31 जुलाई अमर कथाकार, उपन्यासकार प्रेमचन्द जी का जन्म दिन. स्थान – हादी हाशमी स्कूल, गया. 11 बजे दिन से विचार गोष्ठी का आयोजन. विषय था – वर्तमान समय, किसानों- मजदूरों का आन्दोलन और प्रेमचन्द की प्रासांगिकता. आयोजक – नागरिक अधिकार रक्षा मंच, बिहार और भगत सिंह चिंतन मंच, गया.
एक पखवारा पूर्व से विभिन्न गांवों में प्रेमचन्द की जीवनी और उनकी चुनी हुई कहानियों के पाठ के माध्यम से संपर्क अभियान चल रहा था. इसी क्रम में प्रेमचन्द जी पर केन्द्रित नौंवी व दसवीं के विद्यार्थियों का लिखित इम्तिहान भी हुआ था. कई शिक्षकों, प्रोफेसरों, शिक्षाविदों- बुद्धिजीवियों, विद्यार्थियों ने गोष्ठी में अपनी सुनिश्चित उपस्थिति की सूचना दी थी. अपनी तैयारी और कार्यक्रम की भावी सफलता से आयोजक खुश थे.
लेकिन 30 जुलाई की शाम से तेज आंधी के साथ मुसलाधार बारिश होने लगी. आयोजकों के माथे पे चिंता की लकीरें साफ दिखने लगीं. 31 जुलाई की सुबह में भी यही हाल था. हादी हाशमी स्कूल का प्रांगण भी पानी से पूरा भर गया. गोष्ठी प्रारंभ होने की संभावना क्षीण हो गई. 11 बजे के करीब बारिश थोड़ा थमा, तब तक मुख्य अतिथि डॉ. तैयब हुसैन, सेवानिवृत प्राध्यापक, छपरा विश्वविद्यालय समेत हम कुल 11 लोग हॉल में जमा हो चुके थे.
बारिश के थोड़ा थमते ही सबों ने फोन घुमाना शुरू कर किया. सबों से संपर्क होते ही मलिन चेहरे पे थोड़ा सुकुन का भाव आया. फिर देखते-देखते 12.15 बजे तक हम कार्यक्रम प्रारंभ करने की सम्मानजनक स्थिति में आ चुके थे. 12.30 बजे जब साथी विश्वमोहन ने माइक थामा तो करीब 70 प्रतिबद्ध लोग हॉल में उपस्थित हो चुके थे. फिर तो गोष्ठी चली. खूब बातें हुई. प्रेमचन्द जी की शिल्प, उनकी कहानियों, उपन्यासों, पात्रों, स्थान-परिस्थिति के साथ भावी रणनीति पर भी चर्चा हुई.
कुछ वक्ता बहके भी जिनके कारण गोष्ठी ने अपेक्षा से थोड़ा ज्यादा वक्त खींचा. पर क्रमशः खतरनाक होते काल – परिस्थिति के हिसाब से इस तरह की वार्ता की निरंतरता पर सबकी एक राय रही. बाद में प्रेस बयान तैयार किया गया, जो इस प्रकार रही.
नागरिक अधिकार रक्षा मंच, बिहार और भगत सिंह चिंतन मंच, गया के संयुक्त तत्वाधान मे ग्रामीण यथार्थ के पुरोधा, मुक्ति संग्राम के चितेरे प्रेमचन्द की जयन्ती के अवसर पर हादी हाशमी स्कूल, गया में वर्तमान समय, किसानों – मजदूरों का आन्दोलन और प्रेमचन्द की प्रासंगिकता पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता विद्यालय के प्राचार्य नफासत करीम ने की.
इस गोष्ठी में जहां एक ओर रंजीत कुम्पार, मनीष, याहिया, बालेश्वर यादव, डॉ. अनुज लुगुन (प्राध्यापक, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गया), श्यामचन, महेन्द्र जी ने प्रेमचन्द के साहित्य को नयी चुनौतियों के संदर्भ में देखते हुए कहा कि उनका साहित्य न सिर्फ अंग्रेजी साम्राज्यवाद से मुक्ति हेतु जनता के संघर्ष का साहित्य है, बल्कि सामंतवादी-पूंजीवादी तंत्र के शोषण-उत्पीड़न से त्रस्त किसानों, मजदूरों, दलितों और स्त्रियों की मुक्ति की कामना तथा संघर्ष का जीवन्त दस्तावेज भी है.
