Home गेस्ट ब्लॉग मानवाधिकार कार्यकर्ता : लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी के खिलाफ दुश्प्रचार

मानवाधिकार कार्यकर्ता : लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी के खिलाफ दुश्प्रचार

2 second read
0
0
602

मानवाधिकार कार्यकर्ता : लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी के खिलाफ दुश्प्रचार

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता

भारत के हिन्दू मानवाधिकार कार्यकर्ता जब भारतीय मुसलमानों के लिए बराबरी और न्याय का मुद्दा उठाते हैं. साम्प्रदायिक लोग कहते हैं कि इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सारी कमियांं हिन्दू धर्म में ही दिखाई देती हैं. यह भी कहा जाता है कि अगर तुम्हें हिन्दू धर्म से इतनी ही समस्या है तो तुम भी इस्लाम ग्रहण कर लो या अगर तुम्हें भारत में समस्या है तो पाकिस्तान चले जाओ.

ठीक यही हाल पाकिस्तान में रहने वाले मुस्लिम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का होता है. पकिस्तान के मुस्लिम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से वहाँ के मुस्लिम कट्टरपंथी कहते हैं कि यह लोग इस्लाम के दुश्मन हैं या यह लोग भारत के एजेंट हैं वगैरह वगैरह.

एक बात साफ़ समझ लेनी चाहिए, जब भारतीय हिन्दू मानवाधिकार कार्यकर्ता मुसलमानों के लिए भी एक जैसे सामान व्यवहार की मांग करते हैं तो वह यह नहीं कह रहे होते कि मुसलमान हिन्दुओं के मुकाबले ज्यादा अच्छे होते हैं. मुसलमानों के लिए इन्साफ की मांग करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता यह भी नहीं कह रहे होते कि हिन्दू मुसलमानों के मुकाबले खराब होते हैं बल्कि मानवाधिकार कार्यकर्ता यह कह रहे होते हैं कि लोकतंत्र को सही अर्थों में लागू किया जाय और किसी को भी उसके धार्मिक विश्वास की वजह से भेदभाव नहीं झेलना चाहिए.

बहुत सारे मानवाधिकार कार्यकर्ता हिन्दू धर्म की कुरीतियों के खिलाफ लिखते हैं. वह ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वह हिन्दू धर्म को सुधारना चाहते हैं और इसमें व्याप्त बुराइयों को दूर करना चाहते हैं. हिन्दू धर्म की कुरीतियों के खिलाफ लिखने का मतलब यह नहीं है कि वे यह कह रहे हैं कि हिन्दू धर्म के मुकाबले इस्लाम अच्छा होता है. इस मामले में बड़ी गलत फहमी फ़ैली हुई है.

पकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इस्लाम का विरोधी कहा जाता है और भारत के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को हिन्दू धर्म का विरोधी कहा जाता है. इसी तरह जब हम सिपाहियों द्वारा निर्दोष आदिवासियों की हत्याओं और बलात्कार के मुद्दे उठाते हैं तो हमें नक्सली समर्थक कहा जाता है जबकि हम यह कह रहे होते हैं कि सिपाही समाज का प्रतिनिधी है और समाज का प्रतिनिधी सिपाही अगर बलात्कार करता है, इसका मतलब है कि पूरा समाज बलात्कार को समर्थन देने वाला बन गया है. हम समाज को बलात्कार और हत्याओं का समर्थन करने वाला बनने से बचाना चाहते हैं.

इसी तरह से जब हम सरकारी ज़ुल्मों का विरोध करते हैं तो कहा जाता है कि हम आतंकवादियों के समर्थक हैं जबकि हम कहना चाहते हैं कि सरकार अगर अपने ही नागरिकों पर ज़ुल्म करती है तो यह हालत न्याय और लोकतंत्र को कमजोर बनायेगी. इसलिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सही रूप से समझना ज़रूरी है क्योंकि यही वे लोग हैं जो समाज को कट्टरता, ज़ुल्म और पिछड़ेपन से आज़ाद करा कर आज़ादी बराबरी और अमन लाने में मदद करेंगे.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…