Home गेस्ट ब्लॉग साम्प्रदायिकता की जहर में डूबता देश : एक दास्तां

साम्प्रदायिकता की जहर में डूबता देश : एक दास्तां

7 second read
0
0
1,012

साम्प्रदायिकता की जहर में डूबता देश : एक दास्तां

Md. Belalमो. बेलाल आलम, सामाजिक कार्यकर्ता, हेल्पिंग हैंड, पटना

बचपन मे हम सभी कभी पढ़ा और सुना करते थे, ‘मज़हब नही सिखाता. आपस में वैर रखना. हिंदी है हम वतन है हिन्दुस्तान हमारा.’ और हमारा देश चैनों-अमन से बिना किसी जाति-धर्म के एक-दूसरे के दुःख-सुख में साथ रहता था. पर आज के वक्त साम्प्रदायिक राजनीति ने समाज को इस कदर विषाक्त कर दिया है कि जिस सरकार को जनता देश के विकास के लिए चुनी है, वह सरकार अपने हित के लिए जाति और धर्म के नाम पर इंसान को इंसान का दुश्मन बना दिया है.

हमारे देश में शक और नफरत के नज़र से देखे जाने वाला इंसान और कोई नहीं वो मुसलमान है. मुझे लगता था कि हमारे देश के जो पढ़े-लिखे लोग हैं वे धर्म में भेदभाव नहीं रखते होंगे. पर आज जो मेरे साथ हुआ, इससे ये साबित हो गया कि राजनीतिक साम्प्रदायिक हवाओं ने हमारे देश में धर्म की ऐसी आंधी ला दी है, जिसके बंदिश में पूरा देश आ चुका है.

कल मैं और मेरे एक मित्र अशोक राज पथ, पटना के एक एयरटेल स्टोर पर गया. हम दोनों को अपना पुराना सिम एयरटेल से अपग्रेड कराना था. मैं कुर्ता पहने था और मेरे मित्र पैंट शर्ट में. जैसे ही हम स्टोर में प्रवेश करते हैं कि गार्ड ने पूछा, ‘क्या बात है ?’
मैंने बताया, ‘सिम अपग्रेड करना है.’
गार्ड ने मुझसे पूछा, ‘किसका सिम है ?’
मैंने कहा, ‘मेरा है.’
गार्ड ने पूछा, ‘किसके नाम पर है ?’
मैंने बताया, ‘मेरे नाम पर.’
फिर गार्ड ने पूछा, ‘सिम लाये हैं ?’
मैंने कहा, ‘हांं, लाए हैं.’
फिर पूछा, ‘कहां है ?’
मैंने कहा, ‘मोबाइल में.’
फिर गार्ड ने बोला, ‘। Id proof … है ?’
मैंने कहा, ‘मोबाइल में फ़ोटो है चलेगा ?’
उसने कहा, ‘नहीं.’
मैं समझ रहा था उसके खेल को. फिर मैंने बोला, ‘पैन चलेगा ?’
गार्ड ने बोला, ‘दिखाइए.’

मैंने पैन कार्ड निकाला और उसके हाथ में दे दिया. मेरा पैन कार्ड एक ट्रांसपेरेंट कवर में था. उस गार्ड ने पैन कार्ड को कवर से निकाल कर इस तरह से देखा मानो मैं कोई आतंकवादी था. ये सारा खेल एयरटेल स्टोर के अंदर कस्टमर केयर ऑफिसर के सामने हो रहा था. फिर उसने मेरा मोबाइल मांगा और कोड सेंड किया. फिर उसने मुझे नया सिम दिया.

बगल में मेरे मित्र थे, अब थी उनकी बारी.
उनसे पूछा, ‘सिम लाये हैं ?’
मेरे मित्र ने कहा, ‘हांं.’
गार्ड ने पूछा, ‘Id लाये हैं ?’
मित्र ने बोला, ‘नहीं.’
गार्ड ने बोला, ‘किसके नाम पर है ?’
मेरे मित्र ने अपना नाम बताया. फिर मेरे मित्र ने बोला, ‘नहीं हो पायेगा न ? id नहीं है. पर देखिए.’

बिना कुछ बोले एयरटेल स्टोर वाले ने उसे नया सिम इशू कर दिया. शायद आप समझ गए होंगे. मेरे मित्र हिन्दू थे और मैं मुस्लिम.

इस प्रकार की घटना ये दर्शाती है कि मुसलमानों के प्रति क्या मानसिकता बना दिया है देश में साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले कर्णधारों ने. बात यहीं खत्म नहीं होती है. सिम मिलने के बाद एक्टिवेशन काउंटर पर एग्जीक्यूटिव ने मेरा मोबाइल 10 से 15 तक ले कर रखा, जबकि मेरे मित्र का मोबाइल बिना छुए एक्टिवेट कर दिया गया.

एयरटेल स्टोर वाले अगर वेरिफिकेशन सिस्टम बनाते हैं तो वह सभी के लिए समान होना चाहिए, न कि किसी एक जाति या धर्म के लिए अलग. मैं शर्मिन्दा हूं समाज के ऐसे लोगों से जो समाजिक या व्यवसायिक कार्योंं में भी जातिवाद करते हैं. एक अच्छी सोच समाज और देश को आगे बढ़ा सकती है, तो एक बुरी और साम्प्रदायिक सोच देश को गुलामी के दलदल में भी धंसा देगी.

Read Also –

तुरंत कुचलिये इस सांप का फन
साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल : बादशाह अकबर का पत्र, भक्त सूरदास के नाम
कट्टरतावादी मूर्ख : मिथक को सत्य का रूप देने की कोशिश
बाबा रामदेव का ‘वैचारिक आतंकवाद’
हिंदुस्तान के बेटे बहादुरशाह जफर
मुसलमान एक धार्मिक समूह है जबकि हिन्दू एक राजनैतिक शब्द

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…