हालांकि एंगेल्स ने अपने जीवनकाल में अपने साथियों के द्वारा अपने 55वें जन्मदिन मनाये जाने पर कहा था ‘मुझे इस दिन को मनाये जाने की कोई वजह नहीं दिखती. मैं तो मार्क्स की प्रसिद्धि का आनंद ले रहा हूं.’
लेकिन जब आज पूरी दुनिया में पूंजीवाद नंग-धड़ंग होकर डंके की चोट पर घोषणा करता फिर रहा है कि लूट खसोट का यह तंत्र ही अविजित व्यवस्था है तब हमें निश्चित तौर पर जनवादी मंतव्यों को तेज धार देने के लिए कालजयी विद्वानों के संस्मरण दिवसों को जोर-शोर से मनाने होंगे.
वस्तुत: मार्क्सवाद ही दुनिया में एकमात्र ऐसा सुप्रयोजन विचार है जो बिल्कुल भी अपनी तारीफ नहीं सुनना चाहता. हम अनुभव करते हैं कि समर्थन या तारीफ किसी भी विचार को और अधिक विकसित होने की संभावनाओं को शून्य कर देते हैं, यानि कि वह अंतिम सत्य जैसा आभास देता है, जबकि एक जनपक्षधर मानवतावाद की स्थापना होने तक सभी कथित अंतिम सत्य महज एक धोखा हैं और भविष्य को न देख पाने की धूर्त बीमारी भी.
मार्क्स एंगेल्स के अविजित दार्शनिक अनुसंधान हमें किसी भी विचार में संदेह करने का तजुर्बा देते हैं. इस हिसाब से एक उन्नतोनृमुखी मानवतावादी व्यवस्था के लिए जरूरी है कि हमें अपने साथियों की जमात में अधिक से अधिक आलोचकों को जगह देनी होगी, निर्मम आलोचक ही हमारे सच्चे साथी हैं. हमें आदर्शवादी, लोकतंत्रवादी, मानवतावादी सबमें अपने वर्गमित्र टटोलने होंगे.
जाहिर सी बात है खोजबीन की तमाम झल्लाहट भरी कोशिशों के दरमियान असहजता, अभद्रता, सामंती गाली-गलौज का सामना भी करना होगा. लेकिन हमें इन असहजताओं के बीच ऐसे विचारों जो मार्क्सवाद-लेनिनवाद की केन्द्रीयता के मद्देनजर सहानुभूति व समरूपता दर्ज करते हों लपक लेना होगा. हद दर्जे की असभ्यता के बावजूद भी अगर आलोचना में चिंता है तो निश्चित तौर पर वो हमारे साथी हैं.
चूंकि संवाद का मकसद संभावनाओं की खोज है तो हमें असभ्यता को संभावना के छानन में छान लेना होगा और संभावनाओं के मोतियों को तराशने के लिए समय का बलिदान देने के लिए तैयार हो जाना होगा. अभद्रता या असभ्यता मानव समाज की दुर्व्यवस्थित सामाजिक अवस्थिति को प्रतिबिंबित करते हैं इसलिए व्यवस्था में आमूल चूल बदलाव की अवश्यंभावी शर्तों से वाकिफ विवेकवान साथियों को असभ्यतापूर्ण संवाद पर प्रतिशोधी शब्दावलियों को हर हाल में सहन करने का वैचारिक आत्मबल रखना होगा और प्रतिरोधी चीजों का जुटान कर उसे क्रांतिंकुरणों में विकसित कर एक विहंगम राजनीतिक छटा से आच्छादित भूमंडल निर्माण में जुट जाना होगा.
फ्रेडरिक एंगेल्स के जन्म दिवस विशेष पर यही सच्ची उत्सवधर्मिता होगी. फ्रेडरिक एंगेल्स को क्रांतिकारी सैल्यूट के साथ… – ए. के. ब्राइट
फ्रेडरिक एंगेल्स की मृत्यु पर लिखते हुए लेनिन ने उन्हें ‘तर्क की शानदार मशाल और शोषितों के लिए धड़कने वाले बेमिसाल ह्रदय’ की संज्ञा दी थी. आज उनकी मृत्यु के 129 साल बाद भी यह मशाल उनके विचारों के रूप में धधक रही है. 28 नवम्बर 1820 को आज के ‘यूपरटाल’ (Wuppertal) जर्मनी (तत्कालीन प्रशा) में एंगेल्स का जन्म हुआ था. छात्र जीवन से ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था. मार्क्स की तरह एंगेल्स भी तत्कालीन ‘लेफ्ट हेगीलियन ग्रुप’ के सदस्य थे. इसी दौरान एंगेल्स ने मार्क्स द्वारा संपादित अखबार ‘Rheinische Zeitung‘ में कई लेख लिखे. हालांकि अभी एंगेल्स की मार्क्स से मुलाक़ात नहीं हुई थी.
