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आपको क्या लगता है कि द्रोणाचार्य सिर्फ कहानियों में था ?

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आपको क्या लगता है कि द्रोणाचार्य सिर्फ कहानियों में था ?

जितना जल्दी हो सके आप इस क्रोनोलॉजी को समझ लीजिए. सबसे पहले जेनएयू पर हुए आतंकी हमले पर जश्न मनाने वालों के सरनेम पढ़िए, ‘शुक्ला जी, चौबे जी, दुबे जी, चतुर्वेदी, जादौन, तोमर, चौधरी, राजपूत, गुर्जर, पांडे, त्रिवेदी, त्रिपाठी, सिंह, मिश्रा, शर्मा’ आदि ही क्यों हैं ? आपने सोचा ? अहीर क्यों नहीं है ? जाटव क्यों नहीं है ? कुमार क्यों नहीं है ? वाल्मीकि क्यों नहीं है ? नाई क्यों नहीं है ? धोबी क्यों नहीं है ? मीणा क्यों नहीं है ? दरअसल इस देश का सड़ चुका ‘अपरकास्टवाद’ हिंदूवाद के भेष में आपके घरों, विश्विद्यालयों में पहुंच चुका है. राष्ट्रवाद और हिंदूवाद की आड़ में ये लड़ाई, ऊंची जातियों के वर्चस्व को बचाने के अंतिम प्रयास भर हैं !

मीडिया के सारे कर्मचारी ब्राह्मण हैं, सारे एडिटर, सम्पादक ब्राह्मण जाति से हैं. इस तरह 90 प्रतिशत मीडिया कर्मचारियों पर ब्राह्मणों का कब्जा है, लेकिन इन टीवी चैनलों के मालिक बनिया और जैन हैं, व्यापारी हैं, कारोबारी हैं, एक बात पर और गौर करिए कल जेनएयू में छात्रों को पीटने के लिए डीयू से जो टोली भेजी गई, वह अधिकतर ‘जाट, गुर्जर और राजपूतों’ की टोली थी. यानी मालिक-निवेशक ‘बनिया’ हैं, कर्मचारी-प्रबंधक ‘ब्राह्मण’ हैं, और लठैत-सिपाही ‘जाट-ठाकुर-गुर्जर’ हैं. आप इस गठजोड़ को समझ लीजिए. ये गठजोड़ ही आधुनिक भारतीय समाज की वर्णाश्रम व्यवस्था है. इसी तरह की लामबंदी द्वारा एक पूरे समाज पर वर्चस्व स्थापित किया जाता है.

अब सरकार पर आइए. आपका प्रधानमंत्री बनिया है, गृहमंत्री जैन कारोबारी है, मंत्री ब्राह्मण हैं, सचिव ब्राह्मण हैं, झंडा ढोने के लिए राजपूत हैं, नारे लगाने के लिए जाट हैं.

अब आप जेनएयू की घटना को व्यापक दृष्टिकोण से समझिए. पहली बात इसे एक घटना, एक इवेंट भर मत समझिए कि अचानक से कोई नकाबपोश आए, गर्ल्स हॉस्टल में घुसे, लड़कियों पर हमला किया और चले गए, बल्कि ये घटना एक बहुत बड़ी प्रक्रिया का हिस्सा है, एक पूरी सीरीज है, जिसका ये एक एपिसोड भर है. ये सब यह दिखाने भर के लिए काफी है कि आपके हाथ से क्या-क्या निकल चुका है. ‘जेएनयू छात्रों’ पर हुआ हमला उस नंगे नाच का पहला प्रदर्शन भर है. ये बताने के लिए भी कि इस देश का संविधान एक कविता भर है और लोकतंत्र एक स्टैंडअप कॉमेडी शो है, जिसका पसंदीदा कलाकार अमित शाह है.

अब उस बड़ी प्रकिया को समझिए जिसका जेनएयू हिस्सा भर है. ऊंची जातियां संख्या बल में कम हैं. कोई 18-20 प्रतिशत भर, इसलिए सीधे-सीधे ब्राह्मणवाद या राजपूतवाद से जीता नहीं जा सकता, इसलिए ऊंची जातियों के मास्टरों ने ‘हिंदूवाद’ ईजाद किया. हिंदूवाद का समर्थन करने के लिए अब कुछ संख्या में यादव जी, निषाद जी, कुमार जी भी मिल गए.

