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दक्षिणपूर्वी एशिया के बोर्नियो अन्तर्द्वीप में एक देश है, जिसका नाम है ब्रूनेई

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दक्षिणपूर्वी एशिया के बोर्नियो अन्तर्द्वीप में एक देश है, जिसका नाम है ब्रूनेई

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
हमारे मोदीजी की तरह ही ब्रूनेई सुल्तान के पास ‘विजन 2035’ नाम का एक फर्जी स्यापा है, जिसके तहत वो अपने नागरिकों को 2035 तक आत्मनिर्भर और विकसित ब्रूनेई के अच्छे दिनों का सपना दिखाता है, जिस तरह मोदीजी भारत की गिरती अर्थव्यवस्था की बात नकारते हैं, उसी तरह वहां का सुल्तान भी ये मानने को तैयार नहीं कि विश्व का सबसे ज्यादा छट्ठा अमीर देश बहुत ही जल्दी भिखारियों वाली अवस्था में पहुंंचने वाला है.

इसे जम्बूद्वीप के हिसाब से लिखा जाये तो मलय पर्वत के अंतर्द्वीपज द्वीपों में (वर्तमान मलेशिया और इंडोनेशिया के पास स्थित) एक छोटा सा सुन्नी मुस्लिम सुल्तान वाला देश है, जिसकी कुल आबादी 2013 की जनगणना के अनुसार 4,15,717 है. ये 1971 में ब्रिटिश अनुशंसा से पूर्ण आंतरिक स्वतंत्र (बाहरी मामलों में ब्रिटेन संरक्षक) होने के बाद 1984 में पूर्ण स्वतंत्र हुआ था और आज दुनिया का छट्ठा सबसे अमीर देश है, क्योंकि यहां का सकल घरेलू उत्पाद $79,726 डॉलर प्रति व्यक्ति है और राजतंत्र होने के बावजूद यहांं किसी भी तरह का कोई कर (TAX) नहीं है.

मलय परंपराओं और इस्लामी धर्म को छोड़कर सभी मामलों में सुल्तान को सलाह देने के लिये 1888 से ही ब्रिटिश निवासी को ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नामित किया जाता है. 1959 के समझौते ने ब्रूनेई को एक लिखित संविधान दिया, जिससे ब्रुनेई में आंतरिक स्व-सरकार बनी और 1971 में रक्षा और बाहरी मामलों को छोड़कर पूर्ण आंतरिक आजादी के लिये समझौते में संशोधन और संशोधित किया गया था, जो बाद में ब्रूनेई की संपूर्ण आज़ादी के रूप में 1 जनवरी, 1984 को पूरा हुआ अर्थात 1984 में पूर्ण स्वतंत्र हुआ.

ब्रुनेई पूर्व में एक समृद्ध मुस्लिम सल्तनत थी लेकिन बाद में 1888 में यह ब्रिटिश संरक्षण में आ गया. हालांंकि 1941 में जापानियों ने अधिकार कर लिया था परन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 1945 में ब्रिटेन ने इसे मुक्त करवाकर पुन: अपने संरक्षण में ले लिया था, और 1971 में ब्रुनेई को आंतरिक स्वशासन तो दे दिया था मगर पूर्ण स्वतंत्रता 1984 में दी थी. मगर ब्रुनेई में आज़ादी के बाद सुल्तान द्वारा विपक्ष की इजाज़त नहीं दी गई.

अतः वहां ऐसी कोई प्रभावशाली सिविल सोसाइटी नहीं जो ह्यूमेन राइट्स के लिये लड़ सके. वहां अब भी 1962 में घोषित किए गये आपातकाल के अनुसार ही शासन चल रहा है, जिसके तहत लोगों को अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है. मीडिया भी स्वतंत्र रिपोर्ट नहीं कर सकता और हदें पार करने वाले मीडिया दफ़्तरों पर ताला लग जाता है (2016 में ‘ब्रुनेई टाइम्स’ को सुल्तान के आदेश से बंद कर दिया गया था और देशद्रोह समेत कई क़ानून लगा दिये गये थे क्योंकि उसने सरकारी आलोचना की थी).