संपन्न मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे एंगेल्स के पिता मिल मालिक थे. जाहिर है वे एंगेल्स की राजनीतिक गतिविधियों को कतई पसंद नही करते थे. अंततः पिता के दबाव देने पर 1842 में एंगेल्स को ब्रिटेन के मानचेस्टर शहर जाना पड़ा, जहां उन्हें पिता की एक सहस्वामित्व वाली फैक्ट्री का मैनेजमेंट देखना था. यहीं उनकी मुलाक़ात उन्ही की फैक्ट्री में काम करने वाली एक आयरिश मजदूर महिला मैरी बर्न्स से हुई. यह दोस्ती जल्द ही प्यार और पार्टनरशिप में बदल गयी.
हालांकि उन्होंने औपचारिक शादी कभी नहीं की. दोनों का ही शादी की बुर्जुआ संस्था पर विश्वास नहीं था. शादी के औपचारिक बंधन में न बंधने के कारण ही शायद मार्क्स भी एंगेल्स और मैरी के रिश्ते की अहमियत को नहीं समझ पाए. इसलिए 1863 में मैरी बर्न्स की मृत्यु की सूचना मिलने के बाद भी मार्क्स ने एंगेल्स को उस वक़्त लिखे अपने पत्र में इस संबंध में कुछ भी नहीं लिखा. इससे एंगेल्स भीतर तक काफ़ी दुखी हो गए. हालांकि बाद में मार्क्स को इसका अहसास हुआ और उन्होंने एंगेल्स से माफ़ी मांगी.
मैरी बर्न्स ने एंगेल्स के जीवन पर निर्णायक असर डाला. मैरी बर्न्स राजनीतिक रूप से सजग महिला थी और मजदूरों के ‘चार्टिस्ट आन्दोलन’ की कार्यकर्ता थी. चार्टिस्ट आन्दोलन के नेताओं से एंगेल्स का परिचय मैरी बर्न्स ने ही कराया. इसके बाद एंगेल्स चार्टिस्ट आन्दोलन के अखबार ‘नॉर्दन स्टार’ के लिए लगातार लिखने लगे. मैरी बर्न्स ने ही एंगेल्स को वहां के मजदूरों की गन्दी संकरी झुग्गियों से और उनके रोजमर्रा के जीवन-संघर्ष से परिचय कराया. राउल पेक की मशहूर फिल्म ‘द यंग कार्ल मार्क्स’ में इस पहलू को बहुत शानदार तरीके से दिखाया है.
मैरी बर्न्स ने कई बार मजदूर झुग्गी बस्तियों में एंगेल्स को पिटने से भी बचाया. क्योंकि मजदूर शुरू में एंगेल्स पर संदेह करते थे कि ये मजदूर बस्ती में किसी स्वार्थवश ही आया होगा. सच तो यह है कि 1844 में लिखी एंगेल्स की क्लासिक रचना ‘The condition of the Working Class in England‘ एंगेल्स के इसी प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित थी और इस अनुभव से परिचय कराने का पूरा श्रेय मैरी बर्न्स को जाता है. मैरी बर्न्स के साथ ही एंगेल्स ने आयरलैंड की यात्रा की. आयरिश रास्ट्रीयता के सवाल को समझने में इस यात्रा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
एंगेल्स की मार्क्स से एक संक्षिप्त मुलाक़ात 1842 में हो चुकी थी. लेकिन 1844 में दोनों पेरिस में (मार्क्स यहां निर्वासित जीवन जी रहे थे) 10 दिन साथ रहे और रात दिन के जुझारू बहस मुबाहिसा के बाद दोनों उस मजबूत वैचारिक एकता की जमीन पर खड़े हो गए जिसे आज हम मार्क्सवाद के रूप में जानते हैं. जर्मनी के मशहूर समाजवादी फ्रेंज मेहरिंग (Franz Mehring) लिखा है कि एंगेल्स की विनम्रता के बावजूद यह सच है कि मार्क्स को अर्थशास्त्र के कई महत्वपूर्ण पहलुओं से एंगेल्स ने ही परिचय कराया.
बहरहाल इसी के साथ दुनिया के सर्वहारा को मार्क्स और एंगेल्स के रूप में अपना कमांडर और पथप्रदर्शक मिल गया.
