विष्णु नागर
इस देश के नागरिक के नाते यह बात आहत करनेवाली थी कि जर्मनी के साथ हुए समझौतों के बाद जर्मन चांसलर के साथ उनका एक संवाददाता सम्मेलन तय था. वह हुआ मगर मोदी जी के इनकार के कारण सवाल पूछना स्थगित रखा गय. उन्होंने अपना लिखित बयान पढ़ा बस. जो बाइडेन के साथ संवाददाता सम्मेलन के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ था. इसे क्या प्रेस कॉन्फ्रेंस कहेंगे ?
मोदी जी वैसे तो 56 इंची हैं मगर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से बेहद डरते हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद मई, 2019 में उन्होंने भाजपा के बैनर तले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, मगर उसमें भी भाषण-सा दिया था सरकार की उपलब्धियों के बारे में मगर संवाददाताओं के किसी सवाल का जवाब नहीं दिया था. यानी पहले से तय स्क्रिप्ट के बाहर वह कुछ बोल नहीं सकते.
यह बात चुभती है कि दुनिया के इतने बड़े लोकतांत्रिक कहे जाने वाले देश का प्रधानमंत्री इतना अयोग्य है कि देश-विदेश में संवाददाता सम्मेलन तक नहीं कर पाता. आजाद भारत के वह पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं. इस कारण उनकी हंसी भी उड़ती है. उनकी हंसी उड़ना यानी देश की हंसी उड़ना है, जिसके लोकतंत्र को उन्होंने पहले ही मजाक बना कर रख दिया है.
मुझे याद है कि राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार अमेरिका जाकर न्यूयॉर्क में बहुत आत्मविश्वास के साथ संवाददाता सम्मेलन किया था और बेहतरीन ढंग से जवाब दिये थे. नरसिंह राव प्रधानमंत्री जैसे भी हों, सवालों का जवाब देते थे. उन्होंने किसी देश के प्रधानमंत्री के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर के बाद संवाददाता सम्मेलन करने का नियम बनाया था.
उसमें सीमा यह रखी गई थी कि इसमें केवल उस देश के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर ही सवाल किए जा सकते थे. अटल बिहारी वाजपेयी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, गुजराल साहब आदि आदि भी संवाददाता सम्मेलन करते थे. अक्सर ऐसे संवाददाता सम्मेलन विज्ञान भवन में होते थे, जो देश-विदेश के संवाददाताओं से भरे होते थे.
मनमोहन सिंह के समय संवाददाता के रूप में उनके साथ मुझे चीन-जापान यात्रा पर उनके. साथ जाने का मौका मिला था. वापसी में उन्होंने हवाई जहाज के अंदर देश-विदेश से संबंधित तमाम सवालों के जवाब दिये, वही जिनके बारे में कहा जाता था कि वह मौनीबाबा हैं!
जर्मनी में भी प्रधानमंत्री कह सकते थे कि वह द्विपक्षीय संबंधों तथा ताजा समझौतों पर ही सवालों के जवाब देंगे. ऐसा ही अमूमन होता भी है मगर मोदी जी को यह भी मंजूर नहीं था. शायद उनकी खुद इस मामले पर पकड़ न हो. अफसरों ने समझौते तैयार किए, विदेश मंत्री ने उन पर मोहर लगाई. इन्होंने समारोहपूर्वक हस्ताक्षर कर दिए. फोटो खींच गया प्रसारित हो गया, इनका काम हो गया !
हम देख ही चुके हैं कि पिछले दिनों मोदी-यूक्रेन शिखर वार्ता का जो लाइव वीडियो जारी किया गया था, उसमें भी वह टेलिप्रांप्टर से पढ़कर बोल रहे थे. लग ही नहीं रहा था कि दो देशों के प्रमुख बातचीत कर रहे हैं.
एक उनकी अयोग्यता यह भी है, जो बरसों पहले वरिष्ठ पत्रकार करण थापर से टीवी इंटरव्यू में जाहिर हुई थी कि असुविधाजनक सवाल के आते ही वह बीच में इंटरव्यू छोड़कर चले गए थे. एनडीटीवी के एक संवाददाता को वह गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने साथ हवाई जहाज से ले गये थे. उसके सवालों से इतने खफा हुए कि उसे साथ ले जाने से मना कर दिया. कहा कि इसके लिए कार का प्रबंध कर दो. वह उस सरकारी कार से नहीं गया. अपनी कंपनी की ओर से कार लेकर वापस गांधी नगर आया.
इतने बड़े देश को एक प्रधानमंत्री गोदी मीडिया के सहारे देश चला रहा है और असहमति को यथासंभव कुचल रहा है. प्रेस स्वतंत्रता के मामले में हम नीचे से नीचे पायदान पर पहुंचते जा रहे हैं. गोदी मीडिया के एंकरों को कभी-कभी दिये गये साक्षात्कार प्रायोजित हैं, यह साफ झलकता है. इसके द्वारा फैलाई गई नफरत, झूठ और जीहुजूरी हास्यास्पदता की सारी सीमाएं लांघ चुकी है.
इस मीडिया के खिलाफ कभी कोई केस नहीं होता मगर एक फेसबुक पोस्ट, एक ट्विट पर गुजरात के विधायक को पकड़कर असम ले जाया जाता है और वह एक केस में छूट जाता है तो दूसरे में फंसा दिया जाता है. इस देश की सरकार को असहमति नहीं चाहिए और मजे की बात यह है कि हम लोकतांत्रिक देश माने और मनवाये जाते हैं.