‘हिंदूवाद’ के इस सफल प्रयोग से ‘सवर्णवाद’ जो कि एक समय नंबर में अल्पसंख्यक था, अब वह पूर्ण बहुमत में पहुंच गया. इस तरह सवर्णवाद के इस पूर्ण बहुमत को बनाए रखने के लिए ‘हिंदूवाद’ अपरिहार्य और अनिवार्य हो गया. हिंदूवाद को बनाए रखने के लिए समाज का बंटवारा जरूरी था, इसलिए एक कॉमन दुश्मन चुना गया, वह बनाया गया ‘मुसलमान.’

मुसलमान इसलिए क्योंकि मुसलमान को लेकर इस समाज में पहले से ही पर्याप्त शंका और पूर्वाग्रह था. हर हिन्दू जाति में था, इसलिए दुश्मन घोषित करने में श्रम भी अधिक नहीं लगना था, और ये ऐसी लड़ाई थी जो कभी खत्म भी न होनी थी. जब तक मुसलमान हैं, तबतक ‘हिंदूवाद’ के नामपर आराम से चुनावों में उतरा जा सकता है. आराम से शासन किया जा सकता है !

अब समझिए एनआरसी, सीएबी, पाकिस्तान, ट्रिपल तलाक, लिंचिंग, गाय, खानपान, जनसंख्या कानून, अनुच्छेद 370, अकबर बनाम महाराणा प्रताप की डिबेट में एक ही चीज कॉमन थी ? सिर्फ मुसलमान. इस तरह पिछले छह वर्षों से लगातार मुसलमान को ही राष्ट्रीय राजनीति का खिलौना बनाया गया.

अब लगे रहिए हिन्दू-मुसलमान में, हिंदुओं के गरीब मजदूर, किसान, अपढ़ तबके को ऊपर-ऊपर से लगता है कि मुसलमानों को ठिकाने लगाया जा रहा है, बल्कि उन्हें ये मालूम ही नहीं है कि ये पूरे प्रयास उनकी कीमत पर, उनके बच्चों के भविष्य की कीमत पर, अपरकास्ट अमीरों को बचाने के लिए किए जा रहे हैं, जिसे समझना एक धर्मभीरु आदमी के लिए आसान नहीं है.

मजे करेगा कौन ? शासन कौन करेगा ? कम्पनियां कौन चलाएगा ? पेट्रोल पम्प कौन खोलेगा ? महंगे स्कूल का मालिक कौन बनेगा ? सरल-सा उत्तर है अपरकास्ट वर्ग, उसका भी केवल अमीर वर्ग ! याद रहे, अपरकास्ट का गरीब भी नहीं, अपरकास्ट का किसान और मजदूर भी नहीं.

अब समझ में आया ? ये सारे प्रयास ऊंची जातियों के एकछत्र वर्चस्व को दोबारा से स्थापित करने के प्रयास हैं. जो वर्चस्व कथित नीची जातियों, कमजोरों, मजदूरों के बच्चों के यूनिवर्सिटियों में पहुंचने से धीरे धीरे ढीला होता जा रहा था. असल में इन्हें पढ़े लिखे उन ब्राह्मणों, राजपूतों, बनियाओं से भी दिक्कत है जो इनकी जातियों, वर्णाश्रम व्यवस्था को नहीं मानते. जो भेदभाव के खिलाफ लगातार लिख रहे हैं, बोल रहे हैं. मेरे ऐसे तमाम ब्राह्मण दोस्त हैं, राजपूत दोस्त हैं जिन्हें उनके घरवालों ने देशद्रोही और मुसलमान कहना शुरू कर दिया है.

यही कारण है कि सरकार बनते ही सबसे पहले दिन से ही शिक्षण संस्थानों को सबसे पहले खत्म किया जा रहा है. इसीलिए फीस बढ़ाई जाती है, इसलिए प्राइवेटाइजेशन किया जाता है ताकि मजलूमों, कमजोरों, दलितों, पिछड़ों के बच्चे स्कूल न पहुंच पाएं, एक अंबेडकर ही पहुंच गया था तो उसने सवर्णवाद, हिंदूवाद की दम निकाल दी थी, अब तो हर विश्विद्यालयों में अंबेडकर पहुंच रहा है. जेएनयू पर हुए हमले को इसी दीर्घ परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है. आपको क्या लगता है कि एकलव्य का अंगूठा काटने वाला द्रोणाचार्य सिर्फ कहानियों में था ?

  • श्याम मीरा सिंह

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