एंगेल्स ने मार्क्स के साथ मिलकर पहली किताब ‘होली फॅमिली (1845)’ लिखी और 1846 में दूसरी किताब ‘जर्मन इडीयोलोजी’ लिखी. ‘जर्मन इडीयोलोजी’ में पहली बार क्रांतिकारी द्वन्दात्मक भौतिकवादी दर्शन सुव्यवस्थित रूप से सामने आया. पूंजीवाद में सर्वहारा जिस झूठी चेतना (false consciousness) का कैदी हो जाता है, उसका जिक्र पहली बार इसी किताब में आया. ‘मनुष्य की भौतिक स्थितियां उसकी चेतना का निर्धारण कराती है, ना की उसकी चेतना उसकी भौतिक स्थितियों का’, तमाम आदर्शवादी कुहासे को चीर देने वाली यह क्रांतिकारी पंक्ति इसी किताब से है.
”परिस्थितियां मनुष्य का निर्माण करती है और पलट कर मनुष्य भी परिस्थितियों का निर्माण करता है’, यह शानदार द्वंदात्मक सिद्धांत इसी पुस्तक में पहली बार प्रतिपादित किया गया. इसी किताब में एंगेल्स ने एलान किया की ‘मुक्ति कोई मानसिक कार्यवाही नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक कार्यवाही है’. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इस क्रांतिकारी किताब को छपने के लिए इसे रूस में क्रांति होने तक का इन्तेजार करना पड़ा. 1935 में ही जाकर सोवियत रूस में यह पहली बार प्रेस का मुंह देख सकी और सामान्य पाठकों तक पहुंच सकी.
1846 में मार्क्स एंगेल्स ने मिलकर ‘कम्युनिस्ट करेस्पोनडंस कमेटी’ (Communist Correspondence Committee) बनाई ताकि सामान विचारों वाले लोगों के साथ एकता बनाई जा सके. इसी प्रक्रिया में ‘द लीग ऑफ़ द जस्ट’ से होते हुए ‘कम्युनिस्ट लीग’ में दोनों शामिल हो गये. इसके तरफ से घोषणापत्र तैयार करने का काम मार्क्स और एंगेल्स के कन्धों पर पड़ा. यह घोषणापत्र फरवरी 1848 में छपकर आया. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ के आने के बाद फिर दुनिया वैसी कभी नहीं रही, जैसी वह इसके पहले थी.
दुनिया का अब तक का सबसे खूबसूरत और क्रांतिकारी नारा ‘दुनिया के मजदूरों एक हो, मजदूरों के पास खोने के लिए सिर्फ बेड़ियां है और जीतने के लिए पूरी दुनिया है’ यहीं से आया. ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ ने दर्शन को दार्शनिकों के सर से उतार कर मजदूरों के संघर्षों के बीच स्थापित कर दिया. उसने एलान किया- ‘अब तक दार्शनिकों ने संसार की व्याख्या की है, लेकिन असल सवाल उसे बदलने का है’.
दर्शन के क़रीब 2000 सालों के इतिहास में पहली बार दुनिया बदलने का सवाल दर्शन का केन्द्रीय सवाल बन गया. मानव समाज के समस्त इतिहास को (इस वक़्त तक आदिम साम्यवाद की जानकारी नहीं थी) ‘वर्ग संघर्ष के इतिहास’ के रूप में पहली बार सूत्रित किया गया. सामाजिक विज्ञान में इस सूत्रीकरण का महत्व ठीक वैसे ही है, जैसे भौतिक विज्ञान में आइन्स्टीन का E = mc2.
‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ का ‘कम्युनिज्म का सिद्धांत’ वाला हिस्सा अकेले एंगेल्स ने लिखा. यहां एंगेल्स ने बहुत ही सरल तरीके से कम्युनिज्म के सिद्धांत को समझाया और पहली बार हमें भावी वर्ग विहीन समाज की एक स्पष्ट रूपरेखा मिली. एंगेल्स ने सर्वहारा को एक स्वतंत्र वर्ग के रूप में मान्यता दी और उसकी मुक्ति का वैज्ञानिक आधार प्रस्तुत किया. यहां एंगेल्स ने एक और महत्वपूर्ण प्रस्थापना भी दी कि बिना पूरे समाज को मुक्त किये सर्वहारा खुद को मुक्त नहीं कर सकता.
