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झूठ का व्यापारी

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झूठ का व्यापारी

गुरूचरण सिंह

हमारे एक इलाहाबादी (प्रयागराजी कहने की आदत आज तक नहीं बन पाई है) मित्र अपनी सोशल मीडिया पर शेयर किए गए वीडियो को देखने का अनुरोध किया था. वीडियो की स्टोरी देखने बाद सहसा विश्वास नहीं हुआ कि देश के सबसे बड़े कार्यकारी पद पर आसीन कोई आदमी छाती ठोक कैसे इतना बड़ा झूठ बोल सकता है. वीडियो रिकार्ड करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शाहजहां अली का भी कुछ ऐसा ही मानना था :

मुझे नहीं मालूम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में क्यों कहा कि ‘भारत में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है!’ आप देख सकते है कि यहां माटिया में भारत के सबसे बड़े डिटेंशन सेंटर का निर्माण हो रहा है. आप चाहे तो यहां काम कर रहे लोगों से पूछ भी सकते है. यह विशाल भवन अवैध विदेशी नागरिकों को रखने के लिए बनाया जा रहा है और इसके लिए फंड (पैसा) भी केंद्रीय गृह मंत्रालय दे रहा है.

शाहजहां अली ने काफी दौड़-भाग के बाद ग्वालपाड़ा ज़िले के माटिया गांव में इस डिटेंशन सेंटर को खोज निकाला है. पश्चिम असम का ग्वालपाड़ा ज़िला बांग्लादेश की सरहद से लगता हुआ एक जिला है, जिसके माटिया गांव में बन रहा है यह सेंटर. इस इलाके में ज्यादातर बोडो जनजाति के लोग रहते हैं.

पहले कभी वेश्याओं के लिए शहर से दूर कोई उजाड़ बस्ती तय कर दी जाती थी जो ‘इन महापुरुषों’ की इच्छा के उलट देखते ही देखते गुलजार हो जाया करती थी और शहर का हिस्सा बन जाया करती थी. अब तो खैर शहर के ही पॉश इलाकों में सम्मानित लोगों द्वारा यह धंधा चलाया जाता है संगठित अपराध की तरह. तो क्या उनकी तरह ये लोग भी कभी शहर वापस आ पाएंगे – सवाल हवा में तैर रहा है क्योंकि उन्हें वापस बांग्लादेश भेजे जाने की कोई संभावना दूर-दूर तक नहीं है !! तो क्या भारतीय समाज के बेहद ख़तरनाक इन दिहाड़ी मजदूरों, खेतिहर मजदूरों के लिए बनाया जा रहा है यह सेंटर ? चूंकि माना जाता है कि इसमें रखे जाने वाले लोग सब बांग्लादेशी है, इसलिए बांग्लादेशी सरहद के नजदीक भारत के सबसे बड़े डिटेंशन सेंटर को बनाने का एक प्रतीकात्मक अर्थ भी ही सकता है.

बार-बार सावधान करने की कोशिश की है हमने झूठ का व्यापार करने वाले धर्म की रमनामी ओढ़े लोगों के बारे में लेकिन लगता है जैसे किसी जादूगर ने देखने वालों की नज़र को ही बांध दिया हो. वे समझना ही नहीं चाहते और मुझे तब गालिब मियां की परेशानी का सबब समझ में आ जाता है जब वे कहते हैं :

या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात
दे और दिल उन को जो न दे मुझ को ज़बां और।

खैर, सामाजिक कार्यकर्ता शाहजहां अली की साइट इंचार्ज रॉबिन दास से को चर्चा हुई है, उसने इन सेंटरों के बारे में तमाम कोहरे की एकबारगी हटा दिया है. इस डिटेंशन सेंटर के निर्माण पर होने वाले ख़र्च से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए रॉबिन दास ने कहा है कि इसके निर्माण में कुल 46 करोड़ रुपए ख़र्च किए जाएंगे, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय दे रहा है. यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग सेल बनाए गए हैं. डिटेंशन सेंटर का लगभग 70 फ़ीसदी काम पूरा हो चुका है. क़रीब 300 मज़दूर बिना नागा इसे पूरा करने में लगे है, जिसके लिए 31 दिसंबर, 2019 की डेडलाइन मिली थी. उम्मीद है कि मार्च 2020 तक यह पूरा हो जाएगा.

3000 लोगों की रिहायश के लिए बनाए जाने वाले इस डिटेंशन सेंटर के बारे में साइट इंचार्ज दास दावा करते हैं कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर होगा. अमरीका में मौजूद डिटेंशन सेंटर पहले स्थान पर है. माटिया गांव के इस सेंटर के अंदर अस्पताल और बाहर प्राइमरी स्कूल से लेकर सभागार और बच्चों और महिलाओं की विशेष देखभाल के लिए तमाम इंतजाम हैं.

जुलाई, 1919 में एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री जी के रेड्डी ने भी बताया था कि ‘फिलहाल असम की अलग-अलग छ: सेंट्रल जेलों में बने डिटेंशन सेंटरों में 1133 घोषित विदेशी लोगों को रखा गया है.’

इसके बावजूद हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं ‘कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है देश में. गलत प्रचार कर रहा है अर्बन नक्सली गैंग !’ सच्चाई आपके सामने है !

बन रहे इस सेंटर के सामने ही चाय-पानी और खाने-पीने की चीज़ों की दुकान चलाते अमित होजांग अपनी परेशानी बयान करते हुए कहते हैं, ‘मैं पास के 5 नंबर माटिया कैंप में अपने परिवार के साथ रहता हूं. मेरे पूरे परिवार का नाम एनआरसी में आया हुआ है. बेटे का नाम है, मां का नाम है, मेरा नाम आया है लेकिन मेरी पत्नी ममता का नाम नहीं आया है. इस बात को लेकर हम बहुत टेंशन में हैं.’

ऐसी एक नहीं, बहुत सारी कहानियां हैं इस पूर्वोत्तर भारत के राज्य की जहां घुसपैठियों को असम से निकालने वाले बुद्धिजीवी ही इससे निराश हो चुके हैं और लेखों पुस्तकों के जरिए इस फिजूल कोशिश पर असहमति जता चुके हैं.

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