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70 साल की आजादी

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सात दशक के आजादी की परिणति सत्ता के हस्तांतरण में हो जाएगी, यह उन स्वधीनता सेनानियों ने कभी नहीं सोचा था. आजाद भारत में अंग्रजों से आजादी की लड़ाइयां लड़ी थी. उनके आजादी का मतलब था पूर्ण आजादी अर्थात् समाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक, राजनीतिक और वैचारिक. उनलोगांे का मतलबयह नहीं था कि केवल अंग्रेज यहां से भाग जाए बल्कि अंग्रेजों की बनायी व्यवस्था को भी बदलना उनका वास्तविक लक्ष्य था. व्यवस्था बदलने का एक स्वप्न था. जिस व्यवस्था में जात-पात, छुआ-छूत, अंध्विश्वास, रूढ़िवादिता, असहिष्णुता, गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, नारी-शोषण इत्यादि कुछ नहीं रहेगा अर्थात् एक समतामूलक समाज होगी.

‘वंदे मातरम्’, ‘भारत माता की जय’ के नारे की उद्घोष के साथ तिरंगा फहराकर गोेली खाने वालों, फाँसी चढनेवालों और आजीवन कारावास भोगने वालों ने यह कभी नही सोचा होगा कि मेरे शहीद होने के बाद मेरे परिवार और इस देश की गरीब जनता, दलित, अल्पसंख्यक, किसान और नारियों की यह दुर्दशा होगी. अन्यथा कभी वह इस आजादी की लड़ाई को नहीं लड़ता.

लेकिन आज क्या हुआ ? आजादी की लड़ाई में जिसका कहीं भी सहयोग नही रहा. जो ब्रिटिश शासन के हिमायती थे, आज वही लोग सत्ता में हैं ़वही भारत माता की जय बोलता है. भारत माता को जय नहीं बोलने वालो को राष्ट्रद्रोही घोषित करता है. भले ही अपने कार्यालय में आज तक तिरंगा झंडा नहीं फहराया हो. सत्ता की सुख के लिए जो राजनीतिक लोगों ने बाबरी मस्जिद को ढ़ाहा, क्या उन्हांेने कभी सोचा भी कि विदेश में रह रहे मेरे भाई-बहनों को इस का क्या परिणाम भोगना होगा ? इस मस्जिद को ढ़ाहने का जो परिणाम सामने आया, जिस पर बंग्लादेश की जानी-मानी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश के मुसलमानों द्वारा हिंदुओं पर किये गये अत्याचार के विरूद्व एक उपन्यास ‘लज्जा’ तक लिख डाली. जिस कारण वहां के शासक और कट्टरपंथी मुस्लामानांे ने उन्हे देशद्रोही करार दे दिया और आज वह भारतवर्ष में निर्वासित जीवन बीता रही है.

आज इस देश की करीब-करीब सभी पार्टियां देश की बुनियाद में लगी ईंट तक को बेचने पर आतुर हैं. इन सारी पार्टियों की कुकृत्य खासकर कांग्रेस की भ्रष्टाचार से तंग आकर और मोदी के बड़बोलेपन के कारण भारत की जनता ने बीजेपी के हाथों में सत्ता सौंपा. मोदी ने खुले मंच से बोला था ‘‘साल में एक करोड़ लोगों को हम रोजगार देंगे, हरेक राज्य में एम्स की स्थापना करेंगे, विदेशों की बैंक में जमा किया हुआ कालाधन वापस लायेंगे. प्रत्येक व्यक्ति के खाता मे पन्द्रह लाख रूपये दूंगा. पाकिस्तान यदि मेरे सेना का एक सिर काटेगा तो मैं उनका बीस सिर काटूंगा. चीन का घुसपैठ बंद करूंगा आदि-आदि’’. क्या इसमें से एक भी वादा उन्होंने पूरा किया ? अमित शाह जो बीजेपी का पार्टी अध्यक्ष हंै, अब वह मंच से सरेआम बोलते हैं कि ‘‘यह तो एक चुनावी जुमला था’’. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 70वीं स्वतंत्रता दिवस पर अपनी सरकार की उपलब्धी को गिनाते हुए पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर बलूचिस्तान, गिलगिट के लोगों का जिक्र किया लेकिन अपने ही देश के अशांत कश्मीर, अशांत पूर्वोत्तर राज्य, माओवादी और अपनी चुनावी वादों पर चुप्पी क्यों साध लिया ? मीडिया वालों ने चुनाव के समय मोदी के बारे में बराबर प्रचार करता रहा कि वह बड़ौदा के स्टेशन पर चाय बेचता था.लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने से किसी चाय वालों को शायद ही फायदा हुआ होगा. जबकि अडाणी, अंबानी को बेहिसाब फायदा हुआ. चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री 10 लाख का कोट विदेश से मंगा कर पहनते हंै. समाजवाद का नारा देने वाले मुलायम सिंह यादव डेढ़ करोड़ के बग्घी पर अपना जन्मदिन मनाते हैं, लालू प्रसाद यादव जो भेटनेरी काॅलेज, पटना के चपरासी के क्र्वाटर में रहते थे और लोहिया समाजवाद का नारा देते थे, 19 हेलीकाॅप्टर लेकर मुलायम सिंह यादव के यहां अपनी बेटी का छेका देने जाते हैं. नीतिश कुमार से मिलकर जाति आधारित राजनीति करते हुए अपने दोनों बेटों को मंत्री बनाते हंै और पत्नी और बेटी को राज्य सभा का सदस्य बनाते हैं.

