मैं भी ख़ुश था ‘वाल्मीकि’ शब्द अपनाकर लेकिन उसने मेरा सारा भरम तोड़ दिया.
बात उन दिनों की है जब मेरा एडमिशन इंटर कॉलेज की कक्षा 6 में हुआ था. नए स्कूल में तमाम नए और अजनबी छात्र मिले. हर कोई मुझसे मेरी जाति जानना चाहता था. उनमें से अधिकांश को इससे कोई मतलब नहीं था कि मैं भी साफ़ सफाई से स्कूल आता हूं.
जाति वाले प्रश्न मुझे विचलित कर देते थे क्योंकि आसपास के लोगों ने, प्राइमरी स्कूल के अध्यापकों और वहां के बच्चों ने मुझे कक्षा 5 तक बता दिया था कि मैं ‘अजीब तरह का इंसान’ हूं. जानवरों को छुआ जा सकता है, उनके मलमूत्र को छुआ जा सकता है लेकिन मैं, मैं और मेरी जाति के दूसरे लोग ऐसे अजीबोगरीब इंसान हैं, जो छूने योग्य नहीं हैं.
लोग जानवरों के मल मूत्र, यहां तक कि मानव मल तक को देखकर इस तरह से मुंह नहीं बिचकाते हैं जिस तरह से मुझे देखकर…
मैं कक्षा 9 में पहुंचा. इसी बीच न जाने कहां से मेरी जाति को एक नया नाम दे दिया गया.
‘वाल्मीकि’, जी हां वाल्मीकि. नया नाम मिल जाने से मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था. ख़ुशी-ख़ुशी मैंने और मेरी जाति के दूसरे लोगों ने यह नाम अपना लिया. अपनाता कैसे नहीं, उस ‘भंगी’ शब्द ने मेरे मानव होने पर प्रश्नचिन्ह जो लगा रखा था. जब भी कोई तिरस्कार भरी आवाज़ से ‘भंगी’ कहता था, ऐसा लगता था जैसे ‘पिघला हुआ शीशा’ मेरे कानों में उसने भर दिया हो.
अपनाता कैसे नहीं यह नाम ? जब मैं मासूम बच्चा था, नहीं जानता था क्या होती है जाति ? साथ के अगड़ी जातियों के बच्चों से दुत्कारा गया, कभी अध्यापक द्वारा क्रूरतापूर्ण तरीके से सजाएं दीं तो कभी दुकानों से उठाकर भगा दिया गया, बस यही भंगी होने के कारण.
अब मैं बगैर किसी झिझक के मैं अपनी जाति बता देता था. नया नाम पाकर मैं कल्पनाओं में उड़ने लगा था. मैं सोचने लगा था कि अब मुझे भी लोग इंसान मानेंगे.
कक्षा 9 में मुझे कई नए छात्र मिले. हर कोई मुझसे मेरी जाति पूछना चाहता था. मैं सभी को अपनी जाति ‘वाल्मीकि’ बता देता था लेकिन मेरी ख़ुशी क्षणिक थी. नया नाम मिल जाने से लोगों के मेरे प्रति व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया. तभी एक घटना ने मेरी कल्पनाओं के पंखों को जलाकर भस्म कर दिया.
छुट्टी के समय एक ब्राह्मण छात्र ने मुझसे कहा ‘तुम अपनी जाति क्या बताते हो …?’
मैंने जवाब दिया – वाल्मीकि.’
उसने मुझसे पूछा – ‘वाल्मीकि’ किस जाति के थे…?
मैंने जवाब दिया – मेरी जाति के.
उसने पूछा – भंगी…?
मैंने जवाब दिया – हां
इस पर वो गरजते हुए बोला – वाल्मीकि ब्राह्मण थे. किसी दूसरे ब्राह्मण को मत कह देना कि वाल्मीकि भंगी थे, बहुत पिटोगे.
तब से समय काफी आगे निकल चुका है. बहुत कुछ बदल चुका है. मेरे नाम के साथ जुड़कर एक ब्राह्मण ऋषि ‘अछूत’ हो गया है. दुनिया हाईटेक युग में प्रवेश कर चुकी है.
मैं एक अध्यापक बन चुका हूं. नहीं बदला है तो उनका मेरे प्रति व्यवहार.
मैं आज भी एक ‘अछूत’ हूं. आज भी लोग मेरे पास से निकलने से बचते हैं कि कहीं छू न जाएं.
मैं भी बदला हूं.
मैंने लोगों को अपनी जाति ‘वाल्मीकि’ बताना बन्द कर दिया. उनके बताए धर्म और ईश्वर को हमेशा के लिए अपने अंदर से मार दिया. मानवता के उन दुश्मनों की एक एक रीति रिवाज को त्याग दिया, जिन्होंने इस देश पर जातिप्रथा थोपी.
मालूम नहीं कब यह देश जागेगा ! जब भी जागेगा उन लोगों को कभी माफ़ नहीं करेगा जिन्होंने यहां के समाज को ‘जातियों की गंदगी’ से भरे टैंक में सड़ने के लिए डाल दिया है.
- शैलेन्द्र फ्लेमिंग
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]