ब्रूनेई पूर्वी और दक्षिणपूर्वी एशिया का पहला ऐसा देश है जहांं पर एक तिहाई आबादी के गैर-मुस्लिम होने के बावजूद और प्रखर अंतर्राष्ट्रीय आलोचना को भी दरकिनार कर 2014 से सरिया कानून लागू करने की प्रक्रिया शुरू की और 2016 तक इसे तीन चरणों में लागू कर पूर्ण रूप से सरिया कानून तमिल कर दिया गया और राजा का वचन ही कानून हो गया. (व्याभिचार और समलैंगिक संबंधों के लिये शरिया कानून के मुताबिक पत्थर से पीट-पीटकर सज़ा-ए-मौत देने के फैसले को अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद ब्रुनेई सुल्तान को वापिस लेना पड़ा था).

सरिया कानून का नाम सुनकर उसके रूढ़िवादी और अविकसित होने की गलतफहमी मत पाल लीजियेगा क्योंकि ब्रूनेई में जाते ही आपको अहसास होगा कि आप सिंगापूर जैसे किसी देश में है, जो ढेर सारे पेड़ों से घिरी अच्छी सड़कें और पैदल यात्रियों के लिये चौड़े मार्ग वाला व्यवस्थित शहर है. ब्रुनेई की राजधानी का नाम है बंदर सिरी बेगावन, जो एक सुरक्षित, व्यवस्थित और शांत शहर है.

ब्रूनेई में प्राथमिक शिक्षा के 6 साल और माध्यमिक शिक्षा के 6 साल तक होते हैं, जिसमें 9 साल की शिक्षा लेना अनिवार्य है और कॉलेज या उससे आगे की शिक्षा के लिये ज्यादातर छात्र विदेशों में पढ़ते है. हालांंकि ब्रूनेई के तुंगकू में भी विश्वविद्यालय है, जो लगभग ढाई हजार छात्रों की क्षमता वाला विश्वविधालय है, जो 1985 में बनाया गया था और उसमे 300 से अधिक प्रशिक्षकों का संकाय भी है.

ब्रूनेई की अधिकारिक भाषा मलय है, लेकिन कई लोकल भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, इबान और मंदारिन भी बोली जाती है. ब्रूनेई में जीवनकाल की औसत आयु 28 साल से कम है और धार्मिक अनुपात मुस्लिम (अधिकारिक) 67%, बौद्ध 13%, ईसाई 10%, स्वदेशी मान्यताओं और गैर-धार्मिक, नास्तिक या अज्ञेयवादी 10% है. भारत की तरह वहां भी बहुत-सी महिलायें टूडोंग (बुर्के की तरह का लम्बा वस्त्र, जिसमें सर इत्यादि ढंका हो) और पुरुष मलय टोपी के साथ वहां का पारंपरिक वस्त्र गीतकार (शेरवानी की तरह चोगेनुमा वस्त्र पजामा के साथ) पहनते हैं.

राजशाही के कारण सुल्तान के पास पूरी ताकत है और इसीलिये ब्रूनेई सुल्तान ही इस समय प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री इत्यादि पदों पर आसीन हैं और 1984 में आज़ादी के बाद सुल्तान ने ही मलय मुस्लिम साम्राज्य का विचार लागू किया, जो अब ब्रुनेई में मलय भाषा, मलय संस्कृति-रिवाजों, सरिया क़ानून, इस्लामिक मूल्यों, आधुनिक शिक्षा प्रणाली और राजशाही व्यवस्था का मिश्रण है, जिसका पालन सबके लिये अनिवार्य है. अतः इनमें से किसी के प्रति भी असहमति की कोई जगह नहीं है.

खास बात ये कि 1987 में सुल्तान की मक्का यात्रा के बाद से ब्रूनेई में कुलीनता का भाव प्रचलित हो गया अर्थात वे सभी ब्रुनेशियन लोग जो हाजी या हजजा है, को श्रेष्ठ मानने का प्रचलन है और अब तो सरिया कानून लागूू होने की वजह से मक्का उनके लिये तीर्थस्थल है.

ब्रुनेई नागरिकता प्राप्त करने के लिये मलय संस्कृति और मलय/ब्रूनेई रीति-रिवाजों और भाषा में दक्षता के परीक्षण में उत्तीर्ण होना जरूरी है, उसके बाद ही वहां की नागरिकता मिल सकती है. (अभी ब्रुनेई में बहुत से चाइनीज और इंडियंस इत्यादि स्टेटलेस स्थायी निवासी हैं, जिन्हे ब्रूनेई सुल्तान के हस्ताक्षर वाला एक विशेष अंतर्राष्ट्रीय प्रमाण-पत्र दिया जाता है, जो उनकी विदेश यात्राओं के लिये सुलभता का कार्य करता है.)

