Home गेस्ट ब्लॉग मोदी-शाह कामयाब करना चाहता है सिर्फ आरएसएस का एजेंडा

मोदी-शाह कामयाब करना चाहता है सिर्फ आरएसएस का एजेंडा

22 second read
0
0
543

मोदी-शाह कामयाब करना चाहता है सिर्फ आरएसएस का एजेंडा

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

वैसे मैंने तो पहले ही लिख दिया था कि आरएसएस अपने अजेंडे में कामयाब हो चुका है, वो मोदी के मुखौटे में सत्ता पर काबिज होकर देश में एक ऐसी अनदेखी आग लगा चूका है, जो हजारों देशवासियों को जलायेगी और देश भर में हो रहे उग्र प्रदर्शन इसका सबूत है.

जेएनयू हो या जामिया…या फिर लखनऊ यूनिवर्सिटी… अभी तो भारत भर के छात्र-छात्रायें इस आग में कूदेंगे. वे और भी उग्र होंगे क्योंकि क्रांति की मशाल सिर्फ वही जलाये रख सकते हैं (शादीशुदा व्यक्ति की क्रांति तो सिर्फ अपने घर-परिवार की चिंता तक ही रहती है). असम में जो आग लगी है, वो पूरे देश में फैलेगी.सभी राज्यों के लोग चपेट में आयेंगे और जैसे ही हालात बिगड़ेंगे, आरएसएस की मूर्खो की सेना हरकत में आ जायेंगी. कहीं वो मुस्लिम बनकर हिन्दुओं पर वार करेगी तो कहीं हिन्दू बनकर मुस्लिमों पर. और इस तरह वो भड़की हुई आग में घी डालने का काम करेंगे. साथ ही आम जनता का मुखौटा लगाकर सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचायेंगे और इल्जाम आम नागरिकों पर आयेगा. फिर सत्ता पक्ष अपने एजेंडे को जारी रखने के लिये पुलिस और सेना को मैदान में उतारेगी. अगर स्थिति नियंत्रण में रहती है तो प्लान ‘ए’ कामयाब और अगर स्थिति नियंत्रण के बाहर हो जाती है तो प्लान ‘बी’ कामयाब. इसीलिये तो मैंने पूर्व में कहा था कि ये मोदी के दोनों हाथों में लड्डू की तरह है !

चंद लोग ही है जो इस स्थिति का पूर्वानुमान समझ रहे हैं और इसे रोकने के लिये भरसक प्रयास कर रहे हैं. मैं लिख सकता हूं इसलिये लिखकर आपको समझा रहा हूं और इंदिरा जयसिंह जैसे लोग कोर्ट में लड़ सकते हैं इसलिये वे याचिकायें दाखिल करने की कोशिश कर रहे है और छात्रशक्ति अपने पराक्रम का परिचय देकर आज निहत्थी सड़कों पर है लेकिन सत्ता तानाशाह बनकर निहत्थों पर बल-प्रयोग करवा रही है (कल रविवार को जो छात्र-छात्राओं के साथ हुआ और जलियावाला कांड में जो हुआ था, उसमे फर्क सिर्फ इतना ही है कि जनरल डायर ने गोलियों से सबको मरवा दिया था और मोदी-शाह ने मरवाया नहीं है लेकिन उन्हें मरने से ज्यादा बदतर स्थिति में पहुंचा दिया है !

आखिर क्यों ऐसा जालिम कानून भारत में आज भी विद्यमान है कि पुलिस इतनी बेहरमी से निहत्थों पर बलप्रयोग करती है ? आखिर कब तक छात्र-शक्ति दिसंबर की कड़कड़ाती ठण्ड में कभी निर्भया के लिये तो कभी तानाशाही के विरोध में हमेशा वाटर केनन से भींगते और लाठी-डंडे्रं खाते रहेंगे ? कब तक पैलेट गनों और अश्रुगैस के गोलों के प्रयोग से भीड़ पर जुल्म होते रहेंगे ?

ये पुलिस तब कहां चली जाती है, जब अराजक तत्वों की भीड़ किसी निहत्थे व्यक्ति को गाय या गौमांस के नाम पर नृशंस तरीके से मार देती है ? सिर्फ छात्र और नागरिकों को ही पाबंद रहना जरूरी है, मगर सत्ता और पुलिस जब चाहे किसी भी कानून को तोड़-मरोड़ भी सकती है, है न ?

न्यायालय पर से भारत की जनता का भरोसा इतना तो शायद अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं टूटा था, जितना आज टूट चुका है.. मुख्य न्यायधीश महोदय स्पष्ट कह रहे है कि हम तुरंत सुनवाई नहीं करेंगे, क्यों नहीं करेंगे मिलार्ड ? आप लाखों रूपये तनख्वाह किस बात की ले रहे हैं फिर ? आपको याद रखना चाहिये कि आप कोई राजा या भगवान नहीं हैं बल्कि जनता के नौकर हैं, जो जनता के द्वारा नियुक्त किये गये हैं ताकि जनता के साथ अन्याय न हो लेकिन आप तो खुद जनता के साथ अन्याय करने पर उतारू हो चुके है, फिर जनता किस पर भरोसा करे ?