गांधी के सपनों के स्वराज्य में जाति-भेद, धर्म-भेद और किसी प्रकार के भेदभाव के लिए कोई जगह नही थी. 1931 ई0 में ही वह कह रहे थे जो स्वराज्य श्रमिकों और कृषकों के लिए नहीं हो, उसका कोई अर्थ नहीं होगा. इंगलैण्ड के तत्कालीन प्रधानमंत्री कलेमेंट एटली ने 1947 ई0 में हिस्दुस्तानी आजादी का बिल ब्रिटिश पार्लियामेंट में रखा. जमकर बहस हुई. तब बिष्टन चर्चिल ने गुस्से में कहा था, ‘‘गुंडे, बवालियों और मुफ्तखोरों के हाथों में सत्ता चली जाएगी. तमाम हिन्दुस्तान के नेता छोटे कद के होंगे और तिनके जैसा वजन होगा.उनकी जुबान मीठी, लेकिन दिल मुर्खों जैसा होगा. वे लोग सत्ता के लिए आपस में लड़ते रहेगें. हिन्दुस्तान इस लड़ाई में खत्म हो जाएगा. एक बोतल पानी और ब्रेड का टुकड़ा भी टैक्स से नहीं बच पायेगा और इन लाखों लोगों का खून एटली के मत्थे मढा जायेगा.’’ आज चर्चिल के द्वारा कहीं गई सारी बातें यहां के नेताओं ने सही साबित कर दिया. आज जो भ्रष्टाचार, दुराचार, बलात्कार, हिंसा, अपराध, अन्याय, उत्पीड़न, शोषण, भेदभाव, लूट और झुठ है, उसका आजादी से कैसा रिश्ता है ? आज चारों तरफ असहिष्णुता, दलित-उत्पीड़न, असुरक्षा, छुआ-छूत, भय और आतंक का माहौल क्यों है ? आज का दिन पुनरावलोकन का है. न्यायलाय में भ्रष्टाचार है. 43 प्रतिशत जजोें का अभाव है. विकास का सारा रास्ता बंद है. आज विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पढ़ाई का माहौल खत्म है. दलित छात्र आत्माहत्या कर रहे हैं.

67 करोड़ भारतीय 33 रूपये प्रति दिन के खर्चा पर जिन्दा है. 75 प्रतिशत ग्रामीणों की आय 5000 रूपये मासिक से भी कम है. 56 प्रतिशत परिवार अभी भी भूमिहीन हैं.

जिंदल, अडाणी, अंबानी इत्यादि कारपोरेट घराने को 0.1 प्रतिशत के ब्याज दर पर ऋण दिया जाता है़ जबकि गरीब जनता को मवेशी पालने के लिए 24 प्रतिशत के ब्याज दर पर ऋण दिया जा रहा है. क्या यही स्वतंत्र भारत का सपना है ? आजादी के 70वीं वर्ष में हम जितनी जल्दी इस अन्याय, उत्पीड़न और भ्रष्टाचारियों की पहचान कर लें, उतना ही बेहतर होगा. यह आजादी जश्न नहीं है आज भी यह एक सपना की तरह है.

डाॅ. रामाश्रय यादव

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