आज जाकिर हुसैन साहब की पुण्यतिथि है. पेश है उनका एक भाषण. कोरे शब्द या खोखले उपदेश नहीं, छोटी-छोटी ईंटे, जिन्हें जोड़-जोड़कर एक पूरा इन्सान खड़ा होता है, एक राष्ट्र आकार लेता है. गांंधी की बुनियादी तालीम के मर्मज्ञ, शिक्षाविद तथा 1967- 1969 तक देश के राष्ट्रपति रहे डॉक्टर जाकिर हुसैन का यह भाषण कुछ ऐसी ही सच्चाईयां उजागर करता है. पेश है डॉक्टर जाकिर हुसैन के भाषण का सम्पादित अंश :
प्यारे विद्यार्थियों,
मुझे मालूम नहीं कि दुनिया में तुम क्या करना चाहते हो ?हो सकता है कि तुम्हारा हौसला हो व्यापार और कारोबार या नौकरी करके बहुत सारी दौलत कमायें और चैन से अपनी और अपने ख़ानदान की जिन्दगी बिताने का काम करें, अगर ऐसा है तो परमात्मा तुम्हारा मनोरथ सफल करे, लेकिन चाहे तुम धन – दौलत की फिक्र में लग जाओ, इतना ध्यान रखना कि सफलता के लिए यह जरुरी नहीं है कि अपने कर्तव्यों को त्यागकर और अपनी सारी बड़ी इच्छाओं को पैरों तले रौंदकर ही उस तक पहुंचा जाए, जो अपने स्वार्थ के लिए इतना अंंधा हो जाएंं कि अपने राष्ट्र को हानि पहुंंचाने से भी न चुके, वह आदमी नहीं जानवर है.
अगर तुम अपना जीवन देश की सेवा में लगाना चाहते हो तो मुझे तुमसे कुछ कहना है. तुम जिस देश में यहां से निकलकर जा रहे हो, वह बड़ा अभागा देश है, अनपढ़ों का देश है, अन्याय का देश है, कठोरताओं का देश है, क्रूर परम्पराओं का देश है, भाई – भाई में नफरत का देश है, बीमारियों का देश है, सस्ती मौत का देश है, गरीबी और अंंधेरे का देश है, भूख और मुसीबत का देश है, यानि कि बड़ा कमबख्त देश है.
लेकिन क्या कीजिये, तुम्हारा और हमारा देश है. इसी में मरना है और इसी में जीना है इसलिए यह देश तुम्हारी हिम्मत के इम्तहान, तुम्हारी शक्तियों का प्रयोग, तुम्हारे प्रेम की परख की जगह है. हमारे देश को हमारी गर्दनों से उबलते खून की जरुरत नहीं है. इसे हमारे माथे के पसीने की बारहमासी दरिया की दरकार है. जरुरत है काम की, खामोश और सच्चे काम की. हमारा भविष्य किसान की टूटी झोपड़ी, कारीगर की धुएं से काली छत, और देहाती स्कूल के फूस के छप्पर तले बन और बिगड़ सकता है.
जिन जगहों का नाम मैंने लिया है, उनमें सदियों तक के लिए हमारी किस्मत का फैसला होगा और इन जगहों का काम धीरज चाहता है और चाहता है संयम. इसमें थकन भी ज्यादा है और कदर भी कम होती है. जल्दी नतीजा भी नहीं निकलता है. हांं, कोई धीरज रख सके तो जरुर फल मीठा मिलता है.
प्यारे विद्यार्थियों, इस नये हिंदुस्तान को बनाने के काम में तुमसे जहांं तक बन पड़े हाथ बंटाना, मगर याद रहे कि अगर स्वभाव में आतुरता है तो तुम उस काम को अच्छी तरह नहीं कर सकते. इस काम में बड़ी देर लगती है. अगर तबीयत में जल्दबाजी की तो तुम काम बिगाड़ दोगे क्योंकि अगर जोश में बहुत-सा काम करने की आदत है और उसके बाद ढीले पड़ जाते हो तो भी यह कठिन काम शायद तुमसे नहीं बन सकेगा क्योंकि इसमें बहुत समय तक बराबर एक सी मेहनत चाहिए.
