उत्तर प्रदेश की नृशंस हत्यारी पुलिस के हाथों 29 सितम्बर के प्रातः 2 बजे मारे गये विवेक तिवारी के शव को ठंढ़ा पड़े चंद घंटे ही बीते होंगे कि उनकी पत्नी कल्पना तिवारी ने फौरन राज्य की फासिस्ट-हत्यारी योगी आदित्यनाथ की सरकार को चिट्टी लिखते हुए अपने पति के शव के साथ मोल-भाव करते हुए 1 करोड़ रूपये और पुलिस विभाग में एक सरकारी नौकरी की मांग कर दी. योगी सरकार ने भी अपने प्रबल समर्थक विवेक तिवारी की पत्नी को आनन-फानन में बुला कर 40 लाख रूपये और एक उच्च सरकारी पदों पर नियुक्ति की मांग को मान लिया. क्या मालूम अगली चुनावों में उसे चुनावी टिकट से भी नवाजा जाये.
कल्पना तिवारी का पत्र योगी सरकार के नाम
योगी-मोदी सरकार के हत्यारी फासिस्ट सरकार के समर्थक विवेक तिवारी की मौत के बाद मीडिया और सोशल मीडिया पर जिस तरह लोग उबल पड़े, उसका एक अंश भी कल्पना तिवारी को महसूस नहीं हुई. रूपये और नौकरी का आश्वासन मिलते ही कल्पना तिवारी एक बार फिर इस योगी सरकार की न केवल प्रबल समर्थक बन गई है, वरन् लगे हाथ राजनीतिक बयान देते हुए केजरीवाल पर हमले कर दिये, जिससे इसको रत्ती भर भी मतलब नहीं था.
नीचता की प्रकाष्ठा को पार करते हुए कल्पना तिवारी की यह मनोदशा हर बार उजागर हुई है, जब कभी देश में दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं पर हमले हुए हैं. इनके कहकहे गूंजे हैं. कहना नहीं होगा विवेक तिवारी और उनका पूरा परिवार इन हत्याओं का प्रबल पक्षधर है. विवेक तिवारी की हत्या को अब यह परिवार दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की हत्या और उत्पीड़न के क्रम में हुई एक महज हादसा मानता है. इसके एक और प्रबल क्रूर रूप उभर कर सामने आया है, और वह कि उत्तर प्रदेश समेत देश भर में अब दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं पर हमले बढ़ेंगे.
यहां हम विवेक तिवारी और उसके परिवार के सोच को रखना चाहते हैं ताकि हम इन हत्यारी-फासिस्ट सरकार के प्रबल समर्थक के वास्तविक चेहरा हो पहचान सके. वरना हमें याद है हेमंत करकरे जैसे बहादुर अधिकारी की हत्या के बाद मिलने वाली 1 करोड़ की राशि और नौकरी को ठुकराते हुए उनकी पत्नी ने जबर्दस्त प्रतिवाद किया. रोहित बेमुला हमें याद है, जिनकी मौत के एवज में उनकी मां को मिलने वाली धनराशि को उनकी मां ने ठोकर मार दी और अपने बेटे के न्याय के लिए दर-दर भटकी पर इस हत्यारी-फासिस्ट सरकार से कोई भी समझौता करने से साफ इंकार कर दिया.
विवेक तिवारी के साले विष्णु शुक्ला की इस फेसबुक पोस्ट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि निजी तौर पर यह नौजवान और उसका पूरा परिवार राज्यसंपोषित आतंकवाद और राज्य की तानाशाही का कितना बड़ा समर्थक है! यह नौजवान और उसका पूरा परिवार जिस जातिवादी और सांप्रदायिक नफरत ने इसे राज्यसंपोषित आतंकवाद और राज्य की तानाशाही का दिवाना है, वही उसके लहू से ‘राष्ट्रवादी स्नान’ कर रहा है.
अब जब विवेक तिवारी के मौत के बाद संघी मिजाज के इस परिवार ने देश की संघी फासिस्ट सरकार को बचाने और दलित-मुसलमानों की हत्या को जायज ठहराने की योगी-मोदी की इस मुहिम के साथ एक बार फिर खड़ी हो गई, जिस पर वह शुरू से ही कायम थी. यहां प्रस्तुत है विवेक तिवारी के साले विष्णु शुक्ला का पोस्ट, जिसे वह अपने फेसबुक अकाउंट से डिलीट कर दिया है.