यह महत्वपूर्ण संयोग था कि ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ के छपते ही लगभग पूरे यूरोप में सामंतवाद और राजशाही के खिलाफ़ क्रांति शुरू हो गयी. मार्क्स ने इसे ‘कांटीनेंटल रेवोलुशन’ की संज्ञा दी. अब सिद्धांत को व्यवहार में उतारने का वक़्त था. दर्शन को जमीन पर उतारने का वक़्त था. एंगेल्स और मार्क्स यहां भी अग्रिम पंक्ति में खड़े थे. दोनों तत्काल ही इस क्रांति में कूद गए.
‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ की पोजीशन के अनुसार ही पहली बार सर्वहारा ने स्वतंत्र राजनीतिक वर्ग के रूप में संघर्ष शुरू किया. एंगेल्स ने लिखा- ‘हर जगह क्रांति मजदूर वर्ग की कार्यवाही थी, मजदूरों ने ही बैरिकेड खड़ी की, मजदूरों ने ही इस क्रांति में अपना जीवन न्योछावर किया.’ एंगेल्स और मार्क्स ने जर्मनी के कोलोन (Cologne) को अपना संघर्ष क्षेत्र बनाया. बाद में एंगेल्स जर्मनी के राइन प्रान्त आकर बन्दूक लेकर बैरीकेटिंग की लड़ाई भी लड़ी. कम लोग यह जानते है कि एंगेल्स सैन्य मामलों के सिद्धांत और व्यवहार दोनों में सिद्धहस्त थे. एंगेल्स ने 1841 में कुछ समय प्रशा की सेना में भी काम किया था. मार्क्स के परिवार में एंगेल्स को प्यार से अक्सर ‘मिस्टर जनरल’ कह कर संबोधित किया जाता था.
बहरहाल मजदूरों की इस स्वतंत्र राजनीतिक पहलकदमी से बुर्जुआ वर्ग घबरा गया और उसने क्रांति को अधूरा छोड़कर सामंती शक्तियों के साथ हाथ मिला लिया और अपनी बन्दूकें अपने पूर्व सहयोगी सर्वहारा की तरफ मोड़ दी. जून आते आते क्रांति की दिशा पलट गयी और ग़द्दार बुर्जुआ ने सामंती शक्तियों के साथ मिल कर मजदूरों का कत्लेआम शुरू कर दिया. मार्क्स ने इस पर बहुत तीखा कमेन्ट करते हुए लिखा कि बुर्जुआ रिपब्लिक फरवरी क्रांति में नहीं बल्कि जून प्रतिक्रांति में स्थापित हुआ था.
अब पूरे यूरोप में प्रतिक्रियावाद का दौर था. एंगेल्स और मार्क्स अपने विचारों और अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण पूरे यूरोप में ‘कुख्यात’ हो चुके थे. जर्मनी और फ्रांस की पुलिस खास तौर पर उन्हें खोज रही थी. अन्ततः दोनों को भाग कर इंग्लैंड आना पड़ा. जहां अपेक्षाकृत प्रतिक्रियावाद का प्रभाव कम था.
यहां आकर एंगेल्स ने अपनी इच्छा के विरूद्ध जाकर पुनः अपने पिता की मानचेस्टर स्थित काटन मिल में काम करने का निर्णय लिया. यह काम उन्होंने सिर्फ अपने प्रिय दोस्त कामरेड मार्क्स और उनके परिवार की मदद करने के लिए किया. इसी मदद के कारण मार्क्स ‘कैपिटल’ लिखने का अपना ऐतिहासिक मिशन पूरा कर सके. मार्क्स ने खुद इसे स्वीकार करते हुए एक पत्र में एंगेल्स को लिखा- ‘कैपिटल लिखने का काम पूरा हो गया. यह सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे त्याग के कारण संभव हुआ.’
कैपिटल का भाग 2 और 3 एंगेल्स ने मार्क्स की मृत्यु के बाद मार्क्स के अधूरे और अस्त-व्यस्त नोट्स के आधार पर अपना पूरा रक्त निचोड़ कर पूरा किया. लेनिन ने तो साफ साफ कहा कि जिस तरह से एंगेल्स ने कैपिटल भाग 2 और 3 को पूरा किया है, इसे मार्क्स और एंगेल्स दोनों की सांझा कृति माना जाना चाहिए. एंगेल्स मार्क्स व उनके परिवार की आर्थिक मदद के अलावा उन निर्वासित राजनीतिक मजदूरों की भी मदद कर रहे थे, जो मुख्यतः जर्मनी और फ्रांस के प्रतिक्रियावाद से बचकर यहां आये थे. शायद इसी पहलू के कारण लेनिन ने उन्हें ‘सबके लिए धड़कने वाले बेमिसाल ह्रदय’ की संज्ञा दी थी.
