कोरोना वायरस से बचाव और इससे लड़ने के लिए हमारा इम्यून सिस्टम ही एकमात्र कारगर दवा और उपाय है. हमारे शरीर के अंदर किसी बाहरी वायरस, जीवाणु, किटाणु या बीमारी से लड़ने की जो क्षमता है वह हमारी इम्युनिटी पॉवर कहलाती है. जिनका इम्यून सिस्टम (प्रतिरोधक क्षमता) ठीक हैं वह कोरोना को हराकर वापस घर लौट रहे हैं, वहीं जो पहले से कई बीमारियों से जूझ रहे है या उम्र के चलते जिनका इम्यून सिस्टम मजबूत नहीं है, वह कोरोना की जंग में हार जा रहे है.
वहीं, WHO के प्रमुख ने खुले शब्दों में कहा है कि ‘लॉकडाउन से कोरोना ख़त्म नहीं होने वाला, सभी देशों को अपने यहांं टेस्टिंग, पूरी क्षमता से बढ़ानी होगी. आइसोलेशन-ट्रीटमेंट के प्रोसेस तेज करना होगा.’ परन्तु केंद्र की मोदी सरकार के सामने लॉकडाऊन के अलावा और कोई उपाय ही नहीं सूझता है, भले ही लाखों लोग भूख से ही क्यों न मर जाये. पत्रकार गिरीश मालवीय की रिपोर्ट अवश्य देखा जाना चाहिए.
लॉकडाऊन के पीछे सरकार का प्लान क्या था ? लॉक डाउन के पीछे सरकार का प्लान यह था कि सब व्यक्ति अपने-अपने घरों में रहेंगे. जिसे कोरोना का लक्षण दिखेगा वह व्यक्ति अस्पताल आ जाएगा या हम उसे ढूंढ लेंगे और उसका इलाज हो जाएगा. उसके साथ के लोगो को क्वारंटाइन में रखेंगे और दूसरों में यह बीमारी नहीं फैलेगी. इस तरह से बीमारी खत्म हो जाएगी ? मैं गलत तो नहीं कह रहा हूंं न ? लगभग सभी पढ़ने वाले उपरोक्त तर्क से सहमत होंगे.
अब कल जो ICMR ने कहा है वो समझ लीजिए. कल दोपहर में NDTV पर एक इंटरव्यू दिखाया गया, उसमें ICMR के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमन गंगाखेड़कर ने NDTV संवाददाता से बात करते हुए कहा कि ‘भारत में कोरोना वायरस के 80 प्रतिशत मरीज बिना लक्षणों वाले हैं.’
यह इतनी बड़ी बात थी कि मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. शाम को जब बीबीसी पर देखा तो उसमें यह हेडलाइन थी. तब मुझे लगा कि मैंने ठीक ही सुना था. रात एक वेबसाइट पर इस बातचीत की डिटेल मिली. रमन गंगाखेड़कर ने बताया है कि देश के हर राज्य में लगभग यही स्थिति है. NDTV से बात करते हुए उन्होंने कहा, ’80 प्रतिशत मामले बिना लक्षणों वाले हैं. हमारी सबसे बड़ी चिंता उनका पता लगाना है. संक्रमित मरीजों के संपर्क में आने वाले लोगों के अलावा ऐसे मरीजों की पहचान करने का कोई और तरीका नहीं है.’ उन्होंने कहा कि ‘ऐसे मरीजों की पहचान बेहद मुश्किल हैं.’
अब आखिरी वाक्य पर गौर कीजिए ‘ऐसे मरीजों की पहचान बेहद मुश्किल हैं.’ बात तो ठीक ही है, जिसमें कोई सिम्टम्स ही नहीं उसको कैसे रेक्टिफाई किया जाए ?
यानी लॉक डाउन की पूरी थ्योरी अब सिर के बल खड़ी हो जाती है.
दो दिन पहले एक प्रमुख न्यूज़ चैनल ने भी दस राज्यों में बिना लक्षण वाले कोरोना मरीजों की खबर दी है. एक वेबसाइट के अनुसार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी कह रहे हैं कि राज्य में कोरोना के 70 प्रतिशत मरीज बिना लक्षणों वाले हैं. अन्य राज्यों की बात करें तो कर्नाटक में 60 प्रतिशत, पंजाब में 75 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 75 प्रतिशत और असम में 82 प्रतिशत मरीज बिना लक्षणों वाले हैं.
बिना लक्षणों वाले ज्यादातर मरीज 20-45 आयु वर्ग के हैं. एक डॉक्टर कह रहे है कि ज्यादातर मिलेनियल्स यानी युवा साइलेंट कैरियर्स होते हैं, क्योंकि छोटे बच्चों और बूढ़ों की अपेक्षा इनका इम्यून सिस्टम स्ट्रॉन्ग होता है.
कल एक मित्र की वाल पर खबर थी कि मुम्बई में सिर्फ एक दिन की रिपोर्ट में 53 मीडियाकर्मी कोरोना पॉज़िटिव मिले हैं. कोरोना संक्रमित मीडियाकर्मियों में टीवी रिपोर्टर, कैमरामैन और प्रिंट फोटोग्राफर शामिल हैं. चौकाने वाली बात यह है कि ‘99% लोगों में कोई लक्षण ही नहीं दिखा.’ इस बात को मैं कन्फर्म नही कर पाया कि क्या वास्तव में 99 प्रतिशत को कोई लक्षण नही दिख रहे हैं लेकिन जैसा कि एक वेबसाइट पर उद्धव ठाकरे का बयान है उसके हिसाब से यह लगभग ठीक ही होगा.
