पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
हैदराबाद रेप और मर्डर केस के आरोपियों को हैदराबाद पुलिस ने एनकाऊंटर करके मामला क्लोज कर दिया क्योंकि वहां एक बड़ा जनसैलाब विरोध करने के लिये तैयार हो चुका था. पुलिस ने किसी भी क्रिटिकल स्थिति का सामना करने के बजाय ये रास्ता चुना और मामले को ठंडा कर दिया.
हैदराबाद पुलिस की ये हरकत बहुत शर्मनाक है क्योंकि एक तरफ जहांं देश में रोज सैकड़ों बलात्कार हो रहे हैं और उसमें क्रूरतम तरीकों का इस्तेमाल होता है, उसे रोकने के बजाय आरोपियों को मार देना गलत तो है ही, तानाशाही भी है. आखिरकार पुलिस को ये हक़ किसने दिया कि वो आरोपियों का इंसाफ खुद ही करने लगे ? क्या हम रियासतकालीन राजतंत्र में है ?
क्या भारत से लोकतंत्र व्यवस्था समाप्त समझी जाये ? किसी के अपराधी होने पर भी पुलिस को तो ये अधिकार कत्तई नहीं है कि वो खुद ही सजा देने लगे. ये अधिकार सिर्फ और सिर्फ भारत की न्याय व्यवस्था के पास है. अगर इस तरह इंसाफ होने लगे तो फिर लोकतंत्र और इतने लम्बे-चौड़े संविधान की जरूरत ही क्या है ? ज्ञात रहे हमारे देश में शरिया कानून संवैधानिक नहीं गैर-कानूनी है और ऐसी सजाओं का प्रावधान सिर्फ शरिया जैसे तानाशाही कानूनों में होता है.
एक तरफ मुंबई जैसे शिक्षित महानगर (जिसे भारत की इकोनॉमिक केपिटल भी कहा जाता है) में आज भी लोकल ट्रेनों में ऑफिस से लौटती स्त्रियों पर गुटखे और पान का पीक थूका जा रहा है और मुंबई पुलिस जिसे रोकने में नाकाम है, वहीं दूसरी तरफ ये फ़िल्मी सिंघम का अवतार बनकर हैदराबाद पुलिस सरेआम न्याय-व्यवस्था का मखौल उड़ा रही है. ऐसे में हमें जरूरत किस चीज़ की ज्यादा है ? लोगों की मानसिकता बदलने की या इस तरह से तानाशाही सजाओं के प्रावधान की ?
पुलिस द्वारा एनकाउंटर या भीड़ द्वारा इंसाफ के नाम पर किसी को मार देना, आपमें से कुछ की नजर में न्याय हो सकता है, मेरे नजरिये से नहीं. क्योंकि मुझे नहीं लगता कि इस तरह के इंसाफ लोकतंत्र की सेहत के लिये अच्छे हैं. ऐसे तो पुलिस किसी को भी उठाकर एनकाउंटर कर देगी और उसे किसी अपराध का वांछित बता देगी. कश्मीर में भी तो ऐसा ही होता है इसलिये तो कश्मीरी आवाम भारत सरकार के खिलाफ हर समय उग्रता धारण किये रहती है और भारत सरकार को नुकसान पहुंचाने के चक्कर में भारत देश का नुकसान करती रहती है.
प्रियंका को मैं पीड़िता नहीं कहूंगा. क्यों कहूं ? वो एक बहादुर लड़की थी, जिसने उन कमजोर मर्दोंं की झूठी मर्दानगी को शर्मिंदा किया इसलिये ही तो जब वे उसे मानसिक रूप से झुका नहीं सके तो रेप करके मार दिया. मारकर भी जब उनकी विक्षिप्त मानसिकता को संतुष्टि नहीं मिली तो उसे जला दिया ताकि उसका अस्तित्व खाक हो जाये लेकिन उस बहादुर लड़की का अस्तित्व खाक होकर भी मिटा नहीं. उसके बारे में सिर्फ इतना ही और लिखूंगा कि वो गलत समय पर गलत लोगों के बीच फंस गयी क्योंकि वे वासना के भेड़िये किसी एक की तलाश कर रहे थे और उन्हें वो आसानी से मिल गयी.