लेकिन इन्ही व्यस्तताओं के बीच 1850 में एंगेल्स ने एक और शानदार किताब लिख दी- ‘जर्मनी में किसान युद्ध’. इस किताब में उन्होंने प्रोटेस्टंट धर्म आन्दोलन के पीछे की सामाजिक-आर्थिक शक्तियों को सामने रखा और सिद्ध किया कि धर्म के आवरण में प्रोटेस्टंट आन्दोलन वास्तव में बुर्जुआ आन्दोलन था. लेकिन इस किताब का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि सर्वहारा को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए किसानों के साथ संश्रय क़ायम करना होगा. निश्चय ही यह लिखते हुए एंगेल्स के दिमाग में हाल की 1848 की क्रांति की असफलता भी रही होगी.
यह सोचना भूल होगी कि इस दौरान मार्क्स महज कैपिटल लिखने में लगे रहे और एंगेल्स अपनी फैक्ट्री में व्यस्त रहे. इसके विपरीत दोनों लगातार इस प्रयास में रहे की मजदूर आन्दोलन को कैसे फिर से अपने पैरों पर खड़ा किया जा सके. इसके लिए दोनों निर्वासित राजनीतिक मजदूरों और इंग्लैंड के मजदूर संगठनों के लगातार संपर्क में रहे और उन्हें गाइड भी करते रहे.
इस दौरान एंगेल्स और मार्क्स ने संघर्षरत राष्ट्रीयताओं विशेषकर पोलिश और आयरिश रास्ट्रीयता के लिए लड़ रहे लोगों से भी संपर्क किया और उन्हें व्यापक मजदूर आन्दोलन का हिस्सा बनाने का प्रयास किया. अमेरिका के गृह युद्ध पर भी दोनों की पैनी नज़र थी और दोनों इन विषयों पर लगातार लिख भी रहे थे. अमेरिकी गृह युद्ध के सैन्य मामलों पर एंगेल्स के लिखे लेख बहुत महत्वपूर्ण थे.
इन तमाम प्रयासों का ही नतीजा था, 1864 में स्थापित दुनिया का प्रथम इंटरनेशनल (‘International Workingmen’s association’ or First International). आज जिसे हम मार्क्सवाद कहते है, वह इसी इंटरनेशनल में तमाम गैर सर्वहारा प्रवित्तियों (प्रूदोवाद, लासालवाद, अर्थवाद ब्लांकिवाद, अराजकतावाद आदि) से लड़ कर स्थापित हुआ. और इन तमाम वैचारिक लड़ाइयों में एंगेल्स ने मार्क्स का भरपूर साथ दिया.
हालांकि भौतिक रूप से एंगेल्स इसके रोजमर्रा के कामों में काफी कम शामिल रहे. लेकिन अंतिम निर्णायक कांग्रेस में एंगेल्स की भूमिका महत्वपूर्ण थी, जहां उन्होंने इंटरनेशनल को अराजकतावादी बकुनिनपंथियों के हाथों में जाने से बचाया. यहां एंगेल्स ने बाकायदा एक रणनीतिकार की भूमिका निभाते हुए इंटरनेशनल को बकुनिनपंथियों से बचाते हुए इसके हेडक्वार्टर को 1876 में अमेरिका शिफ्ट करने में कामयाब हो गए. हालांकि वहां जाकर यह निष्क्रिय हो गया.
यह इंटरनेशनल की ही ताकत थी कि इंग्लैंड का बुर्जुआ चाहकर भी अमेरिकी गृह युद्ध में दक्षिण (Confederate) की तरफ से हस्तक्षेप नहीं कर पाया और पूरे यूरोप का बुर्जुआ दूसरे देशों के मजदूरों को ‘हड़ताल तोड़क’ (strikebreaker) के रूप में इस्तेमाल नहीं कर पाया, जो इंटरनेशनल की स्थापना से पहले आम बात थी.
इंटरनेशनल के दौरान ही 1871 में मजदूरों का पहला राज्य ‘पेरिस कम्यून’ अस्तित्व में आया. एंगेल्स ने ‘पेरिस कम्यून’ को फर्स्ट इण्टरनेशनल की संतान कहा. पेरिस कम्यून पर मशहूर फिल्मकार पीटर वाटकिंग ने बहुत ही महत्वपूर्ण फिल्म ‘ला कम्यून’ बनायी है. पेरिस कम्यून की हार के बाद एक बार फिर यूरोप में दमन चक्र तेज हो गया. इंग्लैंड के अलावा पूरे यूरोप में इंटरनेशनल को प्रतिबंधित कर दिया गया. इंटरनेशनल के सदस्यों के पीछे पूरे यूरोप (इंग्लैंड को छोड़कर) की पुलिस कुत्तों की तरह पीछे पड़ गयी.
