भारत की राष्ट्रवादी सरकार को कोई भी आंकड़ा परेशान नहीं करता, क्योंकि यह आंकड़े रखता ही नहीं. आंकड़े रखना न केवल कठिन काम है अपितु आंकड़े रखने से दिमाग खराब हो जाता है. झूठ-मूठ टेंशन होता है.
WHO के अनुसार भारत में कोरोना से मृत्यु की संख्या 47 लाख है. इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए इस संस्था ने कोविड पीरियड के पहले उसी कालक्रम में हुई मौतों की संख्या और कोविड के दौरान हुए मौतों की संख्या में तुलनात्मक अध्ययन किया है. और भी वैज्ञानिक डाटा के आधार पर इस निष्कर्ष तक पहुंचा है.
भारत सरकार कह रही है कि WHO का निष्कर्ष ग़लत आंकड़ों पर निकला है और उन्होंने गणितीय विधि का इस्तेमाल किया है. भारत सरकार ने किस विधि का इस्तेमाल किया है, नहीं बताया है.
वैसे तीन का पहाड़ा नहीं जानने वाले प्रधानमंत्री की सरकार के पास गिनती के लिए अगर अंकगणित के सिवा और कोई विशेष ज्ञान उपलब्ध हो तो कुछ कहा नहीं जा सकता है. भारत सरकार का आंकड़ा 4 लाख 80 हज़ार है. किस आधार पर यह निकला है, किसी को नहीं मालूम.
वैसे मुद्दे की बात ये है कि जब पचास लाख लोग मरते हैं तो परोक्ष रूप से दो करोड़ ज़िंदगियों पर सीधा असर पड़ता है. इन पचास लाख लोगों में से अधिकांश मौतें यूपी, महाराष्ट्र और गुजरात में हुई हैं. इन तीनों में से दो जगहों पर राष्ट्रवादी सरकार है और यूपी में तो दुबारा चुन कर आई है.
स्पष्ट है कि कि कोरोना की मौतों का कोई राजनीतिक प्रभाव नहीं है. ऐसे में भारत सरकार को मौतों के आंकड़े छुपाने की कोई ज़रूरत नहीं है. गर्व से कहो हम हिंदू हैं, जो सभी मर्ज़ की दवा है.
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