Home ब्लॉग कुत्ते की मौत मर गये महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण

कुत्ते की मौत मर गये महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण

24 second read
0
0
856

कुत्ते की मौत मर गये महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण

एम्बुलेंस के इंतजार में वशिष्ठ नारायण सिंह का पार्थिव शरीर

भारत एक देश है, जहां विद्वान कुत्ते की मौत मरते हैं और मूर्ख लाखों का सूट पहनकर, फर्जी डिग्री लेकर हवाई जहाज पर चढ़कर विदेशों का सैर करता है. भारत एक ऐसा देश जहां पढ़ने-लिखने को हिकारत की निगाह से देखा जाता है और गुंडे, दंगाइयों को सम्मानित किया जाता है, उसकी याद में स्मारक बनाया जाता है. ऐसी घृणित संस्कृति जनने वाला भारत देश का शासक जब ‘विश्व गुरु’ बनने का स्वांग रचता है और मूर्खों की भीड़ जोरदार तालियां बजाते हुए किसी गरीब आदमी की हत्या कर डालता है तब निश्चित तौर पर यह कहा जाना चाहिए कि हम इस देश में एक ऐसे रहते हैं जिसका भविष्य गोबर और गोडसे ही है. एक हास्यास्पद पहचान चिपकाये दुनिया के सामने हम महज एक मसखरे से अधिक और कुछ भी नहीं लगते, 130 करोड़ मसखरों का देश, जिसका भविष्य ही ‘गोबर’ और ‘गोडसे’ है, इससे अलग और कुछ नहीं.

कुत्ते की मौत मरने को विवश महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण और नोबेल पुरस्कार विजेता हरगोविंद खुराना का तुलनात्मक अध्ययन हमारे देश की व्यवस्था को समझने के लिए बेहद जरूरी है. सन् 1930 में भौतिकी विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पाने वाले पहले भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकटरमन ने एक बार कहा था, कि भारत में मेरे जैसे न जाने कितने ही रमन भरे पड़े है. किंतु आवश्यक संसाधनों व उपयुक्त अवसरों के अभाव में व या तो अपनी प्रतिभा गंवा बैठते हैं, या विदेशों की ओर पलायन कर जाते हैं, जहां उन्हें उनके अनुकूल वातावरण मिल जाता है. रमन के इन शब्दों में कितनी सच्चाई थी, इसका जीता जागता उदाहरण है महान वैज्ञानिक डॉक्टर हरगोविंद खुराना का उत्थान और महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का पतन है.

हरगोविन्द खुराना :

रायपुर एक छोटा सा गांव था, जिसमें केवल खुराना का परिवार ही एक मात्र शिक्षित परिवार था. अपनी नौकरी और पढ़ें लिखे होने के कारण खुराना के पिता और उनके परिवार का गांव और आसपास के क्षेत्र के लोगों बड़ा सम्मान और रूतबा था. खुराना का बचपन गांव के अन्य बच्चों के साथ ही स्वाभाविक रूप से खेल कूद में बीता, किंतु पढ़ने-लिखने में भी उनकी रूचि बचपन से ही हो गई थी. डॉक्टर हरगोविंद खुराना की प्रारंभिक शिक्षा गांव की ही एक पाठशाला से शुरू हुई थी. पाठशाला भी क्या थी, कभी-कभी पेड़ के नीचे बैठकर भी पढ़ना पढ़ता था.

