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नागरिकता कानून से हासिल क्या हुआ ?

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नागरिकता कानून से हासिल क्या हुआ ?

गुरूचरण सिंह

अगर सरकार की मंशा वही है जो मीडिया बता रहा है, तो क्यों हो रहा है पूरे देश में उसका विरोध ? क्यों एक खास तबका ही इसके पक्ष में खड़ा दिखाई दे रहा है ? लेकिन जवाब देने की परंपरा तो संघ-भाजपा में कभी रही ही नहीं. बस सवाल पूछना आता है, आरोप मढ़ना आता है, मेरी कमीज़ तुम्हारी कमीज़ से उजली है, ऐसा कह कर और अधिक गलत काम करने का नैतिक आधार पाना ही आता है.

News State के मुताबिक भारत ही नहीं, विदेशों में रह रहे भारतीय भी अब इस कानून के खिलाफ सड़क पर उतर आए हैं. जर्मनी के एक छात्र को यह विरोध महंगा पड़ गया जब आईआईटी मद्रास के छात्रों के साथ वह भी इसके खिलाफ आ गया था. जैकब लिडेंथल नामक मद्रास आईआईटी में भौतिक विज्ञान के छात्र को पढ़ाई पूरी होने से पहले ही जर्मनी भेज दिया गया है. बताया गया है कि उसने वीजा नियमों का उल्लंघन किया है !

कानून का विरोध कर रहे गिरफ्तार छात्रों को न छोड़े जाने से नाराज़ BHU के छात्र रजत ने भी विरोध प्रदर्शन करते हुए डिग्री लेने से इंकार कर दिया लेकिन पुडुचेरी यूनिवर्सिटी में डिग्री लेने से रबिहा का इंकार उससे हुए धार्मिक भेदभाव के कारण भी था. समारोह में मुख्य अतिथि राष्ट्रपति कोविंद के जाने के बाद ही उसे अंदर जाने की इजाजत दी गई थी.

बाद में पुडुचेरी यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेश में गोल्ड मेडलिस्ट रबीहा को जब मंच पर बुलाया गया तो उसने यह कह कर मेडल लेने से मना कर दिया कि ‘मुझे गोल्ड मेडल नहीं चाहिए क्योंकि भारत में जो हो रहा है, वह बेहद खराब है.’ उसने कहा, ‘मैंने NRC और CAA के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों के प्रति एकजुटता दिखाते हुए विरोध में ऐसा किया है.’

लेकिन मेरा बुनियादी सवाल अभी भी अनुत्तरित है. राजनीति में शायद असुविधाजनक सवालों को ऐसे ही हाशिए में धकेल दिया जाता है लेकिन जवाब तो देना ही पड़ेगा क्योंकि अब यह केवल असम तक ही नहीं सीमित नहीं रहा, पूरा देश इसके आगोश में आ चुका है. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया और जनगणना आयुक्त विवेक जोशी ने कह दिया है कि असम के अलावा पूरे देश में NPR पर काम शुरू किया जायेगा (असम में तो NRC लागू हो ही रहा है यानि यह उसका पहला चरण है). इसके लिए केबिनेट कमेटी ने 3941 करोड़ मंजूर भी कर लिए हैं. मतलब, यह कोई कागजी योजना नहीं है.

NPR बनाने का उद्देश्य देश के हर नागरिक के लिए एक व्यापक पहचान वाला एक डेटाबेस तैयार करना है, जिसमें जनसांख्यिकी एवं बायोमीट्रिक जानकारी रहेगी. एक अधिकारी के मुताबिक देश में रहने वाले नागरिकों की एक विस्तृत सूची होगी NPR, जिसके पूरा होने के बाद भारतीय नागरिक राष्ट्रीय रजिस्टर (NRIC) तैयार करने के लिए यह आधार बन सकेगा.

एनपीआर के लिए किसी नागरिक की परिभाषा ऐसे व्यक्ति के रूप में होने वाली है जो किसी इलाके में पिछले छह महीने से रहता हो या उससे भी अधिक समय तक रहने का इरादा रखता हो.

चलिए हम एक छोटा सा हिसाब लगाते हैं कितना पैसा खर्च होने वाला है इस सारी ताम-झाम पर. वैसे भी बेकार के कामों में लगने वाले टैक्सपेयर के पैसे की चिंता करता ही कौन है आजकल, फिर भले ही सरकारी खर्च चलाने के लिए सरकारी कम्पनियों वाली एफडी ही क्यों न तुड़वानी पड़े !

खैर, असम में 3 करोड़ लोगों का NRC बनाने के लिए खर्च हुए हैं लगभग 1600 करोड़ रूपए ! भारत भर में इसके ‘पहले चरण’ NPR बनाने के लिए केबिनेट कमेटी मंजूर किए 3941 करोड़ रूपए. जरूरत पड़ी तो और भी दिए जा सकते हैं. 130 करोड़ आबादी के NRC पर असम में हुए खर्च के हिसाब से 700 हजार करोड़ रूपए और लगेंगे यानि कुल 3941+700 हजार करोड़ रुपए.

मान लीजिए भाजपा के दावे के मुताबिक 3 करोड़ घुसपैठिए मिल भी गए तो उनके लिए डिटेंशन सेंटर के इंतजाम पर खर्च, उनमें उनके रखरखाव पर हर महीने करीब पौन चार लाख करोड़ रूपए का खर्च और करना होगा ! कहां से आएगा यह पैसा ?

याद रहे 1971 में 95,000 पाक सैनिकों का खर्च कई महीनों तक हम पहले भी बरदाश्त कर चुके हैं. इतना सारा पैसा खर्च करने के बाद भी हासिल क्या होगा ? क्या पाक या बांग्लादेश ‘अवैध रूप से रह रहे’ इन लोगों को अपने देश में स्वीकार करेंगे ? साढ़े पांच साल की अवधि में क्यों एक भी बांग्लादेशी डिपोर्ट नहीं किया गया ?

कैसे साबित करेंगे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में कि ये लोग पड़ोसी देश के नागरिक हैं जबकि वे देश तो इंकार की मुद्रा में सामने खड़े हुए हैं ? नतीजा ढाक के वही तीन पात ! अनंत समय तक इन लोगों का बोझ भी टैक्सपेयर्स को ही उठाना पड़ेगा ! बाहर रह कर ये लोग कम से कम खा कमा तो रहे थे, यहां तो उनका अनचाहा बोझ भी उठाना होगा ?

इतने बड़े तमाशे के बाद भी आपको हासिल क्या होने वाला है ? जरा दिमाग पर बोझ डालिए.

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ROHIT SHARMA

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