गिरीश मालवीय
जब से मोदी सत्ता में आए हैं, देश में अडानी-अम्बानी जैसे उद्योगपति साल दर साल अमीर पर अमीर हो रहे हैं और देश की जनता साल दर साल गरीब से और गरीब हो रही है. यह मैं नही कह रहा हूंं. यह कह रही है इंटरनेशनल राइट्स ग्रुप ‘ऑक्सफैम’ की रिपोर्ट.
ऑक्सफैम हर साल वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की बैठक से पहले एक रिपोर्ट जारी करता है. इस बार उसने The Inequality Virus नाम से जो रिपोर्ट जारी की है उसमें बताया है कि ‘कोविड 19 महामारी ने भारत और दुनिया भर में मौजूदा असमानताओं को गहरा किया है. जहां एक तरफ महामारी के चलते अर्थव्यवस्था ठप हो गई, लाखों गरीब भारतीयों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, वहीं इस दौरान भारत के सबसे अमीर अरबपतियों ने अपनी संपत्ति में 35 फीसदी की बढ़ोतरी की है.’ यह अडानी अम्बानी जैसे ही उद्योगपति है.
ऑक्सफैम अपनी 2021 की रिपोर्ट में कहता है कि मार्च के बाद से भारत सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा की. यह संभवतः दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन था. इस दौरान भारत के शीर्ष 100 अरबपतियों ने 12.97 ट्रिलियन रुपये की वृद्धि देखी. इस महामारी के दौरान भारत के शीर्ष 11 अरबपतियों की संपत्ति में जितनी वृद्धि हुई है, उससे NREGS योजना या स्वास्थ्य मंत्रालय को 10 साल तक चलाया जा सकता है.
यह तो हुई ताजा रिपोर्ट जो कल जारी की गई हैं. पिछले साल 2020 में दावोस में चल रहे वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम में ‘ऑक्सफैम’ ने अपनी रिपोर्ट ‘टाइम टू केयर’ में कहा था, ‘भारत के एक फीसदी अमीरों के पास 70 फीसदी आबादी (करीब 953 मिलियन) की कुल संपत्ति का चार गुना धन है.’ रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि देश के 63 अरबपतियों के पास 2018-19 के भारत के बजट से ज्यादा धन है. 2018-19 में भारत का बजट 24 लाख 42 हजार 200 करोड़ रुपये था.
इसके पिछले साल यानी 2019 की अपनी रिपोर्ट में ऑक्सफैम ने बताया था कि ‘देश के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति पचास प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है.’ उसने बताया था कि ‘भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 2018 में प्रतिदिन 2,200 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है. इस दौरान, देश के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि 50 प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति में महज तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.’
भारत की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 77.4 प्रतिशत हिस्सा है. इनमें से सिर्फ एक ही प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 51.53 प्रतिशत हिस्सा है. वहीं, करीब 60 प्रतिशत आबादी के पास देश की सिर्फ 4.8 प्रतिशत संपत्ति है. देश के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति पचास प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है.
ऑक्सफैम इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर ने उस वक्त कहा था कि, ‘सर्वेक्षण से इस बात का पता चलता है कि सरकारें कैसे स्वास्थ्यसेवा और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं का कम वित्तपोषण करके असमानता को बढ़ा रही हैं. वहीं, दूसरी ओर, कंपनियों और अमीरों पर कम कर लगा रही है और कर चोरी को रोकने में नाकाम रही हैं.’
बढ़ती आर्थिक विषमता हर किसी के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए लेकिन यहांं हमारी चिंता का विषय यह है कि मुल्ले टाइट हुए कि नहीं ?
अगर हम कोई नॉर्मल कम्युनिटी होते तो ऐसी रिपोर्ट सामने आने के बाद यह जरूर सोचते कि पिछले कुछ सालों में कैसे यह खाई बढ़ती जा रही है ? कैसे अमीर लगातार और ज्यादा अमीर और गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं ? लेकिन हम अब एक एबनॉर्मल समाज में बदलते जा रहे हैं. हम क्या सोचे ? हम क्या करे ? यह अब कहीं और से तय हो रहा है. अफसोस यह है कि यह हम जानकर भी अनजान बन रहे हैं.
क्या इन उपरोक्त पड़ोसी देशो में कोरोना नहीं फैला ? क्या टैक्स लगाकर अपना घाटा पूरा करने का विचार इन देशों की सरकारों को नहीं आया होगा ? दरअसल इन देशों की सरकारों को पता है कि हमारे देश की जनता भारत की जनता जैसी मूर्ख नहीं है. अगर हमने एक रुपया कर भी अन्यथा बढ़ाया तो जनता सड़क पर उतर कर विद्रोह कर देगी.
भारत में तो धर्म के नाम पर ऐसी नफरत फैला रखी है कि किसी को यहांं होश ही नहीं है कि उनके साथ क्या हो रहा है !
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