बचपन से ही तीव्र बुद्धि के स्वामी हरगोविंद खुराना ने जब गांव की पाठशाला से 5वीं कक्षा उत्तीर्ण की तो उन्होंने दिखा दिया था कि प्रतिभा हो तो उसे कैसे भी वातावरण में निखारा जा सकता है. वे अपनी पाठशाला के सबसे होनहार छात्र थे. गांव की पाठशाला से प्राइमरी शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनका प्रवेश मुलतान के डी. ए. वी. हाईस्कूल की छठी कक्षा में करा दिया गया. उनके बडे भाई भी इसी स्कूल में पढते थे. इसी स्कूल में अंग्रेजी विषय से उनका पहली बार परिचय हुआ. जल्दी ही खुराना ने अंग्रेजी भाषा पर अपनी पकड मजबूत कर ली. जब खुराना ने मुल्तान के डी. ए. वी. हाईस्कूल से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की तो गणित, विज्ञान और अंग्रेजी विषयों में विशेष योग्यता प्राप्त करने के साथ-साथ वे अंकों के आधार पर प्रदेश में दूसरे स्थान पर आऐ.

सन् 1939 में उनका दाखिला लाहौर के डी.ए.वी. कॉलेज में करा दिया गया, जो शिक्षा के साथ-साथ राजनैतिक और क्रांतिकारी गतिविधियों के संदर्भ में देश के अग्रणी शिक्षा संस्थानों में से एक था. इंटर की परीक्षा में विज्ञान उनका प्रमुख विषय था, जो आगे उनके अध्ययन का केन्द्रीय विषय बनकर उभरा. सन् 1943 में उन्होंने रसायन विज्ञान को अपना प्रमुख विषय बनाते हुए बी.एस.सी की परीक्षा उत्तीर्ण की. वर्ष 1945 में रसायन विज्ञान विषय के साथ ही उन्होंने इसी कॉलेज से एस. एस.सी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की.

एम.एस.सी की परीक्षा प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण करने के बाद के बाद भी खुराना के पास एकमात्र डिग्री के सिवाय ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे वह अपने सपने और लक्ष्य को पूरा कर सके. उन्होंने नौकरी पाने के लिए कफी दौड-धूप की परन्तु उन्हें सफलता नही मिली. अचानक सरकार द्वारा एक योजना आरंभ की गई, जिसके अंतर्गत प्रतिभाशाली छात्रों को छात्रवृत्ति देकर विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेजा जाना था. खुराना प्रथम श्रेणी से एम. एस.सी तो कर ही चुके थे, अतः उन्हें भी इस योजना के लिए चुन लिया गया. इसी साल वे उच्च शिक्षा के लिए मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, लिवरपूल, इंग्लैंड चले गए. वहां उन्होंने विख्यात वैज्ञानिक, प्रोफेसर ए. रॉबर्टसन के अधीन रहकर अपना शोध कार्य पूर्ण किया और सन् 1948 में पी.एच.डी (डॉक्टर ऑफ फिलॉस्फी) की उपाधि प्राप्त की.

विदेश जाने का कारण: जिन दिनों डॉक्टर हरगोविंद खुराना लिवरपूल विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे थे. इसी बीच सन 1947 में उन्हें अपने देश भारत की स्वतंत्रता का सुखद समाचार मिला, किन्तु साथ ही विभाजन का दुःखद समाचार भी प्राप्त हुआ. इस विभाजन में उनके परिवार को अपनी जन्म-भूमि मुलतान को छोडकर शणार्थियों के रूप में भारत आना पड़ा तथा सरकारी सहयोग से दिल्ली मे जीवनयापन की व्यवस्था करनी पड़ी.

सन् 1948 के अंत में खुराना विदेश पढाई करके भारत लौटे. जिस योजना के अंतर्गत खुराना छात्रवृत्ति प्राप्त कर विदेश पढने गए थे, उसकी शर्त के अनुसार शैक्षिक योग्यता के अनुसार निश्चित समय तक सरकार की सेवा करनी होगी किन्तु भारत सरकार उनकी योग्यता के अनुरूप उन्हें पद देने में असमर्थ रही और योजना की दूसरे नियम के अनुसार डॉक्टर खुराना अपने दायित्व से मुक्त हो गए. उसके बाद डॉक्टर खुराना भारत के अनेक वैज्ञानिक संस्थानों मे काम की तलाश में गए. किन्तु कहीं भी उन्हें काम न मिला. देश के अनेक वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा डॉक्टर खुराना जैसे प्रतिभाशाली और उच्च शिक्षा प्राप्त युवक को इस प्रकार ठुकरा देना, केवल उनकी शैक्षिक योग्यता और प्रतिभा पर ही प्रश्न चिन्ह नहीं लगा, वरन उनके स्वाभिमान को भी इससे बहुत ठेस पहुंची और आखिर उन्होंने भारत में नहीं रहने का निश्चय कर लिया और वह वापस इंग्लैंड चले गए.