क्यों न्यायालय सत्ता पक्ष का पिट्ठू बना हुआ है ? क्या भारत की सभी जनता बेवकूफ है, जो प्रदर्शन कर रही है ? अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, असम, बंगाल, केरल, पंजाब, गोवा, मध्यप्रदेश, दिल्ली, मुंबई समेत पूरे देश में जब इस काले कानून का विरोध हो रहा है तो सिर्फ इसे लागू करने वाले सही कैसे हो सकते हैं ?

सिर्फ भारत ही नहीं इसका विरोध तो दूसरे देश भी कर रहे हैं. अमेरिका, इंग्लैंड, चीन, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल समेत अनेक देशों ने इसे भेद-भावपूर्ण और यूएनओ के नियमों के खिलाफ बताया है और मानवाधिकार का उल्लंघन भी..!

बांग्लादेश तो इसे अपनी आजादी पर खतरा भी बता चूका है और भारत से उन सभी बांग्लादेशियों की लिस्ट मांग रहा है, जो भारत में अवैध तरीके से रह रहे हैं ताकि वो उन सभी को वापिस अपने देश में पुनर्वासित कर सके लेकिन भारत की बीजेपी / मोदी सरकार के पास तो इसका जवाब तक नहीं है कि कितने बांग्लादेशी भारत में हैं ?

विरोध सिर्फ लोग या दूसरे देश ही नहीं कर रहे बल्कि भारत की राज्य सरकारें भी कर रही है और अब तक छह राज्य (पूर्व में तीन लिखा था लेकिन अब छह हो चुके हैं) इसे लागू करने से इंकार कर चुके हैं जिसमे दिल्ली, वेस्ट बंगाल, केरल, पंजाब, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की राज्य सरकारें शामिल हैं. (भारत में 29 राज्य हैं जिसमें 13 गैर-बीजेपी और 16 बीजेपी और उनके सहयोगी दलों से शासित हैं लेकिन विरोध बीजेपी और उनके सहयोगी दलों से शासित राज्यों में भी हो रहा है और गैर-बीजेपी शासित राज्यों में भी हो रहा है).

मोदी – शाह सिर्फ आरएसएस का एजेंडा कामयाब करना चाहती है और इसीलिये उन्होंने सोचा होगा कि 370 और राम मंदिर की तरह नागरिकता संशोधन कानून लाकर मुस्लिमों को दरकिनार कर एक बार फिर हिंदू वोट बैंक अपने पक्ष में कर लेंगे, लेकिन मामला उल्टा हो गया और हिन्दू ही बीजेपी के विरोध में सड़कों पर उत्तर आये हैं.

आरएसएस – बीजेपी और मोदी – शाह को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि पूरे देश में इतने बड़े स्तर पर प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे. उनको तो शायद ये अंदाज भी नहीं था कि असम समेत पूरे नॉर्थ-ईस्ट में हिन्दू-मुस्लिम एक होकर प्रदर्शन में आ जायेंगे (क्योंकि बीजेपी – आरएसएस हमेशा लोगों को धर्म के चश्मे से देखती है और शायद मोदी – शाह ने सोचा होगा कि जैसे यूपी-बिहार में हिन्दू-मुस्लिम करके जीत जाते हैं, वैसे ही इस बार भी फार्मूला कामयाब हो जायेगा. मगर बीजेपी का ये फार्मूला बीजेपी पर ही बैकफायर हो गया क्योंकि असाम समेत पुरे नॉर्थ-ईस्ट में एक बात कॉमन है कि हिन्दू हो या मुस्लिम या फिर ईसाई अगर वो वहां का रहवासी हैं तो वो उनका अपना है और अगर बाहरी है तो पराया. और वहां के लोग अच्छे से समझ रहे हैं कि अगर इस बिल को लागू होने दिया गया तो बंगाली हिन्दू उनकी जमीन और संसाधनों पर काबिज हो जायेंगे और इसलिये वहां पर CAB पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होकर आने से पहले ही उग्र प्रदर्शन शुरू हो गया).

सिर्फ वहां ही नहीं अब तो सब जगह बीजेपी का दांव उल्टा पड गया है और पूरे देश में विरोध शुरू हो गया है और इस काले कानून के खिलाफ मुस्लिम लीग तो पहले ही याचिका दायर कर चुकी है और अब तृणमूल कांग्रेस, जन-अधिकार पार्टी, पीस पार्टी इत्यादि ने भी याचिका दाखिल की है. और असम गण परिषद् (असम में बीजेपी की मुख्य सहयोगी पार्टी) भी कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली है. इसके अलावा निजी स्तर पर भी एहतेशाम हाशमी, पत्रकार जिया-उल सलाम और कानून के छात्र मुनीब अहमद खान, अपूर्वा जैन और आदिल तालिब समेत अनेक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकायें लगाई है (ये अभी की हालिया स्थिति है). सभी याचिकाओं में इस कानून को असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने की मांग की गयी है और सभी ने एक बात समान रूप से कही है कि यह कानून धर्म और समानता के आधार पर भेदभाव करता है और सर्वोच्च न्यायालय मुस्लिम समुदाय के जीवन, निजी स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करे.

Read Also – 

सनक से देश नहीं चलते !
अन्त की आहटें – एक हिन्दू राष्ट्र का उदय
असल में CAB है क्या ?
NRC : नोटबंदी से भी कई गुना बडी तबाही वाला फैसला

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…