अगर असफलता से निराश हो जाते हो तो इस काम को मत छूना क्योंकि इसमें असफलताएं जरूरी हैं, बड़ी असफलताएं और पग पग पर असफलताएं. इस देश कि सेवा में कदम-कदम पर खुद देश के लोग ही तुम्हारा विरोध करेंगे, वे लोग जिन्हें हर परिवर्तन से हानि होती है.
वे जो इस वक्त चैन से हैं और डरते हैं कि शायद परिस्थितियांं बदले, तो वे दूसरों की मेहनत के फलों से अपनी झोलियांं न भर पाएंगे लेकिन याद रखो, ये सब थक जाने वाले हैं, इन सबका दम फूल जायेगा. तुम ताजादम हो, जवान हो.
तुम्हारे मन में अगर संशय होगा और आत्मविश्वास का अभाव होगा तो इस काम में बड़ी कठिनाइयांं सामने आयेंगी क्योंकि संशय से वह शक्ति पैदा नहीं होती जो इस कठिन काम के लिए अपेक्षित है. गंदे हाथ और मैले मन से भी तुम इस काम को नहीं कर सकोगे क्योंकि यह बड़ा पवित्र काम है.
सारांश यह है कि तुम्हारे सामने अपना जौहर दिखाने का अदभुत अवसर है. मगर इस अवसर का उपयोग करने के लिए बहुत बड़े नैतिक बल की आवश्यकता है. जैसे कारीगर होंगे, वैसी ही इमारत होती है. काम चूंकि बड़ा है, एक की या थोड़े से आदमियों की थोड़े दिन की मेहनत से पूरा न होगा, दूसरों से मदद लेनी होगी और दूसरों की मदद करनी होगी. तुम्हारी पीढी के सारे हिन्दुस्तानी नवजवान अगर अपना सारा जीवन इसी एक धुन में बिता दें, तब कहीं यह नाव पार लगेगी.
जब जाति – पाति, भाषा, धर्म, सम्प्रदाय, प्रान्त आदि के झगड़ों के चलते देश टूटता नजर आ रहा है, जिस देश में अनेक जातियां बसती है, जहांं विभिन्न संस्कृतियांं प्रचलित है, जहांं एक का सच दूसरे का झूठ है, उस देश में नवजवानों से इस तरह मिलकर काम करने की आशा कुछ कम ही है.
वोट बिकते हैं, राजनीतिज्ञ बिकते हैं, वे देश को भी बेच सकते हैं. सेवा की राह में, जिसकी चर्चा मैं कर रहा हूंं, सचमुच ही बड़ी कठिनाइयांं हैं इसलिए ऐसे क्षण भी आएंगे की तुम थककर शिथिल हो जाओगे. बेदम से हो जाओगे और तुम्हारे मन में संदेह भी पैदा होने लगेगा कि यह जो कुछ किया, सब बेकार तो नहीं था?
उस समय उस भारत माता के चित्र का ध्यान करना जो तुम्हारे ह्रदयपट पर अंकित हो, यानि उस देश के चित्र का ध्यान, जिसमे सत्य का शासन होगा, जिसमे सबके साथ न्याय होगा, जहांं अमीर – गरीब का भेदभाव नहीं होगा, बल्कि सबको अपनी अपनी क्षमताओं को पूर्णतया विकसित करने का अवसर मिलेगा, जिसमें लोग एक दूसरे पर भरोसा और एक दूसरे की मदद करेंगे, जिसमें धर्म इस काम में नहीं लाया जायेगा कि झूठी बातें मनवाएं और किन्ही स्वार्थों की आड़ बने बल्कि वह जीवन को सुधारने और सार्थक बनाने का साधन होगा.
उस चित्र पर दृष्टि डालोगे तो तुम्हारी थकन दूर हो जाएगी और नये सिरे से अपने काम में लग जाओगे. फिर भी अगर चारों तरफ कमीनापन और खुदगर्जी, मक्कारी और धोखेबाजी और गुलामी में संतोष देखो तो समझना कि अभी काम समाप्त नहीं हुआ है. मोर्चा जीता नहीं गया है इसलिए संघर्ष जारी रखना चाहिए, और जब वह वक्त आये, जो सबका आना है और इस मैदान को छोड़ना पड़े, तो यह संतोष तुम्हारे लिए पर्याप्त होगा कि तुमने यथाशक्ति उस समाज को स्वतंत्र करने और अच्छा बनाने का प्रयत्न किया, जिसने तुम्हें आदमी बनाया था.
(हिमांशु कुमार के सौजन्य से)
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