CAA – NRC के विरोध में आज पटना में दो जगहों पर प्रदर्शन हुए – एक लोकतांत्रिक जनपहल के द्वारा गांंधी मूर्ति के नीचे गांंधी मैदान में स्थिर प्रदर्शन हुआ और दूसरा सिटीजन फोरम के द्वारा जीपीओ गोलंबर से बुद्ध स्मृति पार्क तक मार्च करके सभा की गई. वैसे आज मोतिहारी में भी लोगों ने मार्च किया और उसमें दो-ढाई लाख के करीब लोग शरीक हुए.
गौरतलब यह भी है कि पूरे मुल्क में चल रहे विरोध मार्च स्वत:स्फूर्त हैं, किसी राजनीतिक दल द्वारा आयोजित-प्रायोजित नहीं है. कारण कि जिस तरह आलू-प्याज का धर्म नहीं होता, उसी तरह देशवासी होने का आधार भी धर्म नहीं होता. लोगों का गुस्सा इसी प्राकृतिक अधिकार को सांप्रदायिक आधार देने के विरुद्ध है.
तो बात विरोध को हिंसक बना देने की हो रही थी. बुद्ध स्मृति पार्क के निकट, सड़क को पूरी तरह छोड़कर, सिटीजन फोरम के लोग NRC और CAA को असंवैधानिक, ग़ैरनागरिक और अमानवीय बता रहे थे. उसी समय कुछ युवक घुस गए. पहले तो गाली-गलौज किया और फिर, उन्हें वहांं से चले जाने के लिए कहने पर, लात-घूंंसा चलाने लगे. पुलिस भी मूकदर्शक रही. संभ्रांत लोगों की इस सभा ने उस समय असहनीय विवेक से काम लिया और उन युवकों को किसी तरह वहांं से खदेड़ा फिर सभा की कार्रवाई आगे बढ़ी.
शांतिपूर्ण सभा को हिंसक बना देने के इस षड्यंत्र को समझने की आवश्यकता है. जहांं-जहांं प्रदर्शन उग्र हो गया है, उन सभी जगहों पर जानबूझकर इसी तरह उसे उग्र बनाने का षड्यंत्र रचकर शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को बदनाम करने की कोशिश हो रही है – कहीं तो गुंडों को भेजकर और कहीं स्वयं पुलिस के द्वारा.
असम में भड़की आग जल्द ही पूरे देश में फैल गई CAA आने के तुरंत बाद. लेकिन उस समय भाजपा या संघ के लोग उस विरोध के विरोध में नहीं आये. सांप्रदायिक आधार पर नागरिकता तय करने के विरोध में उतरे लोगों का विरोध भाजपा के निर्णय और विशेषकर प्रधानमंत्री की रामलीला मैदान में की गई घोषणा के बाद शुरू हुआ है.
इसके दो मायने हैं – पहला यह कि भाजपा कटिबद्ध है कि वह सांप्रदायिक आधार को नागरिकता का आधार बनाकर ही रहेगी. तब तक भारत का संविधान (समाज नहीं) समानता पर आधारित धर्मनिरपेक्ष/पंथनिरपेक्ष राज्य था और यह उसकी आत्मा थी. पहली बार उसकी आत्मा की हत्या करके नागरिकता का आधार धार्मिक बनाया गया है. और चूंंकि धर्म का आधार ही भेदभाव होता है, इसलिए सांप्रदायिक आधार पर तय नागरिकता केवल हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव नहीं, बल्कि ऊंंच-नीच, छूआ-छूत की सैकड़ों साल पहले की मानसिकता पर आधारित होगी. फिर से इतिहास अपने को दुहरायेगा, जिसमें अछूतों की छाया मात्र से देवपुत्र अपवित्र ही जाया करेंगें. बुद्धि पर जोर देकर सोच लें कि इस वैज्ञानिक और बुद्धिवादी युग में ऐसा ही समाज चाहते हैं ?
दूसरा मायने यह है कि सरकार उबल रहे देश की स्थिति को संभालने की योजना नहीं बनाकर, सर्वदलीय बैठक नहीं बुलाकर, अवाम की इच्छाओं की कद्र नहीं करके समानांतर प्रदर्शनों के लिए अपने कैडर को उकसाते हैं. इसका साफ मतलब है कि सरकार समस्या के समाधान के प्रति चिंतित नहीं है, बल्कि देश में आपसी टकराव और गृहयुद्ध का वातावरण निर्मित करने की इच्छुक है. इसके पहले सरकारें अत्यंत बुरी और तानाशाह हुई है, लेकिन सरकार के द्वारा ऐसी बदनीयती इसके पहले कभी दिखाई नहीं पड़ी थी.
उन बहकाये गए भोले युवकों के द्वारा आज के शांतिपूर्ण प्रदर्शन में अराजकता उत्पन्न करना राज्य-पोषित बदनीयती का प्रदर्शन था. इसे समझना और जानना जरूरी है.
- अनिल कुमार राय
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