एक बार फिर पूरे यूरोप से क्रांतिकारी मजदूर दमन से बचने के लिए इंग्लैंड आने लगे. एंगेल्स ने रात दिन एक करके इन मजदूरों के रहने खाने की व्यवस्था की और उनसे राजनीतिक सम्बन्ध क़ायम किये. आम तौर से एंगेल्स के इस मानवतावादी पहलू पर कम ध्यान दिया जाता है. लेकिन तत्कालीन प्रतिक्रियावाद के दौर में यह बेहद महत्वपूर्ण था. उनमें से कुछ मजदूरों की तो एंगेल्स ने मार्क्स की ही तरह आजीवन मदद की.
इसी समय एंगेल्स की मां ने एंगेल्स को एक भावनात्मक पत्र लिखा- ‘तुम हमेशा गैर और अजनबियों की बात ही सुनते हो, अपनी मां की बात तो कभी नहीं सुनते. भगवान् ही जानता है कि इस समय मेरी क्या स्थिति है. अखबार उठाते समय मेरे हाथ कांपते है, क्योंकि उनमें तुम्हारी गिरफ्तारी के वारंट की खबर होती है.’ इस पत्र से एंगेल्स के व्यक्तित्व की भी एक झलक मिलती है.
1863 में मैरी बर्न्स की मृत्यु के कुछ समय बाद एंगेल्स उसी तरह के रिश्ते में मैरी बर्न्स की छोटी बहन लीडिया बर्न्स (Lydia Burns) के साथ बंध गये. 1878 में लीडिया बर्न्स की मौत के कुछ घंटों पहले ही लीडिया बर्न्स की जिद के कारण एंगेल्स ने लीडिया से शादी भी कर ली. लीडिया बर्न्स की मृत्यु के बाद जर्मनी के प्रमुख समाजवादी अगस्त बेबेल की पत्नी को लिखे पत्र में एंगेल्स लिखते हैं-
‘मेरी पत्नी एक ईमानदार आयरिश सर्वहारा की संतान थी, जिसका ह्रदय उस वर्ग के लिए धड़कता था, जिसमें उसने जन्म लिया. मेरे दिल में उसकी इज्जत उन तमाम पढ़ी लिखी, सुसंस्कृत आकर्षक मध्यवर्गीय महिलाओं से कहीं ज्यादा है. और संकट के समय यह बात मुझे हमेशा सुकून पहुंचाती रही है.’
मार्क्स की छोटी बेटी एलीनार मार्क्स की लीडिया से बहुत अच्छी दोस्ती थी. एलीनार मार्क्स ने लीडिया के बारे में लिखा- ‘लीडिया अशिक्षित थी. वह लिख पढ़ नहीं सकती थी, लेकिन वह सच्ची और ईमानदार थी. वह एक संत महिला थी.’
एंगेल्स के बहुत से बुर्जुआ जीवनीकार मैरी बर्न्स और लीडिया को एंगेल्स की बराबर की पार्टनर मानने से इंकार करते है. उनके अनुसार दोनों एंगेल्स के घर का काम करने वाली नौकरानी थी, जिससे एंगेल्स थोड़ा बेहतर व्यवहार करते थे. अपनी पूंजीवादी सोच के कारण वे इस बात को पचा ही नहीं सकते थे कि उच्च मध्य वर्ग से आने वाले इतना पढ़े लिखे सुसंस्कृत व्यक्ति की पत्नी या पार्टनर सर्वहारा वर्ग से आने वाली एक अशिक्षित महिला कैसे हो सकती है. उन्हें इस बात की समझ नहीं थी कि एंगेल्स भविष्य का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.
1883 में उनके प्रिय मित्र और सह वैचारिक योद्धा कार्ल मार्क्स का भी निधन हो गया. एंगेल्स ने लिखा- ‘दुनिया के सबसे बेहतरीन दिमाग ने सोचना बंद कर दिया.’ पत्नी लीडिया और फिर मार्क्स की मौत ने एंगेल्स को भीतर तक तोड़ दिया था, लेकिन वे सर्वहारा सेना के सच्चे सिपाही थे. दुःख मनाने का वक़्त कहा था. एंगेल्स फिर मोर्चे पर आ डटे. उन्हें मार्क्स का बहुमूल्य अधूरा काम कैपिटल भाग 2 और 3 पूरा करना था. एंगेल्स के ही एकल प्रयासों से यह क्रमशः 1885 और 1894 में प्रकाशित हुई.
