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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो गया. सारे रिजल्ट भी घोषित हो गया है और अब देर सबेर ममता बनर्जी के नेतृत्व में वहां सरकार का भी गठन हो ही जायेगा. यह सब वह औपचारिकताएं हैं जो संवैधानिक तौर पर निश्चित की गई है. परन्तु, अब उन अनौपचारिकता का निर्वहन किया जाना है, जो गैर-संवैधानिक है. इससे पहले की पश्चिम बंगाल के चुनाव पर आये कुछ उन घोषणाओं को याद कर लें तो देश का दुर्दांत अपराधियों ने, जो केन्द्र और विभिन्न राज्यों की सत्ता पर काबिज हैं, ने की थी.

विदित हो कि अंबानी-अदानी का चौकीदार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उसके सिपहसालार तड़ीपार अमित शाह ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था. इसके साथ ही चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक पद पर मौजूद चुनाव आयोग ने 8 चरणों में चुनाव को इस तरह व्यवस्थित किया कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह प्रचार-दुश्प्रचार यहां तक की गालीगलौज जैसी अभद्रतापूर्ण भाषा का इस्तेमाल कर लोगों को डरा-धमका कर वोटों का ध्रुवीकरण कर सके, का पर्याप्त समय मिल सके.

पश्चिम बंगाल चुनाव प्रचार के दौरान कोलकाता में भारत सरकार के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान संघी एजेंट नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का बयान गौरतलब है –

बंगाल के लोगों ने बहुत भोगा है, दीदी की गुंडागर्दी, दादाओं की गुंडागर्दी, भाइयो बहनो, अब बदला लेने का समय आ रहा है. गुंडे गुंडियों को ऐसा सबक सिखाया जाएगा कि पूरा देश देखेगा.

भारत सरकार में गृहमंत्री पद पर मौजूद हत्यारा और अपराधी अमित शाह, जिसे एक समय तड़ीपार किया गया था, ने बयान देते हुए कहा –

ममता बनर्जी गुंडी हैं, उनकी सरकार गुंडों की सरकार है. गुंडों को बंगाल से खदेड़ा जाएगा.

चुनाव प्रचार के दौरान जिस मंच पर प्रधानमंत्री बैठा हुआ था, उसी मंच से फिल्म स्टार मिथुन चक्रवर्ती ने कहा था –

मैं न तो जलधर सांप हूं, न विषहीन सांप हूं. मैं असली कोबरा हूं. एक बार काटते ही तुम्हारी तस्वीर टंग जाएगी टीएमसी के गुंडों.

भाजपाई सांसद विजयवर्गीय ने कहा –

टीएमसी वालों, एक एक से हिसाब लिया जाएगा. तुम्हारा आतंकवाद अब नहीं चलेगा.

क्रिमिनल रिकार्ड रखने वाले और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते ही अपने खिलाफ दायर मुकदमों को आननफानन खत्म कराने वाले अजय कुमार बिष्ठ उर्फ आदित्यनाथ कहता है –

2 मई के बाद टीएमसी के गुंडे गिड़गिड़ाकर अपनी जान की भीख मांगते फिरेंगे।

उमेश राय, हावड़ा जिले के एकमात्र बीजेपी प्रत्याशी, जो इस चुनाव में विजयी हुआ है, बकायदा दावा करता है कि वह चुनाव जीतते ही

 

 

ये उमेश राय है. हावड़ा जिले के एकमात्र बीजेपी प्रत्याशी, जो इस चुनाव में विजयी हुए हैं.

इसके अलावा वोटिंग के दौरान सीआरपीएफ की केन्द्रीय सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया जा सके.