दो दिन पहले की खबरें तलाशेंगे तो दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का बयान भी मिल जाएगा कि कई लोगों की हिस्ट्री नहीं मिल रही है. कई लोगों को खांसी, बुखार या सांस की समस्या नहीं थी, मगर जांच में कोरोना पॉजिटिव पाए गए. अरविंद केजरीवाल ने भी इस रविवार को कहा है कि 18 अप्रैल को हमारे पास 736 केसों के टेस्ट की रिपोर्ट आई, उनमें 186 कोरोना के मरीज निकले. ये मरीज एसिम्प्टमैटिक (जिसमें किसी प्रकार का लक्षण न हो) हैं. इनमें खांसी, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ जैसे कोई लक्षण भी नहीं थे, लेकिन जांच में ये पॉजिटिव मिले हैं. दिल्ली में ऐसे बहुत लोग कोरोना लेकर घूम रहे हैं. यह स्थिति बहुत ही खतरनाक है.
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने तो यहांं तक कह दिया था कि जिस तरह से दिल्ली में बिना लक्षण वाले मरीज बढ़े हैं, उसे देखते हुए कोरोना के कम्युनिटी स्प्रेडिंग (समुदाय में फैलने) की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. क्या हमारे यहांं कोई यह अनोखी घटना घट रही है ? नहीं ! बिल्कुल भी नहीं.
जब अमेरिका वुहान से अपने नागरिकों को वापस लाया तो ये जानने के लिए कि कहीं वो कोरोना वायरस की चपेट में तो नहीं हैं. उनका मेडिकल टेस्ट करवाया गया एक यूएस सिटिजन का कैलिफोर्निया के सैन डियागो के एक अस्पताल में टेस्ट हुआ. नतीजा निगेटिव आया. कुछ दिन बाद दोबारा उस व्यक्ति का टेस्ट हुआ. इस बार पता चला कि उसके शरीर में कोरोना वायरस है.
उसी दौरान जापान से भी इस तरह के दो मामले सामने आए. शुरुआती टेस्ट में कोरोना वायरस निगेटिव नतीजा आया, बाद के टेस्ट में पॉजिटिव. ऐसा क्यों हुआ ? क्योंकि ये तीनों कोरोना वायरस के ‘साइलेंट कैरियर’ थे. इनके शरीर में मौजूद कोरोना वायरस का पता उन टेस्टिंग मेथड से नहीं हो सका, जो एक महीने पहले तक आमतौर पर यूएस में कोरोना का पता लगाने के लिए इस्तेमाल की जा रही थी.
अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीजेज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन डायरेक्टर रार्बट रेडफील्ड के अनुसार कोरोना से संक्रमित 25 प्रतिशत लोग न लक्षण लिए होते हैं और न बीमार होते हैं फिर भी दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं. मतलब वायरस शरीर में बैठा-पहुंचा हुआ है और वह एसिम्प्टमैटिक यानी लक्षणरहित है. अभी भी अमेरिका के मैसाचुसेट्स में 82 ऐसे मामले आए हैं, जहां लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण ना दिखने के बावजूद उन्हें इस महामारी से पीड़ित पाया गया. वहीं कई स्टडीज से ये भी पता चला है कि बिना लक्षण वाले लोग ज्यादा संक्रमण फैला रहे हैं.
ऐसे मरीजों के बारे में सबसे पहली विस्तृत जांच रिपोर्ट चीन में प्रकाशित हुई है. कुछ दिन पहले चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन की रिपोर्ट आई थी जिसमे 6764 एसिम्प्टोमैटिक मरीजों की जांच पर आधारित रिपोर्ट तैयार की गई थी. इनमें सिर्फ 1297 मरीजों में ही बाद में बीमारी के लक्षण दिखे. यानी कोरोना पॉजिटिव मरीजों में सिर्फ 20 फीसदी मरीजों में ही बाद में बीमारी का लक्षण दिखा, बांंकी मरीजों में ऐसा कोई लक्षण नजर नहीं आया.
ठीक यही पैटर्न ICMR के रिसर्च में सामने आया है यहांं भी 80 प्रतिशत मामले बिना लक्षणों वाले हैं. इस खबर को आप सकारात्मक तरीके से भी ले सकते हैं और नकारात्मक तरीके से भी, यह आपके विवेक के ऊपर है.
मुझे ऐसा लगता है कि हमे ‘लड़ना’ ‘हराना’ जैसे वाक्यों का प्रयोग छोड़ देना चाहिए. यह वायरस कहीं जा नहीं रहा है. यह खत्म हो जाएगा ऐसा दावा किसी वैज्ञानिक ने नहीं किया. हो सकता है कि धीरे-धीरे यह वायरस हमारे शरीर के साथ अनुकूलित हो जाए. कोई भी परजीवी उसको खत्म नहीं करता जिसके शरीर मे वह रहता हो. वह दोनों परस्पर एक बॉडी में साथ रहने का अनुकूलन प्राप्त कर लेते हैं, यह कॉमन सेंस की बात है.
बहुत संभव है कि यह हो भी गया हो. बहुत संभव है कि भारत की बड़ी आबादी हर्ड इम्युनिटी को प्राप्त कर गयी हो, जिस हिसाब से दूसरे देशों की तुलना में भारत में कम मौतें हुई है, उससे यह उम्मीद बंधती है लेकिन एक बात तो तय मानिए कि इन नए तथ्यों के संदर्भ में कोविड -19 के बारे में एक बार हमें नए सिरे से पुनर्विचार करना होगा.
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