इसी बीच जर्मनी, फ्रांस इंग्लैंड आदि देशों में राष्ट्रीय स्तर पर सर्वहारा पार्टी के गठन का प्रयास शुरू हो गया था. जर्मनी की सर्वहारा पार्टी के संस्थापक आगस्त बेबेल, विल्हेम लीब्नेख्त आदि लगातार एंगेल्स के संपर्क में थे और उनसे बहुमूल्य सुझाव ले रहे थे. इतिहास की यह त्रासदी ही थी कि जर्मनी की सर्वहारा पार्टी शुरू से ही अवसरवाद से ग्रस्त थी. मार्क्स ने ‘सोशलिस्ट वर्कर्स पार्टी ऑफ़ जर्मनी’ [SAPD] के इसी अवसरवाद पर हमला बोलते हुए 1876 में ‘गोथा कार्यक्रम की आलोचना’ लिखी थी. लेकिन सुव्यवस्थित हमला एंगेल्स ने 1878 में अपनी किताब एन्टी-डूहरिंग [Anti-Dühring] में लिखकर बोला. पहली बार मार्क्सवाद के तीनों संघटक तत्व दर्शन, राजनीतिक अर्थशास्त्र और वैज्ञानिक समाजवाद के बारे में एंगेल्स ने आम पाठकों के लिए बहुत सरल रूपरेखा प्रस्तुत की. उनकी प्रसिद्ध पुस्तिका ‘समाजवाद : काल्पनिक और वैज्ञानिक’ इसी पुस्तक का हिस्सा है.
फ्रांसीसी क्रांति के दौरान बास्तीय किले पर हमले की 100वीं बरसी पर 14 जुलाई 1889 को पेरिस में दूसरे इंटरनेशनल की स्थापना हुई. इस समय तक एंगेल्स काफ़ी बुजुर्ग हो गए थे, लेकिन फिर भी एंगेल्स वैचारिक स्तर पर इसे अपना बहुमूल्य सुझाव और मार्गदर्शन देने में कभी पीछे नहीं रहे.
लेकिन एंगेल्स का सर्वश्रेष्ठ अभी आना बाकी था. यह था 1884 में आई उनकी किताब ‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’. आमतौर से 19 वीं शताब्दी में दो किताबों की चर्चा की जाती है जिसने उस क्षेत्र में चिंतन की पूरी दिशा ही बदल दी. पहली है चार्ल्स डार्विन की ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज (On the Origin of Species)’ और दूसरी है कार्ल मार्क्स की ‘दास कैपिटल’. लेकिन मेरे हिसाब से 19 वीं शताब्दी की तीसरी महत्वपूर्ण रचना एंगेल्स की ‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’ है.
जिस तरह मार्क्स के ‘कैपिटल’ ने उजरती गुलामी के कारणों की पड़ताल करते हुए उसकी मुक्ति की संभावनाओं को वैज्ञानिक आधार पर स्थापित किया, ठीक उसी तरह एंगेल्स की इस क्लासिक रचना ने भी महिलाओं की गुलामी की पड़ताल की और उसकी मुक्ति की संभावनाओं को वैज्ञानिक आधार दिया. लेनिन भी इस किताब को आधुनिक समाजवाद की एक बुनियादी कृति मानते हैं. इस किताब ने महिलाओं को उनकी पहचान और आवाज दी.
एंगेल्स ने खुद इसके विषयवस्तु के महत्व को इस रूप में रखा है- ‘पितृ अधिकार से पहले मातृ अधिकार (mother-right)’ के अस्तित्व की खोज का वही महत्व है जो डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत का जीवविज्ञान के लिए और मार्क्स के अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का राजनीतिक अर्थशास्त्र के लिए है.’
एंगेल्स की प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) में गहरी रूचि थी. मार्क्स और एंगेल्स दोनों को ही अपने समय के विज्ञान की सभी शाखाओं की नवीनतम जानकारी थी. इसे आप इस घटना से समझ सकते है. चार्ल्स डार्विन की ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज (On the Origin of Species)‘ 24 नवम्बर 1859 को जब प्रकाशित हुई तो उसे उसी दिन पंक्ति में सबसे आगे खड़े होकर खरीदने वालों में एंगेल्स थे. कुछ ही दिनों में यह किताब पढ़कर और उस पर अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी लिखकर इस किताब को एंगेल्स ने मार्क्स के पास भेज दिया.