विवेक तिवारी के साले विष्णु शुक्ला के पोस्ट का स्क्रीनशॉट
“असाधारण स्थिति हो तो निर्णय भी असाधारण लेना चाहिए. नक्सलवाद के समाधान से पहले दो परिस्थितियों पर थोड़ी चर्चा जरूरी है.
1. 1974 में बंगाल के मुख्यमंत्री श्री सिद्धार्थ शंकर रे ने नक्सलवाद का दमन किया था. उसमें गेहूं तो जम कर पिसे, पर थोड़े घुन भी पीस गए. परिणाम ये हुआ कि कांग्रेस बंगाल में अलोकप्रिय हो गयी और आज तक वह वहां सत्ता में वापस नहीं आई.
2. जब पंजाब में आतंकबाद चरम पर था. तब तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने अपने सलाहकारों से उसका समाधान पूछा. किसी ने कहा, ‘‘सर, समाधान आसान है, पर पंजाब में सरकार को सैक्रिफाइस करना होगा.’’
राजीव गांधी तैयार हो गए. केपीएस गिल को पूरा समर्थन दिया सरकार ने, और कुछ ही समय में आतंकवाद समाप्त हो गया.
पंजाब में कांग्रेस की सरकार भी समाप्त हो गयी.
लोकतंत्र में कठोर कदम सरकारों को अलोकप्रिय बनाते हैं, जिसके डर से सरकारें कठोर कदम उठाने से डरती है.
सरकार सर्जिकल स्टाइक इसलिए कर पाई क्योंकि पाकिस्तानियों से वोट नहीं लेना था.
बीजेपी खुद कितने उतार-चढ़़ाव के बाद सत्ता में आई है, स्वभाविक है कि जाना नहीं चाहती.
बीजेपी कश्मीर और छत्तीसगढ़ में सत्ता का मोह त्यागे. सत्ता का लालच इतिहास में मूंह दिखाने लायक नहीं छोड़ता.
कंधार हाइजैक आज तक बीजेपी को शर्मिंदा करता है. इतिहास मानसिंह को नहीं जानता, जो सत्ता के लालच में मुगलों के तलवे चाटे, इतिहास राणा प्रताप को जानता है, जिसने सत्ता को लात मारी और स्वाभिमान के लिए, सभी कुर्बानियां दी.
इतिहास में राणा प्रताप ही अमर हुए. मोदी के पास मौका है. देखते हैं वो क्या चुनते हैं ? सत्ता या न्याय ?
बीजेपी दो जगह अपने सरकार का त्याग करे.
सेना और अर्धसैनिक बलों को अधिकार दे और इस बीमारी को समूल नष्ट करे. दिल्ली में मानवाधिकार संगठन के नाम पर चल रही दुकानों पर ताला लगाना जरूरी है.
दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू, जामिया मिलिया इस्लामिया, एएमयू आदि में पल रहे बौद्धिक आतंकवादियों की पहचान हो और न्याय प्रक्रिया से गुजारकर वहीं पहुंचाया जाए, जहां प्रोफेसर साईबाबा जैसे लोग हैं.
दशकों से यहां जो राज्य के खिलाफ बंदूक को उठाने और चलाने का वैचारिक प्रशिक्षण दे रहे हैं, उन्हें भी उनके अंजाम तक पहुंचाया जाए.
असली लड़ाई कश्मीर या छत्तीसगढ़ में नहीं, सरकार को दिल्ली में लड़नी है. ये बेहद शातिराना ढंग से कश्मीरी अलगाववादियों …”
यहां पर उसका पोस्ट समाप्त नहीं होता है. हलांकि अब यह पोस्ट उसके अकाउंट पर अब नहीं नहीं है, पर उसका स्क्रीनसूट पर उसका यह लेख इतना ही आ पाया है. बावजूद इसके उनका यह पोस्ट मोदी के फासिस्ट-हत्यारी सरकार को किस तरह ललकार रहा है, स्पष्ट है. उनके बहनोई की हत्या इसी फासिस्ट-हत्यारी सरकार के द्वारा किये जाने के बाद भी अब वह इसे भूला कर संभवतया एक बार फिर वह मोदी-योगी की हत्यारी-फासिस्ट सरकार का प्रबल समर्थक बन गया है.
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