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नोटबंदी के ‘दूरगामी’ परिणाम

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नोटबंदी के 'दूरगामी' परिणाम

Ravish Kumarरविश कुमार, मैग्सेस अवार्ड प्राप्त जनपत्रकार

नोटबंदी एक बोगस फैसला था. अर्थव्यवस्था को दांव पर लगा कर जनता के मनोविज्ञान से खेला गया. उसी समय समझ आ गया था कि यह अर्थव्यवस्था के इतिहास का सबसे बोगस फैसलों में से एक है लेकिन फिर खेल खेला गया. कहा गया कि दूरगामी परिणाम होंगे. तीन साल बाद उन दूरगामियों का पता नहीं है. अब विश्लेषणों में झांसा दिया जा रहा है कि सरकार ने जो सुधार किए हैं, उनका नतीजा आने में वक्त लगेगा. फिर दूरगामी वाली बूटी पिला रहे हैं सब. ये कौन-सा सुधार है जो पहले अर्थव्यवस्था को जीरो की तरफ ले जाता है और वहां से ऊपर आने का ख््वाब दिखाता है. साढ़े पांच साल जुमले ठेलने में ही बीत गए. इसका नुकसान एक पीढ़ी को हो गया. जो घर बैठा वो कितना पीछे चला गया. सरकार के पास आर्थिक मोर्चे पर नौटंकी करने के अलावा कुछ नहीं. पता है लोग बजट पर बात करेंगे तो वित्त मंत्री को लाल कपड़े में लिपटा हुआ बजट देकर भेज देती है ताकि चर्चा बजट पर न होकर परंपरा के शुभ-अशुभ मान्यताओं पर बहस होने लगे. उन्हें लक्ष्मी बना कर पेश किया गया जबकि साफ समझ आ रहा है कि वे भारत की अर्थव्यवस्था को जेएनयू समझ रही हैं. जो मन में आए बोल दो, लोग ताली बजा देंगे.

जीडीपी का हाल बुरा है. कभी न कभी तो ठीक सब हो जाता है लेकिन हर तिमाही की रिपोर्ट बता रही है कि इनसे संभल नहीं रहा है. पिछली छह तिमाही यानि 18 महीने से अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है. इस मंदी का लाभ उठा कर कारपोरेट ने अपने लिए टैक्स फ्री जैसा ही मेला लूट लिया. कारपोरेट टैक्स कम हो गया. कहा गया कि इससे निवेश के लिए पैसा आएगा. ज्यादातर कंपनियों के बैलेंसशीट घाटा दिखा रहे हैं. उनकी कर्ज चुकाने की क्षमता कमजोर हो गई है.

अब आप सोचिए कि जिस देश में मैन्यूफैक्चरिंग जीरो हो जाए वहां रोजगार की कितनी बुरी हालत होगी. सरकार को डेटा देना चाहिए कि छोटी-बड़ी कितनी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. गुजरात, तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र से पता चल जाएगा. खेती और मछली पालन में विकास दर आधी हो गई है. शहरों के कारखाने से बेकार हुए तो गांवों में भी काम नहीं मिलता होगा. जो नौकरी में हैं उनकी हालत भी मुश्किल है. कोई बढ़ोत्तरी नहीं है. तनाव ज्यादा है.

चैनलों पर अब जीडीपी के आंकड़े को लेकर बहस नहीं होगी. कोई उन बंद पड़े कारखानों की तरफ कैमरा नहीं भेजेगा, जहां मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया खंडहर बने पड़े हैं. आप सभी को दूरगामी का सपना दिखाया जा रहा है. एक ‘मजबूत नेता और एक मजबूत सरकार’ जैसे बोगस स्लोगनों का हश्र आप देख रहे हैं. कभी-न-कभी तो कुछ भी ठीक हो जाता है लेकिन साढ़े पांच साल में एक भी सेक्टर ऐसा नहीं है जो इनकी नीतियों से बुलंद हुआ हो या जिसमें बुलंदी आई हो.

