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हकूमत अब सेवा का नहीं व्यवसाय का जरिया

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हकूमत अब सेवा का नहीं व्यवसाय का जरिया

अशोक खेमका, आईएएस अधिकारी

फिर स्थानांतरित किये गए आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने कहा कि ‘इमानदारी का पुरस्कार अब प्रताड़ना हो गया है.’ 29 साल के सेवाकाल में 53 बार स्थानांतरित किये जाचुके खेमका हरियाणा सरकार पर यह कहते हुए जमकर बरसे कि हकूमत अब सेवा का नहीं, व्यवसाय का जरिया हो गया है. ईमानदार अधिकारियों को प्रताड़ित कर पुरस्कृत किया जाता है. 1991 बैच के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर को पत्र लिख कर प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी से मिलकर जनहित में इन गतिविधियों का सार संक्षेप बताने की इजाजत चाही है.

नवम्बर माह में स्थानांतरित हो कर अभिलेखागार विभाग में पहुंचे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के मुख्य सचिव खेमका ने कहा कि खेल और युवा मामलों के विभाग में 15 माह सेवा देने के बाद माह मार्च में उन्हें स्थानांतरित किया गया था.

खट्टर को सम्बोधित अपने अर्ध-शासकीय पत्र में खेमका ने अपने पिछले ट्रांसफर के बारे में कड़ा प्रतिरोध दर्ज कराया है. खेमका का पत्र मुख्यमन्त्री को मिल गया है परन्तु उसका उत्तर अभी दिया जाना है.

छुद्र सोच उत्पीड़ित करने को प्रेरित होता है, और भय का माहौल बनाकर अधिकारी को अपने कर्तव्य का ईमानदारी और प्रभावी तरीके से निर्वाहन करने से विमुख करता है. शासन अब सेवा नहीं है, यह एक व्यवसाय हो गया है. मुझ जैसे चन्द मूर्ख ही अब खुद को आमजन के विश्वास का ट्रस्टी समझ कर कार्य करते हैं. आप मेरे पत्र को कूड़ेदान में नहीं फेकेंगे. मैं आपसे अनुरोध करता हूंं कि मुझे प्रधानमन्त्री को पत्र लिख कर और मिलकर जनहित में उन्हें यह सब  बताने की स्वीकृति प्रदान करेंगे. खेमका ने यह सब अपने पत्र में कहा है.

अपने तमाम स्थानांतरणों को आईएएस कैडर के नियमों का उलंघ्घन करते हुए खेमका ने कहा कि ‘मैं हमेशा प्रताड़ित किया जाता रहा हूंं और हमेशा चुप रहकर यह सब सहन करता रहा हूंं. मेरे आत्मसंयम को मेरी मौन स्वीकृति न समझा जाय. स्थानांतरण का आधार किसी की इच्छा और आकांक्षा नहीं होता. संक्षेप में बता दूं कि मेरे अधिकांश स्थानांतरण आदेश अकारण, गैर-पारदर्शी, प्रबंधित, असंगत और व्यक्तिगत विचारों पर आधारित हैं. आपके कार्यकाल में भी मेरे कुछ स्थानांतरण किसी जनहित में नहीं अपितु असंगत और व्यक्तिगत कारणों से किये गए हैं.’

27 नवम्बर को किये गए अपने स्थानांतरण के बारे में खेमका ने मुख्यमन्त्री से निवेदन किया है कि ‘कृपया इससे सम्बंधित पत्रावली को मंगाकर आप स्वयं अध्ययन करें, जिसमें मैंने कुछ विभागों में भौगोलिक सूचना प्रणाली पर आधारित पद्धति से स्वीकृत टेंडरों में आर्थिक भ्रष्टाचार की ओर इंगित किया है, उदाहरण के लिए शहरी निकायों में भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) पर आधारित सर्वेक्षण के लिए 103 करोड़ की स्वीकृत निविदा हरियाणा स्पेस एप्लिकेशन सेंटर की 56 करोड़ के एस्टीमेट की तुलना में 84 प्रतिशत अधिक है. इसी तरह उद्द्योग और वाणिज्य, वन, टाऊन और कंट्री प्लानिंग विभागों में निजी संस्थाओं की निविदाएं स्वीकार करने के लिए हरयाणा स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के किये जा चुके कार्य की पुनरावृत्ति भौगोलिक सूचना प्रणाली के माध्यम से की गई हैं.’

खेमका अपनी परफॉर्मेंस रेटिंग एप्रेजल को लेकर हरियाणा सरकार के साथ एक कानूनी लड़ाई में फंसे हुए हैं. पंजाब और हरयाणा हाईकोर्ट ने खेमका के पक्ष में फैसला करते हुए वर्ष 2026-17 की अप्रेजल रिपोर्ट में खट्टर द्वारा की गई  प्रतिकूल टिप्पणी को निरस्त कर दिया. प्रदेश सरकार इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय चली गयी है.

‘इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर के आप अपने ही मामले में जज बन गए है. राज्य सरकार ने इस मामले में केंद्र के सॉलिसिटर जनरल व अन्य अधिवक्ताओं की टोली को अनुबंधित कर लिया है, जिसका भारी भरकम बोझ सरकारी खजाने पर पड़ेगा. मुझे अपने बचाव के लिए कानूनी लड़ाई का खर्च खुद ही उठाना है, जिसके लिए मुझे कर्ज लेना पड़ेगा. यह देखना दिलचस्प होगा कि सॉलिसिटर जनरल केंद्र सरकार के खिलाफ जो इस मामले में रेस्पोंडेंट नं. – दो हैं, के विरुद्ध क्या दलील देंगे. केंद्र सरकार इस मामले में उपस्थित नहीं होगी. यह एक चटपटा मामला बन गया है क्योंकि केंद्र सरकार अपने ही सॉलिसिटर जनरल के विरोध में कैसे खड़ी होगी ? सॉलिसिटर जनरल की टक्कर का अधिवक्ता तलासना और उसकी भारी भरकम फीस के बोझ को वहन करने में मैं सक्षम नही हूंं, मुझे इसके लिए कर्ज लेना ही पड़ेगा.’

(अंग्रेजी भाषा के दिल्ली से प्रकाशित अखबार इंडियन एक्सप्रेस के 13 दिसंबर के अंक में वरिंदर भाटिया की रिपोर्ट का हिंदी में अनुवाद विनय ओसवाल ने किया है.)

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