अरे अंडू, कैसा है ??
ठीक है कर्जा ज्यादा हो गया है. कोई नई दुकान खुलवा दो.
पेट नहीं भरता तेरा, ककड़ी के. बोल क्या चाहिए ?
ग्रेन मार्किट में खूब मुनाफा है. अनाज तो खाना ही पड़ता है सबको. कुछ चमत्कार करो कि इस धंधे में मोनोपॉली का कुछ जुगाड़ बने.
हम्म !!! समस्या क्या है ?
अरे। खेती स्टेट का सब्जेक्ट है. 30 ट्ठो स्टेट, 30 टाइप के कानून, तीस किस्म के टैक्स. कानून एक जैसा हो तो धंधा करते बने. फिर जहां से ज्यादा माल मिलेगा, वहांं मंडियां खड़ी है. मैं क्या मंडियों के बाहर बचा खुचा माल, तसला लेकर खरीदूं ??
अरे, छोटी-सी बात है. एक कानून बना देता हूंं किसानों के कल्याण के लिए. मंडी खत्म, एमएसपी खत्म. किसान का भला … हि हि हि.
तू गंडो थ्यो छे. बवाल हो जाएगा. फिर स्टेट सब्जेक्ट में तू कानून कैसे बनाएगा ?
मैं सब बना सकता हूंं. अव्वल तो स्टेट सब्जेक्ट, सेंटर सब्जेक्ट हिंदुस्तानियों को समझ नहीं आता. किसी को आया तो उसे वामपन्थी बोलकर चुप करा देंगे. बवाल घण्टा नहीं होगा. हमारी पार्टी वाले स्टेट विरोध करेंगे नहीं, उनको अमित सम्भाल लेगा. दूसरी पार्टी वाले स्टेट विरोध किये तो मीडिया सम्भाल लेगा. चिंता नक्को. तू तो धड़ाधड़ गोदाम बनाने शुरू कर…
अरे, इतना आसान नहीं नंदू. गोदाम बना कर भर लूं, तो जमाखोरी का कानून अलग खड़ा है. फायदा तो तब है न, जब कम रेट जमा करके बाद में ज्यादा रेट पर निकालूं.
ठीक है. दूसरा कानून बना देता हूंं. जित्ता मर्जी जमा कर लेना..अब चलूं, फोटो सेशन पे जाना है ??
अरे, ठहर. इतने से बात नहीं बनेगी.
ओफ्फो, अब क्या रह गया ? भाई पे भरोसा नहीं तुझे… !
भाई पे भरोसा है. किसानों पे नहीं.
अब क्या करना है ?
देख, किसान साले अपनी मर्जी की फसल उगाते हैं. एक ही गांव में अलग-अलग फसल. एक फसल की दस वेरायटी. अब मैं विदेश में बड़ा सौदा कर लूं, और उस वेरायटी की उतनी सप्लाई न मिले तो मर जाऊंगा ना ??
अरे लल्ला, मेरे रहते, तू कैसे मरेगा ! एक और कानून बना दूंगा – कांट्रेक्ट फार्मिंग. पहले से ठेका बांध लेना. क्वालिटी और क्वांटिटी सब पहले से फिक्स. खेत से उठवा लियो. अब चलूं, बाई-बाई.
नंदू भाई, नंदू भाई. एक मिनट, एक मिनट …
ओफ्फो. अब क्या है ?
कांट्रेक्ट में तो मैं भी फंस जाऊंगा. कोई ऊंच-नीच हुई तो लाखों किसान करोडों कोर्ट केस ठोक देंगे.
हाहाहाहाहाहा …
हंस क्यों रहा है भाई, सिरियस बात है.
हाहाहा. अबे ऐसा कानून बनाऊंगा कि दोनों तरफ से तू मारेगा, और मामला एसडीएम की कोर्ट में गिरेगा. तब भैया भये कोतवाल तो डर काहे का.. हांय ??
मा कस्सम. मैंने तो सोचा ही नहीं था, नंदू भाई. ब्रिलिएंट. सुप्पर ब्रो…
सुपर … तो मैं हूंं. सुपर से ऊपर हूंं बल्कि … अब चलूं.
बिल्कुल, तू उधर चल मैं इधर गोदाम बनाता हूंं…जय श्रीराम.
हाहाहा. गोदाम के उद्घाटन में बुलइयो. विकास की हेडलाइन बनेगी, तेरा विज्ञापन भी हो जायेगा. चल, जय श्रीराम, बाय बाय …
- मनीष सिंह
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