गुरूचरण सिंह
ब्लैक एंड वाइट के दौर में एक फिल्म देखी थी तूफान और दिया. इस दौर के लोगों के जीवन और राजनीति के भी दो ही रंग थे – अच्छा और बुरा. अब तो दोनों में ही अंतहीन रंगों की इतनी मिलावट हो गई कि आंखें कभी-कभार ही सूर्य की रोशनी में चीज़ों को पहचानने की कोशिश करती हैं, वरना तो वे घर के कमरे, दफ्तर, मॉल आदि की बनावटी रोशनी में दुनियां को देखने की आदि हो चुकी हैं. ऐसे में उन पर किसी भी खास तरह की विचारधारा के चश्में चढ़ाना आसान हो जाता है, घरों में घुसे नियंत्रित मीडिया के लिए !
खैर, उसी फिल्म का एक गीत है मन्ना डे का गाया हुआ :
“निर्बल से लड़ाई बलवान की,
यह कहानी है दीये की और तूफ़ान की “
सत्ता के नशे में चूर हर हकूमत यही सोचती है कि उसकी ताकत के तूफान के आगे कब तक जलता रहेगा आंख दिखाने वाला यह दिया ! बस हवा का एक तेज झोका और उसकी कहानी खत्म ! भूल जाती है वह कैसे एक दिए से दूसरा दिया जल उठता है, एक गिरता है तो दूसरा फौरन उसकी जगह ले लेता है ! ऐसा ही हो रहा है नागरिकता कानून के पक्ष और विपक्ष को लेकर भी.
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख दिलीप घोष ने कहा है कि मुसलमान घुसपैठियों की पहचान की जाएगी और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें भारत से बाहर खदेड़ दिया जाएगा. दिलीप घोष ने कहा, ”जो लोग सीएए का विरोध कर रहे हैं, वो या तो भारत विरोधी है या बंगाली विरोधी हैं. तभी तो ये लोग हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने का विरोध कर रहे हैं.’
लेकिन दिलीप बाबू यह नहीं बताते कि ऐसा होगा कैसे ? लगभग छः साल हो गए हैं भाजपा को सत्ता में आए हुए ! इस अवधि में कितने घुसपैठियों की पहचान करके बांग्लादेश भेजा गया ? एक को भी नहीं दिलीप बाबू, ये बाजू हमारे आजमाए हुए हैं. हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने का विरोध किया किसने है ? कितनों को दी केंद्र सरकार ने नागरिकता ? पिछली सरकार ने बिना शोर मचाए, मौजूदा कानून के तहत ही कर दिया था ऐसा. अगर बहुसंख्यक समुदाय को गोलबंद करना ही अगर मकसद हो इस नए कानून का तो फिर विरोध तो होगा ही उसका. कानूनी चुनौती भी पेश की जाएगी जैसा केरल सरकार ने किया है, भले ही यह विषय केंद्रीय सूची में शामिल है.
मध्य प्रदेश से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि राज्य सरकार अनुच्छेद 32 के तहत केंद्र के क़ानून को चुनौती दे सकती है. मौलिक अधिकार से जुड़ा अनुच्छेद है यह जिसके उल्लंघन पर कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया जा सकता है लेकिन केरल सरकार ने अनुच्छेद 131 के तहत कोर्ट में गुहार लगाई है, जिसके तहत राज्य सरकार केंद्र सरकार के खिलाफ किसी भी क्वेश्चन ऑफ़ फैक्ट और क्वेश्चन ऑफ़ लॉ पर क़ानूनी अधिकार का मौजूदगी या अधिकारिता पर विवाद हो.
इस बीच दिल्ली में रासुका लगा दिया गया है. रसुका यानि पुलिस को असीमित अधिकार किसी को भी शक की बिना पर महीनों महीने जेल में बंद रखने की. कोई वकील नहीं, कोई दलील नहीं, अपील नहीं ! ये सब बाद में देखा जाएगा, पहले जरा आतंकवादी होने का ठप्पा लगा कर ऐसे ही तो बन्द किया जाता था. यह राह भी इंदिरा गांधी ने दिखाई थी. लगाने की वजह भले ही गणतंत्र दिवस परेड और उससे जुड़े समारोह हों, समय सीमा तो यही संकेत दे रही है कि असल निशाना शाहीनबाग में चल रहा धरना-प्रदर्शन है. इतने भारी सुरक्षा इंतजाम के साथ लोकतंत्र का यह पर्व मनाए जाने की उपादेयता ही कहां रह गई है बदले हालत में. न तो जन ही रहा है और आम जन के अभाव में गण तो होने का सवाल ही पैदा नहीं होता और जब दोनों नहीं हैं तो मन भी निश्चित ही नहीं होगा. ले दे कर अधिनायक है, जिसने परेड का सैल्यूट लेने के लिए अपने एक मुखौटा आगे कर रखा है.
शाहीनबाग जैसा ही धरना लखनऊ में भी शुरू हो गया है. इसी के साथ धरने में भाग लेने वाली लड़कियों से पुलिस के अमानुषिक व्यवहार की खबरें और वीडियो भी सामने आने लगे हैं. दिए से दिया ऐसे ही तो जलता है !! आज मंडी हाउस, (दिल्ली), इंदिरा पार्क (हैदराबाद), FTII (पुणे) शास्त्री घाट (वाराणसी) और सुभाष चौराहा (इलाहाबाद) में भी प्रदर्शन किया जा रहा है.
हिंदुत्व के नए पैरोकार भले ही कुछ भी क्यों न कहें, सच्चाई यही है कि हिंदू न तो किसी औरंगज़ेब की तलवार के कारण घटा है और न ही ईसाई मिशनरियों के धर्म प्रचार से. हालांकि यह भी सच नहीं है फिर भी अगर हिंदू घटा है तो उसकी वजह कुलीनों का पाखंड और छुआछात है. मध्यकालीन संतों का खुला विद्रोह सबूत है इस बात का ! जब जब भी पंडों के रोज़गार पर बात आती है तो हिंदू धर्म को ख़तरा होने लगता है. अपनी लूट को छिपाने के लिए औरंगज़ेब की कौम को सामने खड़ा कर देते हैं.
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