इस साल जीडीपी की दूसरी तिमाही के आंकड़े आ गए हैं. जीडीपी दर पिछली तिमाही से भी घट गई है. 5 प्रतिशत से घट कर 4.5 प्रतिशत पर आ गई है. पिछली 26 तिमाही में यह सबसे खराब प्रदर्शन है. इसके पहले 2012-13 की मार्च तिमाही में जीडीपी 4.3 प्रतिशत हो गई थी. उस वक्त यानी 2012-13 में जीडीपी एक दशक में सबसे कम थी. 2016 में नोटबंदी के समय कहा गया था कि इसके दूरगामी परिणाम अच्छे होंगे. तीन साल बाद जीडीपी के गिरते नंबर को क्या नोटबंदी का दूरगामी परिणाम कहा जा सकता है ? 6 साल में भारत की जीडीपी इतनी कम कभी नहीं हुई थी. लेकिन एक बात और विचित्र हुई. जीडीपी के इस नंबर को पेश करने के लिए सांख्यिकी सचिव ने प्रेस कांफ्रेंस ही नहीं की.

स्कूल कॉलेजों में फेल कल्चर का यह विचित्र उदाहरण हैं. फेल करने वाला या तो घर नहीं जाता है या घर जाता है तो बाबूजी के डर से पिछले दरवाजे से जाता है. यह विजुअल बताता है कि यही मनोविज्ञान शायद सरकार में भी पहुंच गया है. जीडीपी के नंबर खराब आए तो सांख्यिकी सचिव ने प्रेस कांफ्रेंस ही नहीं की. जबकि इन्हीं सचिव साहब ने जून के महीने जब जीडीपी की दर 5 प्रतिशत हुई थी तब प्रेस कांफ्रेस में सशरीर हाजिर थे. लेकिन इस बार जीडीपी 5 प्रतिशत से कम हुई तो सचिव साहब ने प्रेस कांफ्रेंस नहीं की. जबकि हर तिमाही में प्रेस कांफ्रेंस होती है. एक तरह से परंपरा सी बनी हुई थी लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई है. ट्वि‍टर और वेबसाइट पर प्रेस रीलीज जारी कर दी गई है.

आप इस वक्त वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के ट्वीट ही देखिए कि वो क्या बता रहे हैं. वैसे मोदी सरकार द्वितीय के गठन के दौरान ही कहा गया था कि बुनियादी ढांचे पर 100 लाख करोड़ का निवेश होगा. अगले चार साल में. लेकिन पहले छह महीने का रिकार्ड बता रहा है कि शुरूआत अच्छी नहीं है. अक्तूबर महीने में आठ कोर इंडस्ट्री के आंकड़े बता रहे हैं कि एक भी पोजिटिव न्यूज नहीं है. आठ में से छह कोर इंडस्ट्री में विकास दर गिर गई है. अगर सबको मिलाकर देखिए तो 5.8 प्रतिशत की गिरावट है. नेशनल स्टेस्टिकल आफिस के आंकड़ों के अनुसार रोजगार देने वाले सेक्टर मैन्यूफैक्चरिंग में विकास दर निगेटिव हो गई है. मैन्यूफैक्चरिंग में ग्रोथ रेट -1 दर्ज की गई है, शून्य से नीचे. खनन सेक्टर में विकास दर 1 प्रतिशत है. बिजली, गैस, पानी और अन्य सुविधाओं में विकास दर 3.6 प्रतिशत है. निर्माण क्षेत्र में विकास दर 3.3 प्रतिशत ही रहा है. कृषि, वन उपज, मछली पालन में विकास दर 2 प्रतिशत है.

