मोदी छत्तीसगढ़ जाकर कहते हैं कि आदिवासी युवाओं को हथियार छोड़ कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेना चाहिये, लेकिन ये सैनिक आदिवासियों की ज़मीनों, जंगलों और पहाड़ों पर कब्ज़ा करने के लिये भेजे जाते हैं, ताकि उन ज़मीनों, पहाड़ों और खनिजों को अमीर पूंजीपतियों की कम्पनियों को सौंपा जा सके. सैनिक और बढ़ेंगे, यानि आदिवासियों का दमन और अत्याचार अभी और बढ़ेगा. पत्रकारों पर हमले बढ़ेंगे. वकीलों, साहित्यकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को माओवादी कहने का चलन बढ़ जायेगा. इसके साथ ही आदिवासी इलाकों में लोकतांत्रिक गतिविधियां और भी असंभव हो जायेंगी.
भारत सरकार ने आन्तरिक सुरक्षा का बजट बहुत बढ़ा दिया है. इसके बाद ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में 76,578 रिक्तियां भरने के लिए एक बड़ा भर्ती अभियान शुरू किया है. इसका मतलब बिल्कुल साफ है. आदिवासी इलाकों में और ज़्यादा सैनिक भेजे जायेंगे. सैनिक जंगलों में आदिवासियों को सुरक्षा देने के लिये नहीं भेजे जाते, ये सैनिक आदिवासी की ज़मीन, जंगल और पहाड़ की रक्षा करने के लिये नही भेजे जाते, बल्कि ये सैनिक इससे उलटे काम करने के लिये भेजे जाते हैं.
ये सैनिक आदिवासियों की ज़मीनों, जंगलों और पहाड़ों पर कब्ज़ा करने के लिये भेजे जाते हैं, ताकि उन ज़मीनों, पहाड़ों और खनिजों को अमीर पूंजीपतियों की कम्पनियों को सौंपा जा सके. सैनिक और बढ़ेंगे, यानि आदिवासियों का दमन और अत्याचार अभी और बढ़ेगा. पत्रकारों पर हमले बढ़ेंगे. वकीलों, साहित्यकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को माओवादी कहने का चलन बढ़ जायेगा. इसके साथ ही आदिवासी इलाकों में लोकतांत्रिक गतिविधियां और भी असंभव हो जायेंगी. अभी भी जब आदिवासी विरोध प्रदर्शन के लिये बाहर आने की कोशिश करते हैं तो हज़ारों सिपाही जंगलों में ही आदिवासियों का रास्ता रोक लेते हैं.
कल ही दिन के 11 बजे पुलिस ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के माड़ इलाके में तलाशी अभियान के नाम पर माओवादियों के बीच हुई मुठभेड़ की नई कहानी गढ़ी है, जिसमें 10 माओवादियों के मारे जाने का एलान किया है. मारे गये ये सभी “माओवादियों” के पास से भराठी बन्दुकें व अन्य मामूली किस्म के हथियार बरामद हुये है, जिसका इस्तेमाल करना माओवादियों ने एक जमाने से छोड़ दिया है. साफ है पुलिस ने एक बार फिर 10 आदिवासियों की हत्या कर दी है.
मोदी छत्तीसगढ़ जाकर कहते हैं कि आदिवासी युवाओं को हथियार छोड़ कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेना चाहिये, लेकिन लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में भाग लेने वालों पर हमले करवाते हैं. अभी अमीर पूंजीपतियों के लिये सत्ता और नाटक खेलेगी. आपका ध्यान आदिवासी इलाकों में चलने वाले हमलों से हटाने के लिये हिन्दु-मुस्लिम तनाव बढ़ाया जायेगा. यह नक्सलवाद का मामला नहीं है.
आज़ादी के बाद से आज तक एक भी जगह बिना सिपाहियों की मदद के आदिवासियों की ज़मीन पर कब्जा हुआ ही नहीं है, इसलिये गरीबों के बच्चों को सिपाही बना कर दूसरे गरीबों को मारने भेजा जा रहा है. आगे की कहानी बहुत खून और आंसुओं से भरी है. एक लम्बी लड़ाई के लिये कमर कस लीजिये. हम इसे रोकने मे अपनी पूरी ताकत लगा देंगे. हम समझते हैं इस सब को, इसलिये जीतेंगे हम ही.
– हिमांशु कुमार व अन्य
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