मीडिया आज अमेरिका में मॉस्क पीपीई मेडिकल किट की कमी से डॉक्टर हड़ताल पे दिखा रहा है, पर देश के हाल नहींं. मगर हकीकत में हमारे यहां कमियोंं का जो आलम है वो तो और भयावह है.
भारत के सभी शहरों में जो सामान्य क्लिनिक डॉक्टर जो करोना का इलाज भी नहींं कर रहे, वे तक साधारण मरीजों को देखने तक को तैयार नहीं. वे मरीजों को सीधे केमिस्ट के पास भेज के बात केमिस्ट से फोन पे बात करा, बिना उन्हे देखे, केमिस्ट को दवा देने और अपनी फीस भी केमिस्ट के पास जमा कर देने को कह रहे हैं. जब डॉक्टर ही देखना तो दूर, मरीज के पास आकर उसे हाथ लगाने को तैयार नहीं तो करोना के ख़ौफ़ के चलते बाकी लैब की जांचों के तो क्या हाल होंगे, सोचा जा सकता है.
सोचा तो यह भी जा ही सकता है कि करोना के पहले जो अन्य बीमारियोंं से मौतें होती थी, वह होना रुकी तो नहींं होगी, बाकी जो पूरे देश की मेडिकल सुविधाओं की जो हालत है वह तो सब भली भांति जानते हैं. आज अपनी मेडिकल की पढ़ाई पे लाखों खर्च कर बना डॉक्टर भी अपनी सरकार को अच्छी तरह जानता है. उसे पता है कि 70 साल में कुछ नहीं हुआ का रोना रोने वाली सरकार का निकम्मा प्रधानमंत्री ही ‘डॉक्टरों को तो लडकियां सप्लाई होती है’, कहता है. उनकी खिल्ली उड़ाता है. दुनिया की सबसे ऊंची स्टेचू तो बनवाता है मगर खुद 6 सालों में एक भी अस्पताल नहीं बनाता है.
मरीज भी हालात से अनजान नहींं है. उसे भी पता है, जब अस्पतालों में स्वयं डॉक्टर का आज ये हाल है तो जो मैरिज गार्डन में अस्थायी कोरेण्टाइन सेंटर बनाये गए हैं,
वहां तो वह औऱ बड़े समूह में औऱ सबसे सम्पर्क में आना है, वहां उन अस्थायी सेंटर में उसे 14 दिन कौन देखेगा ?
उसे भी समझ है कि वो सामान्य से बुखार, उल्टी, बीपी, शुगर, मामूली-सी खांसी हो और वह वहां अपनी परेशानी दिखाने जाए, तो कहीं उसे कोरेण्टाइन सेंटर ही न भेज दिया जाए. वहां उसे कही करोना पॉजिटिव मरीजों के सम्पर्क में आने पे करोना न हो जाये ? जब डाक्टरोंं के मन भय ग्रस्त है तो उसका डर भी पूरी तरह से जायज ही है.
टीवी चैनल देखिये. निसंदेह एक ही वर्ग को ही इल्जाम है. उसी ने पूरा करोना फैलाया है, इस तरह की खबरों से उस वर्ग में जबरदस्त भय का माहौल है. उल्टी-सीधी अफवाहों का बोलबाला है. बड़ी वजह, CAA का प्रोटेस्ट औऱ सरकार का उनके प्रति रवैया, सरकार समर्थक वर्ग का उनके प्रति व्यवहार !
सरकार जब उसकी बात को सुनने एक इंच हिलने को तैयार नहींं हुई तो आज वो भी सरकार की बात सुन एक इंच भी अपने घरों से हिलने को तैयार नहींं. उसका सबसे बड़ा कारण सरकार के प्रति अविश्वास का माहौल है जिसमें ह्वााट्सअप, आईटी सेल, टीवी चैनल औऱ गोदी मीडिया का सबसे बड़ा हाथ है.
स्थितियांं बद से बदतर होती जा रही है. भारत में दिन ब दिन करोना फैलने की रफ्तार तेज और तेज होती जा रही है. हम सभी जानते हैं कि हम करोना की रोकथाम तापमान बढ़ने के भरोसे हैंं,या उन झूठी तसल्ली भरी सोच के कि ये करोना अपने आप 31 मार्च तक ख़तम हो जाएगा, नहींं हुआ तो चलो 14 अप्रैल तक ख़तम हो जाएगा.
हो सकता है आज मेडिकल इमरजेंसी लगा दी जाए, जहांं जबरदस्ती सन्दिग्ध मरीज को घरों से उठाना आवश्यक कानून सम्मत बना दिया जाए, फिर करोना भी अनोखा वाइरस है, जो कई शरीरों में बिना कोई लक्षण जाहिर किये सुप्त अवस्था में अपना घर बनाये हुए हैं, और वह अन्य मरीजों में ट्रांसफर हो रहा है यानी लॉक डाउन कितना प्रभावी होने वाला है, ये सबको पता है ?