लगभग 10 हजार से भी ज्यादा भारतीय ब्रूनेई के स्टेटलेस निवासी हैं, जिनमें 1929 में ब्रूनेई में तेल की खोज के बाद जाने वाले भारतीयों के अलावा 1985 में विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद शिक्षा क्षेत्र में जाने वाले भारतीय भी शामिल हैं. (ब्रूनेई के आधिकारिक आंकड़ों में 2013 तक लगभग 10 हजार भारतीय स्टेटलेस निवासी थे, जिनमें से कुछ ने तो वहां स्थानीय निवासियों के साथ अंतर विवाह भी (अंतर्जातीय और अंतर्देशीय दोनों) किया है.

ब्रूनेई भारत के द्विपक्षीय रिश्तों की शुरुआत इंदिरा की कांग्रेस सरकार ने 1984 में की थी, जिसके फलस्वरूप बाद में ब्रूनेई सुल्तान ने 1992 में भारत की राजकीय यात्रा भी की थी. भारत ब्रूनेई से मुख्यतः कच्चा तेल आयात करता है, जो 2011 तक भारतीय रासायनिक कंपनियों द्वारा पेट्रोलियम ऑफ टेक में वृद्धि के कारण से $674 मिलियन से बढ़कर $1266 मिलियन डॉलर तक पहुंंच गया था, जबकि भारतीय निर्यात $34.55 मिलियन से बढ़कर $36.77 मिलियन हो गया था. भारत ब्रूनेई को न सिर्फ पेशेवर और अर्ध-कुशल श्रमिकों के रूप में अपनी जनशक्ति का निर्यात करता है, बल्कि भारतीय व्यापारियों का तो ब्रुनेई के वस्त्र क्षेत्र में लगभग एकाधिकार है और ब्रुनेई में अधिकांश डॉक्टर भी भारत के ही हैं.

ब्रुनेई में सुल्तानों से पहले का ऐतिहासिक रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है, क्योंकि ब्रूनेई के इतिहास का इस्लामीकरण करने का प्रयास भी किया गया, जिसके तहत लिखे गये नवीन ‘अधिकारिक इतिहास’ का सत्यापन विदेशी स्रोतों से नहीं किया गया, अर्थात ब्रुनेई के राजाओं की वंशावली रिकॉर्ड को 200 ई.पू. तक स्थापित नहीं किया गया था. (अभी यूएनओ का नियम है कि किसी भी देश के अधिकारिक इतिहास को दूसरे देशों के आधिकारिक इतिहास से यानि विदेशी स्रोतों से सत्यापित करने के बाद भी उसको 200 ईसा पूर्व तक का रिकॉर्ड सत्यापित करने पर ही उसे ‘सही’ की मान्यता दी जायेगी).

हमारे मोदीजी की तरह ही ब्रूनेई सुल्तान के पास ‘विजन 2035’ नाम का एक फर्जी स्यापा है, जिसके तहत वो अपने नागरिकों को 2035 तक आत्मनिर्भर और विकसित ब्रूनेई के अच्छे दिनों का सपना दिखाता है, जबकि जिस तेल और गैस के भंडार ने ब्रुनेई को असाधारण संपन्नता दी थी, वह अब मंद पड़ने लगी है. तेल की कम कीमतों से सरकार का बजट घाटा काफ़ी बढ़ा है (जबकि हमारे यहांं तो बढ़ी तेल की कीमतों में भी सरकारी बजट घाटा भी बढ़ा है). आर्थिक प्रगति अच्छी नहीं है.

दक्षिण पूर्वी एशिया में सबसे ज़्यादा नौजवानों में बेरोज़गारी ब्रूनेई में है और सरकारी क्षेत्र में पारंपरिक नौकरियां भी ख़त्म हो रही हैं. ठीक हमारे देश वाली ही हालात है वहां. जिस तरह मोदीजी भारत की गिरती अर्थव्यवस्था की बात नकारते हैं, उसी तरह वहां का सुल्तान भी ये मानने को तैयार नहीं कि विश्व का सबसे ज्यादा छट्ठा अमीर देश बहुत ही जल्दी भिखारियों वाली अवस्था में पहुंंचने वाला है.

