आदिवासी समाज vs विकसित समाज
हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता
क्या मनुष्य मूल रूप से स्वार्थी और क्रूर है ? कभी हम सब आदिवासी थे. और अगर आप आदिवासी समाज को देखें तो आप समझ जायेंगे कि मनुष्य मूल रूप से समाज के साथ मिल कर रहने वाला प्राणी है. आदिवासी समाजों में सभी व्यक्ति समाज का ख्याल रखते हैं और समाज व्यक्तियों का ख्याल रखता है. आदिवासी समाज में बूढ़े, बीमार, विकलांग सभी का ख्याल रखा जाता है.
आदिवासी समाजों में प्रकृति का कोई व्यक्ति मालिक नहीं माना जाता. आदिवासी समाजों में जंगल नदी पहाड़ सबके सांझे होते हैं. आदिवासी समाजों में कोई समाज को छोड़ कर अकेले अमीर बन जाने का सोचता भी नहीं है. फिर ये विकसित समाज में मनुष्य ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ?
विकसित समाज में क्यों मनुष्य सब को पीछे छोड़ कर सबसे आगे निकलना चाहता है ? विकसित समाज में क्यों मनुष्य सारे संसाधनों का अकेले मालिक बन जाना चाहता है ? विकसित समाज में क्यों आप सारी दुनिया के अकेले मालिक बन जाना चाहते हैं ?
याद कीजिये आप को स्कूल में क्या सिखाया जाता है ? यही ना कि आपको सबसे ज़्यादा नम्बर लाने चाहिये. यही ना कि अपने बराबर में बैठे हुए बच्चे से बात मत करो. आपको समझाया गया कि आपका दोस्त असल में आपका प्रतिद्वंदी है.
आपकी शिक्षा ने समझाया कि अच्छी तरह पढ़ाई करने का नतीजा यह होगा कि इस शिक्षा को पाने के बाद आप दूसरों से ज़्यादा अमीर बन सकोगे. आपको पढ़ाया गया कि मुनाफा कमाना अच्छी बात होती है. आपको पढ़ाया गया कि अमीर बनना ही जिंदगी का एक मात्र मकसद है.
आपको समाज का दुश्मन बनाने का काम आपकी शिक्षा ने किया. आपको अपने दोस्त को अपना प्रतिद्वंदी मानने की समझ आपकी शिक्षा ने दी. आपकी शिक्षा को कौन बनाता है ? आप नौकरी के लिए पढते हैं ना ? नौकरी उद्योगपति सेठ और अमीर के पास है ना ?
उद्योगपति सेठ और अमीर तय करते हैं कि उन्हें स्कूल कालेजों से कैसे लोग चाहियें ? आपको वह पढ़ाया जाता है जो उद्योगपति सेठ और अमीर चाहते हैं. उद्योगपति सेठ और अमीर की बनाई हुई शिक्षा पाकर आप एक स्वार्थी लालची और आत्मकेंद्रित अकेले व्यक्ति बन जाते हैं. अब आप सारे समाज से अलग अकेले खड़े हैं.
अब उद्योगपति सेठ और अमीर के लिए आपको गुलाम बनाना आसान है. अब जब उद्योगपति सेठ और अमीर आदिवासियों की ज़मीने छीनेगे तो आप अपने स्वार्थ के लिए चुप रहेंगे. आपको पता है कि जब ज़मीने छीने जायेंगी तभी तो कारखाने चलेंगे. तभी तो आपको उद्योगपति सेठ और अमीर के यहां नौकरी मिलेगी.
अब आप समाज के खिलाफ़ काम करने वाले एक स्वार्थी और क्रूर व्यक्ति बन जाते हैं. आपकी राजनीति उसी उद्योगपति सेठ और अमीर के लिए काम करती है. आपकी पुलिस आपके अर्ध सैनिक बल आपकी सेना उसी उद्योगपति सेठ और अमीर के लिए काम करते है. आपकी पूरी अर्थव्यवस्था अब उसी उद्योगपति सेठ और अमीर के मुताबिक़ चलती है.
अब आप उस अर्थव्यवस्था, उस राजनीति, उस शिक्षा पद्धति के एक उत्पादित माल हो. आपको अब उसी उद्योगपति सेठ और अमीर के लिए ही इस्तेमाल होना है. इस राजनीति, इस शिक्षा पद्धति, इस अर्थव्यवस्था ने आपको क्रूर स्वार्थी और मूर्ख बना दिया है.
इस पूरी व्यवस्था में मनुष्य के भीतर छिपे हुए सौंदर्य प्रेम कला और उसके उज्जवल पक्ष के विकास की कोई संभावना नहीं है. इस व्यवस्था में पैदा होने वाले बच्चे क्रूर और हत्यारों को अपना नेता और
भाग्य विधाता स्वीकार कर लेते हैं. आज़ादी के बाद भारत एक दिन इस मोड़ पर खड़ा होगा किसने कल्पना की होगी ?
यह मानवता के विकास का अब तक का सबसे अन्धकार युक्त समय है लेकिन यह इस अंधेरे से बाहर निकलने के प्रयत्न का भी अवसर देता है. आइये लोगों को इस अंधेरे का एहसास कराएं ताकि वह इस अंधेरे से निकलने की कोशिशों का हिस्सा बन जाए.
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