विवाह : जब डॉक्टर खुराना लिवरपूल विश्वविद्यालय मे शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, उसी दौरान उन्होंने कुछ दिनों के लिए स्विट्जरलैंड की यात्रा की थी. अपनी उसी छोटी-सी यात्रा के दौरान उनकी मित्रता एक सुंदर स्वीडिश युवती एस्थर से हो गई थी. यात्रा से लौटने के बाद भी यह मित्रता पत्र व्यवहार के माध्यम से बनी रही और धीरे-धीरे उस सीमा तक पहुंच गई कि दोनों ने एक दूसरे को जीवन-साथी के रूप में स्वीकार करने का निर्णय ले लिया. डॉक्टर हरगोविंद खुराना की पत्नी स्विट्जरलैंड के एक सांसद की पुत्री थी. डॉक्टर खुराना ने भी भारत में रह रहे अपने परिजनों को इससे अवगत कराया, और दोनों परिवारों की सहमति और उपस्थिति में सन 1952 में दोनों का विवाह हो गया.

अपने वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों से पूरी तरह संतुष्ट डॉक्टर हरगोविंद खुराना अब मनचाही जीवन संगिनी पाकर आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत कर ही रहे थे कि सन् 1952 के अंत में उन्हें पहली सफलता मिली.

वशिष्ठ नारायण सिंह : 

वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म बिहार के भोजपुर जिला में बसन्तपुर नाम के गांंव में हुआ था. इनका परिवार आर्थिक रूप से गरीब था. इनके पिताजी पुलिस विभाग में कार्यरत थे. बचपन से वशिष्ठ नारायण सिंह में विलक्षण प्रतिभा थी. सन 1962 में उन्होंंने नेतरहाट विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और उस समय के ‘संयुक्त बिहार’ में सर्वाधिक अंक प्राप्त किया.

वशिष्ठ जब पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते थे, तब कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी. कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और 1965 में वशिष्ठ को अपने साथ अमेरिका ले गए. 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से गणित में पीएचडी की और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बने. चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धान्त पर किये गए उनके शोधकार्य ने उन्हें भारत और विश्व में प्रसिद्ध कर दिया. इसी दौरान उन्होंने नासा में भी काम किया, लेकिन मन नहीं लगा और 1971 में भारत लौट आए. उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुम्बई और भारतीय सांख्यकीय संस्थान, कोलकाता में काम किया.

1973 में उनका विवाह वन्दना रानी सिंह से हुआ. विवाह के दिन भी पढाई के कारण उनकी बरात लेट हो गई थी. विवाह के बाद धीरे-धीरे उनके असामान्य व्यवहार के बारे में लोगों को पता चला. छोटी-छोटी बातों पर बहुत क्रोधित हो जाना, कमरा बन्द कर दिन-भर पढ़ते रहना, रात भर जागना, उनके व्यवहार में शामिल था. इसी व्यवहार के चलते उनकी पत्नी ने जल्द ही उनसे तलाक ले लिया.

 

 

 

 

 

 

 

स्टीफन हाॅकिंग्स :

 

 

 

 

 

 

 

Read Also –

वैज्ञानिक शोध : भारतीय मूर्ख होते हैं ?
कायरता और कुशिक्षा के बीच पनपते धार्मिक मूर्ख
युवा पीढ़ी को मानसिक गुलाम बनाने की संघी मोदी की साजिश बनाम अरविन्द केजरीवाल की उच्चस्तरीय शिक्षा नीति

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…