प्रतीकात्मक तस्वीर
विनय ओसवाल, वरिष्ठ पत्रकार
उत्तर प्रदेश में चल रहे तीन हजार 621 स्वास्थ्य केन्द्रों में से दो हजार 277 में बुनियादी सुविधाएं जैसे डॉक्टर, बिजली, पीने का पानी और केन्द्रों तक पहुंचने के लिए सड़कें नदारद हैं, यानी वह सिर्फ कागजों पर चल रहे हैं. सरकारी आंकडे बताते हैं कि सरकार बमुश्किल प्रति 927 लोगों के पीछे वह एक डॉक्टर ही उपलब्ध करा पा रही है. केंद्रीय स्वास्थ्य मन्त्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह आंकड़े उपलब्ध कराए हैं.
डॉक्टरों की उपलब्धता का यह आंकड़ा भी इसलिए कागजी है क्योंकि इनमें से भी बहुत से डॉक्टर रोजाना ड्यूटी पर नहीं आते. या तो वह लम्बी छुट्टी ले अपनी पत्नी या अन्य परिजनों, मित्रों द्वारा स्थापित निजी अस्पतालों को सेवाएं देते हैं, या फिर सिर्फ उपस्थिति की औपचारिकता पूरी कर ऐसे अस्पतालों, नर्सिंग होमों, चिकित्सालयों में पहुंंच जाते हैं.
अधिकांश कार्यरत कर्मचारियों की नियुक्ति ठेकेदारी प्रथा पर किये जाने की व्यवस्था है, जिन्हें स्थाई रूप से सेवा दे रहे डॉक्टरों की तुलना में बहुत कम पारिश्रमिक मिलता है. यह खेल सुचारू रूप से इसलिए चल रहा है कि जिला स्तर पर बैठे विभागीय अधिकारियों से लेकर सत्ताधारी नेताओं तक इस व्यवस्था की हर कड़ी इस तरह पोषित है कि सबकी जरूरतें पूरी हो रही हैं. सब सन्तुष्ट हैं क्योंकि इस औपचारिक व्यवस्था का बोझ मरीज, उसके परिजन और सरकारी खजाने से मिलने वाली पगार सब पर पड़ता है.
सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर आर्थिक रूप से विपन्न लोगों की आवाज मीडिया उठाता है लेकिन वह भी नक्कारखाने में तूती से ज्यादा असर नहीं करती.
स्थिति की भयानकता का अंदाजा इस बात से लगता है कि प्रदेश में डॉक्टरों के कुल 4509 पद सृजित है, जिनमें से 3165 पर किसी डॉक्टर की नियुक्ति हीं नही की गई है. 270 केन्द्रों पर पेयजल की, 213 पर बिजली की और 459 केन्द्रों पर पहुंचने के लिए सड़कें ही नहीं है. पाठक अनुमान लगा सकते हैं कि प्रदेश में झोलाछाप डॉक्टरों के पनपने को बढ़ावा किसकी लापरवाही से मिल रहा है.
केंद्रीय स्वास्थ मन्त्री हर्षवर्धन ने बताया कि अपने-अपने राज्यों में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाएंं राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाती है. केन्द्र राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को उनके द्वारा चलाई जाने वाली स्वास्थ सेवाओं और कार्यक्रमों को मजबूती प्रदान करने के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराता है. इसी में ठेके पर डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए सहायता भी शामिल है.
केन्द्र सरकार ने देश के विभिन्न मेडिकल कालेजों में पिछले पांच सालों में एमबीबीएस सीटों की संख्या 29,000 बढ़ाई है. डॉ. हर्षवर्धन के अनुसार वर्ष 2017-18 के बजट में केन्द्र ने डेढ़ लाख प्राथमिक केन्द्रों और उप-केन्द्रों को आयुष्मान भारत कार्यक्रम के अंतर्गत देख-भाल, स्वास्थ्य, रोगों की रोक-थाम एवं स्वास्थ्य कल्याण केन्द्रों में तब्दील करने की घोषणा की है.
इन केन्द्रों पर डॉक्टरों की उपलब्धता, बिजली, पीने के लिए पानी और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तक पहुंचने के लिए सड़कों की व्यवस्था राज्य सरकार कैसे करेंगी, लोगों का यह सवाल, सरकार से उत्तर की प्रतीक्षा में अपनी जगह खड़ा है.
कागजों पर की गई कार्यवाहियों और घोषणाओं से मरीजों का इलाज नहीं होता है, सरकारों के सामने इस बात को समझने की कोई मजबूरी निकट भविष्य में खड़ी होगी, इसकी कोई सम्भावना अभी तो नजर नहीं आ रही है. हम सब देख रहे हैं कि महाराष्ट्रा विधानसभा में चुनकर पहुंचे जनप्रतिनिधि मतदादाओं के निर्णय का चीरहरण कैसे कर रहे हैं.
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