ये वो सेक्टर हैं जिनमें विकास दर 4.3 प्रतिशत के औसत से नीचे है. मैन्यूफैक्चरिंग में विकास दर जीरो के नीचे हो गई है. पिछले साल इसी तिमाही में यह 6.9 प्रतिशत थी. अब आप सोचिए इस सेक्टर में किस लेवल की तबाही आई होगी कि एक साल के भीतर 6.9 प्रतिशत से घट कर जीरो के नीचे विकास दर आ गई है. क्या फैक्ट्रियां बंद हैं ? यह इस बात से भी पता चलता है कि बिजली और गैस क्षेत्र का विकास दर भी 3.6 प्रतिशत ही है. इसका असर दिख भी रहा है कि तमिलनाडु के कोयंबटूर नगरपालिका में 549 सफाईकर्मियों की वैकेंसी आई तो 7000 इंजीनियर, डिप्लोमा होल्‍डर और स्नातक ने अप्लाई किया. इसी साल फरवरी में तमिलनाडु विधानसभा में सफाईकर्मी के 14 पोस्ट निकले थे तो 4600 इंजीनियर और एमबीए ने अप्लाई किया था. तमिलनाडु मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का गढ़ माना जाता है. इसमें से कई उम्मीदवार ऐसे थे जो प्राइवेट सेक्टर में काम करते थे मगर वहां सैलरी बहुत कम थी. इसलिए 15000 की नौकरी के लिए चले आए. इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था और रोजगार का संकट भले मीडिया में न दिखाई दे, सड़कों पर कहीं ज्यादा गंभीर है. 2018-19 में कृषि, वन उपज और मछली पालन में विकास दर 4.9 प्रतिशत थी. 2019 में इसी सेक्टर में विकास दर आधी से भी कम हो गई है. 2.1 प्रतिशत.

अगर मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में विकास दर करीब 7 प्रतिशत से घट कर शून्य के नीचे चला जाए और खेती मछली पालन के सेक्टर में 4.9 प्रतिशत से घट कर 2.1 हो जाए अब आप इन्हीं दो आंकड़ों से हिन्दुस्तान के शहर और गांवों में फैली बेरोजगारी को समझ लीजिए. इस वक्त जो जानने वाली बात है वह यह कि पिछले एक साल मे देश भर में कितनी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं क्योंकि बिजली के उपभोग में भी कमी आई है. मीडिया अब इस बेरोजगारी को पहले की तरह कवर नहीं करता है इसलिए आप इन आंकड़ों से बहुत ज्यादा संवेदनशील नहीं हो पाते हैं लेकिन हर दिन हम तक पहुंचने वाले मैसेज बता रहे हैं कि नौकरी ने नौजवानों का मनोबल तोड़ना शुरू कर दिया है. 6 तिमाही से अगर पतन ही पतन है तो फिर इसका असर कितना होगा.

नोटबंदी के दूरगामी परिणाम कहां हैं ? तीन साल हो गए मगर न परिणाम का पता चल रहा है और न दूरगामी का. सितंबर में जीएसटी का संग्रह 19 महीने में सबसे कम रहा था. 1 लाख करोड़ से कम हो गया. संसद के इसी सत्र में वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने बयान दिया है कि पर्सनल इंकम टैक्स और कारपोरेशन टैक्स अक्तूबर में 17 प्रतिशत गिर गया. पिछले साल की तुलना में 61,000 करोड़ से घट कर 50,000 करोड़ पर आ गया. जब जीडीपी की दर 5 प्रतिशत हुई थी तब कारपोरेट टैक्स में भारी कमी की गई थी. उसका इस तिमाही पर तो कोई असर नहीं पड़ा. शायद इसका भी दूरगामी परिणाम आएगा. आप देखिए कि पिछली छह तिमाही से जीडीपी घटते घटते कहां तक आ गई है. वित्त वर्ष 18 की चैथी तिमाही में जीडीपी 8.1 प्रतिशत थी जो इस तिमाही में घट कर 4.5 प्रतिशत हो गई है.

मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की विकास दर अगर शून्य से नीचे जाएगी तो जाहिर है निर्यात पर असर पड़ेगा ही. अक्तूबर में निर्यात में 1 प्रतिशत की कमी आई है. पेट्रोलियम और चमड़ा उद्योग ठंडा पड़ गया है. सितंबर में निर्यात में तो और भी भारी कमी आई थी. भारत की अर्थव्यवस्था आईसीयू में चली गई है.

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