जरूरत अब इंसाफ की नहीं बल्कि पुरुषों को अपनी मानसिकता को बदलने की है. उन्हें स्त्रियों के प्रति शिक्षित किया जाना आवश्यक हो गया है. अभी जो कट्टर धर्मवाद का ढकोसला फैलाया जा रहा है, उसमें ऐसे गुनाह और बढ़ेंगे. अभी तो ऐसे गुनाहों का हिन्दू-मुस्लमिकरण सिर्फ खबरों में हो रहा है लेकिन जल्दी ही अगर इस मानसिकता को नहीं बदला गया तो ये क्रियान्विन्ती के रूप में होगा, फिर हिन्दू मुस्लिम औरतों का रेप करेंगे और मुस्लिम हिन्दू औरतों का. और ये तरीका मानवता को ख़त्म कर देगा. सामाजिक व्यवस्था को खत्म कर देगा इसलिये तो मैंने लिखा कि जरूरत मानसिकता में बदलाव की है क्योंकि भले ही बड़े बलात्कारों के बारे में देश में हलचल होती हो पर देश की बेटियां छोटे-छोटे बलात्कारों से हर रोज़ गुजरती है. उन्हें ही बचपन से बैठने-उठने-पहनने-चलने इत्यादि के बीसियों तरीके सिखलाये जाते हैं लेकिन बेटो के लिये एक भी नियम या सिद्धांत नहीं सिखाया जाता. आखिरकार क्यों बेटियों की तुलना खूंटी से बंधी गाय और बेटों की तुलना आवारा सांड से की जाती है ?
क्यो दोनों लिये एक जैसे नियम कायदे समाज में नहीं हैं ? क्यों हर रोज बेटियों को रेप और गैंगरेप से गुजरना पड़ता है ? क्यों कोई बुजुर्ग पुरुष किसी बच्ची को एक चॉकलेट का लालच देकर उसके अंगों पर हाथ फिराता है ? क्यों कोई पुरुष किसी दूसरे की छोटी बच्ची को उठाकर उसे लहूलुहान हालत में किसी निर्जन स्थान पर फेंक जाता है ?
इस सबका का एकमात्र कारण है पुरुषों की मर्दानगी वाली मानसिकता. पुरुषों को इससे उबरने की जरूरत है क्योंकि जब तक वो मर्द बने रहेंगे, तब तक अधूरे रहेंगे और ये अधूरापन उन्हें उकसायेगा और फिर वो करेंगे एक और बलात्कार या सामूहिक बलात्कार. लेकिन इससे अधूरापन भरने वाला नहीं है. अधूरेपन को भरने के लिये उन्हें स्त्री बनना पड़ेगा, मानसिक तौर पर. क्योंकि उनके ऐसा करते ही वे पूर्ण हो जायेंगे और पूर्ण होते ही उनकी मानसिकता बदल जायेगी. वो उस मानसिक पीड़ा को महसूस कर पायेंगे जिसे एक स्त्री अपने शरीर के साथ होते बलात्कार के समय महसूस करती है.
ये मेरा अपना नजरिया है इसीलिये मुझे पुलिस द्वारा किया गया एनकाउंटर बेमानी लग रहा है. एनकाउंटर से किसी भी अपराध पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता. आज तक कोई भी देश नहीं कर पाया है और भारत भी नहीं कर पायेगा.
नोट: मैंने देखा है बहुत से लोग तस्वीर के साथ पोस्ट या शेयर कर रहे हैं जबकि कानूनन ये अपराध है और इसके लिये आप पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है (बलात्कार संबंधी कानूनी दिशा-निर्देश में स्पष्ट रूप से इंगित है कि किसी भी बलात्कार की शिकार महिला की तस्वीर या पहचान (चाहे वो मर चुकी हो) सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं की जा सकती इसलिये प्रतीकात्मक तस्वीर का ही इस्तेमाल करे !
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लड़कियों की स्वतंत्रता और हिटलर
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