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गेस्टापो – सीक्रेट पुलिस बनाम उत्तर प्रदेश पुलिस

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गेस्टापो - सीक्रेट पुलिस बनाम उत्तर प्रदेश पुलिस

नाजी जर्मनी की यह खुफिया पुलिस, सामान्य पुलिस की तरह सड़कों पर लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन नहीं करती थी. चोरी, बलात्कार, हत्या की जांच, या सुरक्षा नहीं करती थी. यह तो खुफिया पुलिस थी जो देश की रक्षा करती थी, नाजी विचारधारा की रक्षा करती थी. यह देशद्रोहियों को खोजती थी.

इसके कैडर के पास ताकत थी, वगैर वारंट या वगैर मजिस्ट्रेट के ऑर्डर के किसी को भी देशहित में गिरफ्तार कर सकते थे. उठा सकते थे, पूछताछ कर सकते थे. जब आपको अधिकारी, किसी रेकार्ड के वगैर गिरफ्तार कर सकते हैं, तो छोड़ना जरूरी नहीं. ‘हमने गिरफ्तार ही नहीं किया,’ बस एक लाइन कहकर वे मुक्त हो जाते हैं. लोकल थाने में एक गुमशुदगी दर्ज हो जाएगी. नतीजा – गलती से भी पकड़ लिए गए लोगों को जिंदा रिहा करने की कोई बाध्यता नहीं.

जाहिर है, पकड़े जाने वाले ज्यादातर ज्यूस होते. उन्हें तो कपड़ों से पहचाना जाता था. आदेश थे कि ज्यूस अपने बांंह पर ‘स्टार ऑफ डेविड’ याने अपना धर्मचिन्ह लगाकर चलें. ऐसे में वे खुद पर थूके जाने का प्रतिरोध करते तो गेस्टापो को खबर लग जाती. उठा लिए जाते. जिंदा लौट आना लॉटरी से कम न होता.

मगर गेस्टापो की ताकत सरकार की ही नहीं, सरकार समर्थकों की ताकत थी. गेस्टापो का सूचना तंत्र आम जनता थी, उसमें नाजी समर्थक थे. आम जर्मन नागरिक भी अगर विरोध के शब्द कह देता, गद्दार और देशद्रोही होने के नाते गेस्टापो हाजिर हो जाती. हर कोई दूसरे के खिलाफ गेस्टापो को खबर देता. सरकार की नीतियों, असफलताओं, क्रूरता, फेलियर की जरा-सी आलोचना किसी ने की नहीं कि मिनट में इसकी खबर गेस्टापो तक पहुंचती. गेस्टापो का नाम मौत की छाया थी.

हिटलर के प्रति दीवानगी और देश के के प्रति प्रेम इतना जुनूनी था, कि भाई ने भाई की और बेटे ने बाप की खबर गेस्टापो को दी. आम जर्मन, दूसरे जर्मन के लिए सूचना देता. दुश्मनी निकालनी हो, बदला लेना हो, सम्पति कब्जा करनी हो … गेस्टापो को खबर कीजिये. कह दीजिये कि अमुक सरकार विरोधी है. उठा लिया जाएगा.

गेस्टापो ने जितने ज्यूस मारे, उससे ज्यादा ही जर्मन मारे. हालांकि ‘मारे’ कहना उचित नहीं. हम बस यही कह सकते हैं कि उठा लिए गए, और कभी नहीं लौटे.

उत्तर प्रदेश की नफरती जनता ने ऐसी ही दहशत चाही थी. उसने टाइट करने की चाहत में समूची सरकार चुनी. अब तक आंखों के सामने गाड़ियां पलटती रहीं, थालियां बजायी जाती रहीं. अब आपके भाई, फूफा, चचा, ताऊ, पिता, प्रेमी उठा लिए जाएंगे, वगैर किसी दस्तावेज के, वगैर कोई आरोप सिध्द किये. तुम्हारे लोकल थाने, नेता, अफसर, मजिस्ट्रेट को पता भी न चलेगा. सरकार बहादुर ने अपहरण की ताकत लीगली अख्तियार कर ली है. थालियां जोर से बजनी चाहिए.

उत्तर प्रदेश के लोगों, जो हो रहा है, वह बढ़िया है. जो होगा, और भी बढ़िया होगा. तुम चिंटू लोग क्या लेकर आये थे, क्या लेकर जाओगे. जैसे आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरे में प्रवेश कर जाती है, वैसे ही गेस्टापो का प्रेत तुम्हारी धरती पर आ गया है. आनंद लो, टाइट रहो. तुम डिजर्व करते हो.

डर बस यही है कि उत्तर प्रदेश का सफल प्रयोग, जल्द ही देश पर भी लागू होता है.

  • मनीष सिंह

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ROHIT SHARMA

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