गुरूचरण सिंह
एक थी मादी शर्मा जिसने जम्मू कश्मीर में 370 खत्म होने के कुछ समय बाद ही यह दिखाने के लिए 23 यूरोपीय सांसदों का दौरा आयोजित किया था कि कश्मीर में सब ठीक ठाक है, भले ही शिकारा चलाने वाले, दुकानें खोल कर माल बेचने-खरीदने वाले लोग कश्मीरी लिबास में पुलिस के आदमी ही क्यों न हों ! दुनिया को यह भरोसा दिलाना बहुत जरूरी था कि इतना बड़ा कदम उठाए जाने के बावजूद कश्मीर में हालात बिल्कुल सामान्य हैं. लेकिन अफसोस अब भी हालात लगभग जस के तस ही बने हुए हैं और सरकार ‘आगे दौड़ पीछे चौड़़’ की मसल की तरह नए नए मोर्चे खोले जा रही है जैसे नागरिकता कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर आदि आदि. मादी शर्मा ने तो इंकार कर दिया है इस बार, इसलिए गृहमंत्री खुद सांसदों और दूसरे लोगों का प्रतिनिधि मंडल लेकर जा रहे हैं वहां !
यह दूसरी बात है कि बहुत से देशों ने तब भी इस पर यकीन नहीं किया था, अब भी नहीं कर रहे हैं. वैसे गलत भी नहीं हैं वे. बहुत से लोग अब भी या तो गिरफ्तार हैं या लापता हैं. कहा जाता है कि स्थानीय नेता या तो नजरबंद हैं या जेल में बंद हैं. संचार व्यवस्था भी पूरी तरह बहाल नहीं हो पाई है अभी तक. फिर भी अगर देश का प्रधानमंत्री या गृहमंत्री कहता है कि वहां सब ठीक ठाक है तो भैया ठीक ठाक ही होगा. अब इतने बड़े लोग हैं, वे झूठ थोड़े न बोलेंगे !! वो तो खाली जुबान फिसल जाती है उनकी जिसे आप झूठ समझ लेते हैं !
हमें तो राज्य, प्रजा और स्वतंत्रता की गहन विवेचना करता शेक्सपियर का दुखांत नाटक जुलिस सीजर याद आ जाता है ! सीज़र के रूप में लोकतंत्र की हत्या करने वाले उसके साजिशी दोस्त ब्रूटस कभी गलत होते हैं क्या? न वे गलत थे और न ही ये जब तक कि मंच पर मार्क एंटोनी प्रकट नहीं हो गया ! देश की हालत पर उसकी निराशा, वेदना और तिक्तता को व्यक्त करता उसका भाषण वाकपटुता का बेहतरीन उदाहरण है जिसने लोकतंत्र के नाम पर साजिश करने वाले हत्यारों को बेनकाब कर दिया था ! बड़े लोग कसम खा कर झूठ भी बोलते हैं और वे तथा उनके समर्थक उम्मीद भी करते हैं कि सब लोग उन पर यकीन भी करें !
लेकिन मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने यकीन करने से इंकार कर दिया ! जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने और एनआरसी तथा नए नागरिकता कानून को लेकर उसने भारत सरकार की कड़ी आलोचना भी की. अगर सब ठीक-ठाक था तो आपको चिढ़ कर प्रतिक्रिया देने की क्या जरूरत थी !! उसकी तरफ ध्यान ही न देते ! लेकिन शक्ति प्रदर्शन तो आपके खून में है भले ही सदियों तक गुलाम रहा हो यह देश विदेशियों का, भले ही कुछ शक्तिमानों ने उनके तलवे क्यों न चाटे हों ! भीड़ के बल पर कार्रवाई कर सकते हैं कुछ लोग चाहे अपने लोगों को दबाना हो या किसी दूसरे देश को सबक सिखाना हो ! इसे लोकतंत्र नहीं भीडतंत्र कहते हैं !
सो मलेशिया को सबक सिखाने के लिए भारत के मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व ने पलटवार किया ! भारत ने जवाब में मलेशिया से पाम तेल के आयात पर लगभग पाबंदी लगा दी। मलेशिया ने भारत के इस रुख़ को लेकर चिंता जताई है क्योंकि वह सबसे बड़े पन तेल उत्पादकों में से एक है ! लेकिन प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने एक बार फिर से कहा है कि भले उनके देश को वित्तीय नुक़सान उठाना पड़े लेकिन वो ‘ग़लत चीज़ों’ के ख़िलाफ़ बोलते रहेंगे !
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