Rs.37,00,00,0,00,000.00 (3 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपये). ये आरबीआई का वो पैसा है जिससे वो देश की इकॉनमी को स्थिर रखती है और इस पर कुछ ब्याज भी कमाती है. अब आरबीआई कानून के सेक्शन 7 का इस्तेमाल कर के मोदी जी इस धन को हथियाना चाहते है.
सरकार का कहना है कि देश आर्थिक इमरजेंसी में है और सरकार को इस धन की ज़रूरत है जिससे वो इकॉनमी को संभालेगी. अब सवाल ये है कि अगर देश का विकास हुआ है तो ये इमरजेंसी कहां से आई ? और अगर वाकई में इमरजेंसी है तो देश को बताया क्यों नहीं जा रहा इस इमरजेंसी के बारे में ? क्योंकि ये इमरजेंसी नोटबंदी, जीएसटी और मोदी जी के दोस्तों के 12 लाख करोड़ के एनपीए की वजह से आई है.
2008 की वैश्विक मंदी में भी भारत सरकार को इमरजेंसी का बहाना देकर आरबीआई के पैसे हथियाने की ज़रूरत नहीं पड़ी तो मोदी जी तो सिर्फ पैट्रोल-डीजल पर देश की जनता से 12 लाख करोड़ ज्यादा वसूल चुके है, दूसरी लूट के पैसे अलग, फिर भी मोदी जी को आरबीआई के 3 लाख करोड़ चाहिए ?
ये सारा पैसा जा कहां रहा है ?
अब अगर RBI का पैसा गया तो उसे भी मोदी जी वैसे ही इस्तेमाल करेंगे जैसे देश की तिजोरी के सारे पैसों को किया. सारा पैसा धन्ना सेठों की जेबों में जायेगा. पर उससे भी खराब बात ये होगी कि आरबीआई जिस काम के लिए बनी है वो काम नहीं कर पायेगी.
ये कितना खराब होगा इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अम्बानी का आदमी उर्जित पटेल, जिसे खुद मोदी जी ने आरबीआई गवर्नर बनाया था वो इसे रोकने इस्तीफा देनेकी धमकी दे चुका है.
अगर ये हुआ तो मार्किट और रुपये की गिरावट छोड़ो, आरबीआई पर से दुनिया का भरोसा उठ जाएगा. ये भरोसा बनाने में देश को 70 साल लगे है, ये 1 सेकिंड में खत्म हो जाएगा.
ये रफाल से बहुत बड़ा कांड है पर सवाल सिर्फ 1 है. मोदी सरकार पिछली सारी सरकारों से कई गुना अधिक रुपया जनता की जेबों से काट रही है, चाहे जीएसटी या कई सारे टैक्स-सेस के बहाने या पैट्रोल-डीजल पर हो रही लूट के ज़रिए, तो ये सारा पैसा जा कहां रहा है ? योजनाओं की तो सिर्फ घोषणाएं होती है, किसी योजना में तो पैसा खर्च नहीं हो रहा. अगर खर्च हो रहा है तो सिर्फ पब्लिसिटी पर. फिर सारा पैसा जा कहां रहा है ?
ये पैसा 3 गुना दाम पर खरीदे रफाल के ज़रिए अम्बानी की जेब में जा रहा है. ये पैसा बैंकों के ज़रिए नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या की जेब में जा रहा है. ये पैसा आईएल एन्ड एफएस के ज़रिए संदेसरा और राकेश अस्थाना की जेब में जा रहा है. ये पैसा एनपीए के ज़रिए रुइया, अडानी, टोरेंट, जिंदल की जेबों में जा रहा है. ये सब ऑन पेपर है, सब को दिखता है जो देख-समझ सकता है.
क्या यही है नया भारत ? ये है विकास ? ये सब ऐसे ही चलते रहना चाहिए ? असली विकास की जगह सिर्फ विकास की झूठी पब्लिसिटी ही चाहिए देश को ? इस पब्लिसिटी के लिए देश के गरीबों और मध्यम वर्ग से दुगना टैक्स लूटा जा रहा है ?
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