1872-73 से ही एंगेल्स ने एक बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट अपने हाथ में ले लिया था. वह था ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ (Dialectics of Nature) लिखने का प्रोजेक्ट. यानी द्वंदवाद (Dialectics) को समाज के अलावा समस्त प्रकृति पर लागू करना. लेकिन अफ़सोस उनका यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया. इसका मुख्य कारण यही था कि उन्होंने अपने प्रिय कामरेड दोस्त कार्ल मार्क्स के अधूरे कैपिटल को पूरा करने को अपनी प्राथमिकता बनाते हुए, अपने खुद के प्रोजेक्ट को ठन्डे बस्ते में डाल दिया था.
एंगेल्स की मृत्यु के बाद जब ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ के लिए लिए गए नोट्स को जर्मन समाजवादी पार्टी के बर्नस्टीन ने महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन को दिखाया तो आइन्स्टीन इसकी तमाम कमियों के बावजूद इसकी गहन अंतर्दृष्टि से बेहद प्रभावित हुए और इसे उसी रूप में छापने की सिफारिश की. बाद में यह किताब 1925 में सोवियत रूस से प्रकाशित हुई.
मशहूर जीव वैज्ञानिक रिचर्ड लेवाईन और रिचर्ड लेवान्तीन (Richard Levins and Richard Lewontin) 1985 में आयी अपनी पुस्तक ‘दि डायलेक्टिकल बायोलॉजिस्ट’ (The Dialectical Biologist) को फ्रेडरिक एंगेल्स को समर्पित करते हुए कहते हैं – ‘फ्रेडरिक एंगेल्स को, जो कई मामलों में गलत साबित हुए हैं, लेकिन वे वहां एकदम सही साबित हुए है, जहां हमें उनकी जरूरत थी.’
इन दोनों वैज्ञानिकों ने अपने तमाम शोध का प्रस्थान बिंदु एंगेल्स की इसी पुस्तक में दी गयी स्थापनाओं को बनाया. एक अन्य मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन जे गोल्ड (Stephen Jay Gould) ने 1975 में ‘नेचुरल हिस्ट्री’ में लिखते हुए ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ के ही एक चैप्टर ‘वानर से मानव बनने की प्रक्रिया में श्रम की भूमिका’ को वर्तमान जीव विज्ञान के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना.
आज विज्ञान के क्षेत्र में एक तरह का कुहासा व्याप्त है. भौतिक विज्ञान को गणित में रीडयूस (reduce) किया जा रहा है, वही जीव विज्ञान व मनोविज्ञान को ‘जीन’ में रीडयूस (reduce) किया जा रहा है. इस कुहासे को समझने के लिए एंगेल्स की ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ बेहद महत्वपूर्ण है. और सच तो यह है की इस कुहासे को चीरने के लिए भी प्रस्थान बिंदु ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ ही है. समाज विज्ञान में छाये कुहासे यानी ‘उत्तर आधुनिकता’ का जवाब एंगेल्स का यह महत्वपूर्ण कथन है- ‘तर्क वितर्क से पहले व्यवहार है (There is practice before argumentation).’
सच तो यह है की एंगेल्स और मार्क्स के क्रांतिकारी विचारों से ज्ञान का कोई भी क्षेत्र निर्णायक रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा.
एंगेल्स के 70वें जन्मदिन पर मार्क्स की बेटी एलीनार मार्क्स ने एंगेल्स की तारीफ़ करते हुए कहा कि – ‘एंगेल्स कभी बूढ़े नहीं लगते. पिछले 20 सालों से वे दिनों दिन और जवान होते जा रहे हैं.’ यह बात भले ही हलके फुल्के अन्दाज में उनकी तारीफ़ में कही गयी हो, लेकिन यह अटल सच है कि एंगेल्स और मार्क्स के विचार दिनों दिन युवा, जीवन्त और पहले से कही अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं.
फासीवाद और पतनशील साम्राज्यवाद के इस दौर में जब सभी विचारधाराएं औंधे मुंह गिर रही हैं तो मार्क्सवाद की मशाल आशा की मशाल के रूप में और अधिक धधक रही है. एंगेल्स के जन्म के ठीक 200 साल बाद आज यह कहना कतई अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि मार्क्सवाद है तो आशा है और आशा है तो मार्क्सवाद है.
- मनीष आज़ाद
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