Home गेस्ट ब्लॉग राष्ट्रवादी नशा की गहरी खुराक परोसता भारतीय फिल्म उद्योग

राष्ट्रवादी नशा की गहरी खुराक परोसता भारतीय फिल्म उद्योग

28 second read
0
0
1,143

राष्ट्रवादी नशा की गहरी खुराक परोसता भारतीय फिल्म उद्योग

हेमन्त कुमार झा, एसोसिएट प्रोफेसर, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना

खबर है कि संजय लीला भंसाली बालाकोट एयर स्ट्राइक पर फ़िल्म बनाने जा रहे हैं. नायक-नायिका कौन होंगे, अभी तय नहीं. कोई भी हों, क्या फर्क पड़ता है. सबको पता है कि फ़िल्म का वास्तविक नायक कौन होगा, भले फ़िल्म में उसे दिखाया जाए या न दिखाया जाए यानी, राष्ट्रवाद के एक और तगड़े डोज के लिये तैयार रहिये.

फिल्मी पर्दे पर भारतीय मिसाइलें गरजती हुई, आसमान के अंधेरों को चीरती हुई अपने टारगेट पर आक्रमण करेंगी, दाढ़ी वाले मुल्ले डरी हुई मुद्राओं में चीखेंगे, भागेंगे … फिर अल्लाह को प्यारे होते हुए दिखाए जाएंगे. आतंकी शिविर ध्वस्त होते हुए दिखेंगे. ईंट से ईंट बजेंगी. दर्शकों में उन्माद की लहरें उठेंगी.

बालाकोट में उस रात असल में हुआ क्या था, इससे किसी को कोई मतलब नहीं रह जाएगा, जो फ़िल्म में दिखाया जाएगा वही आम जनमानस में स्थापित हो जाएगा.

‘ … ये मारा … वो धो डाला … आतंकी मुल्लों को 72 हूरों के पास भेज दिया … पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दी …’.

‘ … भारत माता की जय … वन्दे मातरम …’.

और फिर … ‘मोदी … मोदी … मोदी … मोदी …’

बेरोजगारी से बेजार युवा देशभक्ति से ओतप्रोत हो सिनेमा हॉल में शोर मचाएंगे और गर्व की अनुभूतियों से लबालब हो हॉल से बाहर निकलेंगे. भारत महाशक्ति बन रहा है… इतिहास की कहानियों के नाम पर भव्यता के साथ रायता फैलाने में भंसाली को महारत हासिल है. विवाद उनकी पूंजी है, जिसका भरपूर लाभ वे अपनी पिछली फिल्मों में उठाते रहे हैं. बॉलीवुड इतना जनविरोधी अतीत के किसी दौर में नहीं रहा.

50 के दशक में, जब देश सपनों के साथ सो रहा था, जग रहा था, हिन्दी फिल्मों ने जन सापेक्ष मुद्दों पर कई यादगार प्रस्तुतियां दी. राज कपूर, दिलीप कुमार, नरगिस, राजकुमार जैसे मुख्य धारा के सितारों ने इन फिल्मों में काम किया था. कलात्मक उत्कर्ष के साथ ही व्यावसायिक रूप से भी इन फिल्मों ने सफलता के नए मानदण्ड स्थापित किये.

60 का दशक मोहभंग का था और अवाम में फैलती निराशा को कई फिल्मों ने अपना मुद्दा बनाया. 70 का दशक सिस्टम से हताश, आक्रोशित युवाओं की छवि फिल्मी पर्दे पर उकेरता रहा. इधर, 70 के दशक में समांतर फिल्मों की धारा भी सशक्त हुई जिसमें वंचित, पीड़ित समुदायों की पीड़ा को सामने लाया जाता रहा.

80 के दशक से हिन्दी फिल्में जन से दूर होने लगी. लेकिन, उसका जनविरोधी होना अभी बाकी था. नई शताब्दी में फिल्मों में कारपोरेट फंडिंग का नया अध्याय शुरू हुआ. अब यह फ़िल्म इंडस्ट्री को अपनी गिरफ्त में ले चुका है. तो … कारपोरेट हितों की प्राथमिकताएं अहम हो गईं. कारपोरेट हित … मतलब सत्ता-संरचना के हित … मतलब सत्ताधीशों के हित … मतलब जन विरोधी.

बीते कुछ वर्षों में राष्ट्रवाद की अलख जगाती फिल्मों का सिलसिला रहा है. ये 60 और 70 के दशकों की मनोज कुमार टाइप राष्ट्रवादी फिल्मों से अलग तेवर और कंटेंट के साथ सामने आई हैं. अप्रत्यक्ष रूप से किसी खास समुदाय को टारगेट करती फिल्में, किसी खास देश से दुश्मनी को अपने खास तरीके से परिभाषित करती फिल्में.

कौन कह सकता है कि ऐसी फिल्मों को असल फंडिंग कहां से मिल रही है, लेकिन, कौन नहीं जानता कि ये फंडिंग कहां से आ रही होंगी  ? जाहिर है, बालाकोट पर फ़िल्म बनाने के लिये भंसाली को फंड के बारे में सोचना नहीं पड़ेगा. कंटेंट क्या होगा, यह अभी से पता है.

पुलवामा हमले को आप बालाकोट से अलग नहीं कर सकते. लेकिन, यकीन मानिये, पुलवामा में सुरक्षा तंत्र की नाकामी पर भंसाली फ़िल्म में कुछ नहीं दिखाएंगे. मीडिया ने तंत्र की इस भयानक नाकामी पर पहले से ही मिट्टी डालने का काम बखूबी कर दिया है.

मीडिया की तरह ही भंसाली भी पुलवामा की नाकामी से इस्केप कर सीधे दुश्मन की छाती पर गिरती मिसाइलें दिखाएंगे.
बॉलीवुड सत्ता के चरणों पर इससे पहले इतना नतमस्तक कभी नहीं हुआ था. इमरजेंसी में भी नहीं. तो…भंसाली ब्रांड भव्यताओं से लबरेज राष्ट्रवाद के नए झूले में झूलने के लिये तैयार रहिये. आर्थिक संकेत बुरे से बुरे हालात को बयां कर रहे हैं. नशे में डूब जाने के लिये तैयार रहिये.

Read Also –

निजीकरण से अंध-निजीकरण की ओर बढ़ते समाज की चेतना
NRC : नोटबंदी से भी कई गुना बडी तबाही वाला फैसला
साम्प्रदायिकता की जहर में डूबता देश : एक दास्तां
देश को धोखा दे रही मोदी सरकार
अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता संघर्ष में मुसलमानों की भूमिका
हे राष्ट्र ! उठो, अब तुम इन संस्थाओं को संबोधित करो
कश्मीर में आतंकवादी हमला और प्रधानमंत्री-भाजपा की खामोशी

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…