दूसरी तरफ पुकार, डा. मनीष, डा. श्रीधर करुणानिधि (दोनों गया कॉलेज गया के प्राध्यापक), सच्चिदानन्द प्रभात, डॉ. कृष्णनन्दन यादव (सेवानिवृत प्राध्यापक सह पूर्व विधायक) ने प्रेमचन्द के पात्रों विद्रोही गोबर और हठी सुरदास का हवाला देकर नयी आर्थिक नीति के कारण किसानों, मजदूरों के हालात पर चर्चा करते हुए कहा कि वे पलायन कर रहे हैं, आत्महत्या के लिए विवश हैं. देश के विभिन्न प्रांतों में होरी के नाती-पोते घुट घुट के मर रहे हैं.
वर्तमान समय में जनविरोधी, किसान विरोधी कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आन्दोलन आठ महीने से लगातार जारी है. पर पूंजीपतियों के इशारे पर चलनेवाली मौजूदा सत्ता व्यवस्था अपने अडियल रुख के कारण इनकी मांगों को अनसुना कर इन पर दमन का हर रूप अपना रही है.
चर्चित पेगासस जासूसी कांड के शिकार पत्रकार संजय श्याम ने जनपक्षधर पत्रकारों, साहित्यकारों पर हो रहे दमन के खिलाफ गोलबन्द होने के लिए प्रेमचन्द के साहित्य के व्यापक अध्ययन की आवशयकता पर बल दिया और पत्रकारों को जनता का पक्ष चुनने की अपील किया.
बतौर मुख्य वक्ता प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. तैयब हुसैन ने विस्तार से प्रेमचन्द के आर्यसमाज से गांधीवाद होकर मार्क्सवाद तक के साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि मानवीय संवेदना के बिना साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती. प्रेमचन्द रचित विभिन्न कहानियों का हवाला देते हुए डॉ. हुसैन ने कहा कि प्रेमचन्द की विशेषता इस बात में है कि वे किताबी झान की तुलना में अपने अनुभवों के आधार पर बढ़े और समाज के अंतर्विरोधों को पहचानते हुए तथा यातनाग्रस्त आदमी को उनके बीच पेश करते हुए वे उनके प्रति न तो भावुक हुए और न जिन्दगी के प्रति उनका नजरिया एक क्षण भी धूमिल हुआ.
दलित और अछूत के संबंध में आई गलतफहमियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि प्रेमचन्द के साहित्य में दलित हर वह इंसान है चाहे वह जमीन्दारों, सूदखोरों के हाथों शोषित होनेवाला मनोहर, होरी या हल्कू हो या सामाजिक कुरीतियों के कारण यातना भोगनेवाली सुमन, निर्मला जैसी स्त्रियां हों या अंध औद्योगीकरण की आंधी से विस्थापित होते पांडेपुर गांव के सूरदास, भैरो, बजरंगी जैसे लोग हों . प्रेमचन्द का साहित्य अमानवीय शक्तियों के जबरदस्त प्रतिरोध का साहित्य है जिससे जीवन पर्यन्त सीखते रहने की जरूरत है.
अंत में प्रेमचन्द पखवारा साहित्य के तहत मंच द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में शामिल और सफल विद्यार्थियों के बीच पुरस्कार भी वितरित किया गया. बीच-बीच में रामानन्द जी एवं विजय वर्मा के गीतों ने गोष्ठी को जीवन्त बनाये रखा. विचार गोष्ठी को सफल बनाने में मसूद मंजूर, सुनील सिन्हा, रामजतन प्रसाद, अमर नाथ चेग्विन, प्रेम जी, विश्वमोहन की भूमिका सराहनीय रही. गोष्ठी में विद्यार्थियों-युवाओं की दमदार उपस्थिति प्रेमचन्द की विरासत को आगे बढ़ाने हेतु आशा जगा रही थी.
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