क्या जरूरत है ? सब लोग आपस में ही एक दूसरे को गोलियां मार मार कर, सही गलत का फैसला कर लेंगे.
मुझे आपकी दुकान पर कब्जा करना है मैं बोलूंगा आप देशद्रोही हैं. आप को गोली मारकर आपकी दुकान पर कब्जा कर लूंगा. आपकी नजर मेरी बेटी पर होगी, आप कहेंगे मैं देशद्रोही हूं आप मुझे गोली मारेंगे मेरी बेटी को उठाकर ले जाएंगे. पूरे देश में लोग एक दूसरे को गोलियां मार-मार कर समाज शांति भाईचारा कानून संविधान लोकतंत्र सब कुछ नष्ट कर देंगे. क्या सत्ता में बैठे हुए लोग इस तरह का भारत बनाना चाहते हैं ?
यह बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है जब देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री देश को अहिंसा का पाठ पढ़ाते हैं, वहीं उसके मंत्री और कार्यकत्र्ता देश में हिंसक नारों और गतिविधियों के सहारे देश की जनता को डराना चाह रहे हैं. ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आखिर अहिंसा का पाठ आखिर किसको पढ़ाना चाह रहे हैं ? यह कभी संभव नहीं है कि सत्ता से जुड़े हुए लोग तो हिंसा करते रहे, लोगों की हत्यायें करते रहे और देश की जनता मरते रहे हैं, अहिंसा का पाठ पढ़ते रहे और अपने बेटे-बेटियों व अपने पिताओं-माताओं को मौत की घात उतरते देखते रहे.
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