सिर्फ यही नहीं जिस CAA को मोदीजी ने लागू किया है और जिस NRC को लागू करना चाहते हैं, वो वहां पहले से ही लागू है. और सरिया समेत दूसरे कई अन्य कानून भी है, जिसकी वजह से वहां हर सिविलियन के फैसलों में सरकारी (सुल्तान) दखलंदाजी है.

मोदीजी भी भारत में यही कर रहे हैं. वे निरपेक्षता में बदलाव कर सांप्रदायिकता लागू करना चाहते हैं, जिसमें न सिर्फ मनुस्मृति या बहुसंख्यक धर्मवालों की गुंडागर्दी सहन करनी पड़ेगी बल्कि हर सिविलियन के निजी फैसलों में भी सरकारी दखलंदाजी बढ़ेगी. इसीलिये हम ऐसे कानूनों का और मोदीजी का विरोध करते हैं, मगर भक्त मण्डली और समर्थक इस बात को अभी समझ नहीं रहे हैं.

एक उदाहरण है भारत में शराबबंदी का. जिस तरह बिहार और गुजरात में शराबबंदी है, और सबसे ज्यादा शराब का सेवन भी बिहारी और गुजराती करते हैं, और चोरी छुपे इन राज्यों में बनायी और सप्लाई भी दी जाती है, जो कि घनी आबादी के कारण और प्रशासनिक नौकरियां काम होने के कारण से संभव हो जाती है, ठीक इसी तरह ब्रूनेई में भी शनिवार रात को अक्सर लोग नदी पार करके मलेशियाई क्षेत्र में जाकर मदिरापान, धूम्रपान और संगीत सुनने जैसे कुछ ‘गुनाह’ करते हैं क्योंकि ये सुविधायें कम आबादी वाला छोटा देश होने की वजह से उन्हें अपने देश में उपलब्ध नहीं हो पाती, जो शायद भारत जैसी घनी आबादी होने पर आसानी से उपलब्ध हो जाती.

जिस तरह बिहारी नेपाल जाकर और गुजराती महाराष्ट्र जाकर शराब का न सिर्फ सेवन करते हैं और साथ में गैर-कानूनी रूप से साथ में लाते भी हैं, वैसे ही अभी ब्रूनेई लोग राजधानी से डेढ़ घंटे की दूरी पर मलेशियाई बॉर्नियो के लिम्बांग शहर में जाकर न सिर्फ इन चीज़ों का सेवन करते हैं बल्कि चोरी छुपे साथ में भी लाते है.

ब्रूनेई सुल्तान का नाम हसनल बोल्कियाह है, जो 1967 से अभी तक राजगद्दी पर है और सर्वाधिकार और ज्यादातर सभी पदों पर वो खुद ही काबिज हैं. उनकी कुल संपत्ति $20 बिलियन यूएस डॉलर के लगभग है. तीन शादियों से 12 बच्चे, 7 बेटियांं और 5 बेटे हैं. 1962 में भंग विधान को 2004 में पुनर्गठित कर स्वयं को राष्ट्रप्रमुख, प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, रक्षामंत्री, शाही ब्रुनेनियन सेना कमांडर इन चीफ, विदेश और वाणिज्यमंत्री, शाही ब्रुनेई पुलिस बल का महानिदेशक, इस्लाम प्रमुख (खलिफा) इत्यादि स्वयं को घोषित किया, जिसके पास सर्वाधिकार और आपातकालीन शक्तियों के साथ-साथ कार्यकारिणी की भी सारी शक्तियां होगी. 74 वर्षीय इस सुल्तान का उसके बाद उसका सबसे बड़ा पुत्र उसका उत्तराधिकारी होगा.

भक्त मण्डली अक्सर कहती है कि अंग्रेजों ने हमें खूब लूटा और सारा माल लेकर इंग्लैंड चले गये जबकि हकीकततन, ब्रिटेन ने राजवंश अपने उपनिवेशों में न सिर्फ विकास किया बल्कि उन्हें आगे भी बढ़ाया. भारत में भी लाखों उदाहरण हैं, जिसमें हावड़ा ब्रिज से लेकर लोहे वाले रेलवे पूल और न जाने क्या क्या है. जो हुकूमत की जबरदस्ती थी, वो उस काल और उस समय की सारी हुकूमतों में थी अर्थात देशी रियासतों में भी राजा लोग जनता को लूटते थे.

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