 

सोखी हरदीप सिंह लिखते हैं संघ के लोगो को मारने पीटने की खबरें है बंगाल से। संघ के वर्कर दो तीन साल से वहां बैठे है, और बीजेपी के लिए जमीन बना रहे हैं। क्या इन्हें पीटा जाना सही है।

उत्तर यही है- कानून अपना काम करे।

पर कानून क्या कहता है, इसे भी जानिए जरा।

कानून कहता है कि किसी भी जनसंगठन को “एक्टिविटीज ऑफ पोलिटीकल नेचर” कंडक्ट करने की इजाजत नही है। इसके लिए विदेश से पैसे लेना प्रतिबंधित है। देश से चन्दा जमा करें, तो सरकार को हिसाब, सदस्य सूची, वार्षिक गतिविधि और परिणामो का प्रतिवेदन देना है। नही दिए तो पंजीयन खत्म। सजा पेनाल्टी भी है।

अगर पोलिटीकल नेचर का काम करते हुए पकड़े गए तो पंजीयन कैसिंल। कानून कहता है कि राजनैतिक गतिविधि करनी है, तो बिल्कुल कीजिये, लेकिन आप राजनैतिक दल बनाइये। उसका विधान बनाइये, उसका पंजीयन चुनाव आयोग में कराइये। चन्दा लीजिये, देश और विदेश से लीजिए। सरकार बाकायदा उस चन्दे पर 100% टैक्स डिडक्शन देती है। इसके बाद जमकर राजनीति कीजिये।

संघ न पंजीकृत है, न विधान है, न उद्देश्य है, न स्पस्ट सदस्यता है, न इसको पैसे देकर पालने वालों का कहीं हिसाब। इसकी जो मर्जी आये, वो चोला पहन लेता है। पर देश का बच्चा बच्चा जानता है कि आरएसएस एक अतिवादी राजनितिक पर्पज वाला संगठन है।

तो अब इस बात को ठीक से समझिये। औरों को समझाइये। बताइये और चेतना फैलाइये।

“भाजपा का राजनैतिक गतिविधि करना, जायज है। आरएसएस का राजनैतिक गतिविधि करना नाजायज है”

ठीक से समझिये। खुलेआम कहा जाता है संघ तो भाजपा का पितृ सन्गठन है। ऐसे कैसे भाई, भाजपा एक पोलिटीकल पार्टी है। उसकी असन्दिग्ध निष्ठा, वफादारी, एवम पहला और एकमात्र उत्तरदायित्व भारत की जनता के प्रति होना चाहिए। भारत की सत्ता चाहने वाले, जनता से सत्ता लेकर किसी और को नाजायज बाप कैसे बना सकता है?

और अगर वह किसी बाहरी संग़ठन का प्रतिनिधि बनकर, उसका एजेंडा मात्र पूरा करने को बना है, तो जनाकांक्षाओं के नाम पर जनादेश क्यो ले रहे हो। ये धोखा है, और इस धोखे से संघ देश की सत्ता पर काबिज हो चुका है।

बंगाल में संघ के लोग क्यों बैठे हैं?? और अगर वे धूर्त्तता के साथ, धर्म सँस्कृति की आड़ में पोलिटीकल कैंपेन कर रहे हैं, तो रोका जाना चाहिए। कानूनन रोका जाना चाहिए। मगर कानून नही है। कानून तो पंजीकृत संगठन के लिए है। व्यवस्था में झोल निकालकर ये लोग ऑर्गनाइज्ड पोलिटीकल काम कर रहे हैं।

लोकतन्त्र में राजनीतिक जनमत निर्माण का कार्य, मान्य लोकतांत्रिक तरीके से बाहर, धर्म और संस्कृति के बहाने से संघ कर रहा है। वह साधु के वेश में सीता अपहरण की मंशा रखने वाले पौराणिक पात्र से कम नही।

घुसपैठिया राजनीतिक कर्म करने वाले इस सन्गठन की हिम्मत कांग्रेस सरकारों के निकम्मेपन की वजह से बढ़ी है। मगर अब इसे किसी को गर्दन से पकड़ना होगा। कानून व्यवस्था, संस्थाओं का पंजीयन स्टेट का मसला है। राज्य की सरकारे सक्षम हैं। संघ नाम के इस स्लिपरी दैत्य को सींग से पकड़ें। यह खोखले डरपोकों का संगठन है। इसे कंट्रोल करना इतना कठिन नही।

और अगर कठिन हो, तो भी कीजिये। अगर आप भारत के लोकतन्त्र को इस विषबेल के दंश से बचाना चाहते हैं, तो लीगल हर्डल बनाइये। जब तक ये नही होगा, संघ भी न रुकेगा, और क्षुब्ध विरोधी मौका देख चौराहे पर घसीटते रहेंगे।

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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