क्योंं आज सारा बिल विदेश से आये तब्लीगी मौलानाओं मरकज के मुसलमान के नाम फाड़ा जा रहा है, जबकि कल भी दिल्ली में ऋषिकेश जाते 2 बसों में भरे 200 से ज्यादा विदेशी बकायदा भारत मेंं घूम रहे थे ??
मेरे मित्र संदीप वर्मा लिखते हैं लखनऊ में हॉस्पिटल जा रहे डॉक्टर को योगी कि पुलिस ने पीटा, जिस कारण सारे डॉक्टर हड़ताल पर हैं. यूपी में एंबुलेंसकर्मी हड़ताल पर हैं, क्योंकि 2 महीने से उनको पैसा नहीं दिया सरकार ने.
दिल्ली में भाजपा शासित नगर निगम के अस्पताल से डॉक्टर और नर्सो ने सुरक्षा उपकरण ना होने के कारण इस्तीफा दिया. हरियाणा कि डॉक्टर ट्वीट करके बोल रही है, ‘जब मैं मर जाऊं तो मेरी कब्र पर ‘मास्क’ पहुंचा देना सरकार.’
डॉक्टर्स एसोसिएशन जम्मू के अध्यक्ष डॉ बलविंदर सिंह ने जम्मू कश्मीर स्वास्थ्य विभाग से कोरोना से निपटने के लिए मास्क और सेनेटाइज़र मुहैया कराए जाने की अपील की तो अगले ही दिन उनका ट्रांसफर कर दिया गया.
बिहार के अस्पतालों में भी सैनिटाइजर, मास्क, ग्लव्स, पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट जैसी कुछ भी चीजें नहीं है, इस वजह से पूरे बिहार के डॉक्टर और नर्सिंगकर्मी हड़ताल पर जाने कि चेतावनी दे चुके हैं. और जहांं मिले भी हैं, वहांं डॉक्टरों को पीपीई के नाम पर दस्ताने और 15 रुपये का जालीदार मास्क पकड़ा दिया है, डॉक्टरों की खुद की जान खतरे में है और WHO के अनुसार प्रति 1000 व्यक्ति पर 1 डॉक्टर होना चाहिए, जबकि भारत मे 11,000 पर 1 डॉक्टर है.
अमेरिका और जर्मनी प्रतिदिन 1 लाख टेस्ट कर रहे हैं, इटली में भी प्रतिदिन लगभग इतने ही टेस्ट हो रहे हैं लेकिन भारत में प्रतिदिन 2500 से भी कम टेस्ट हो रहे हैं क्योंकि टेस्ट किट ही नहीं है. ऐसी महामारी के वक़्त जब हमारे देश में डॉक्टर सुरक्षा उपकरणों की कमी से जूझ रहे हैं, इसी बीच साहब ने 29 मार्च को 90 टन मेडिकल उपकरण, ग्लव्ज, मास्क, सेनेटाईजर, ड्रेस, जूते और PPE किट सर्बिया को बेच दिए जबकि डॉक्टर ऑनलाइन पेटीशन लिखकर मदद की गुहार लगा रहे हैं. इस ऑनलाइन पेटीशन में डॉक्टर अपनी पीड़ा जाहिर कर रहे हैं. वे कह रहे हैं, ‘अभी भी ज़मीन पर स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के इंतेज़ाम नहीं दिखाई दे रहे हैं. अस्पताल और टेस्ट सेंटरों में हममें से कई बिना मास्क, दस्ताने और सुरक्षा गाउन के कोरोना से लड़ रहे हैं.
अमन, शांति और भाईचारे के लिए हानिकारक और देश में घृणा पैदा करने वाले टीवी न्यूज़ चैनल देखना बंद करो। #टीवी_देखना_बंद_करो
— Hansraj Meena (@HansrajMeena) April 4, 2020
ऐसी दयनीय मेडिकल बंदोबस्त के बीच आलोक वाजपेयी अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखते हैं –
दिमागी कोरोना से बचने का उपाय :
1.टीवी पर खबरें न देखें.
2. व्हाट्सअप पर कोरोना सम्बन्धी खबरों को न पढ़िए. ज्यादातर सुनियोजित षड्यंत्रकारी अफवाहें हैं.
3. हाथ धोने, अनावश्यक बाहर न निकलने, सैनिटाइजर इस्तेमाल करने, गर्म पानी का खूब सेवन करने, भाप का बफारा लेने और स्वीकृत अन्य उपायों के अलावा ज्यादा खोज खबर में न रहिये.
4. मरने से पहले मर जाने के डर में जीना, मूर्खता होती है, ये ध्यान रखिये.
5. हर बात, हर समस्या में हिन्दू मुस्लिम घुसेड़ने वाले लोग मानसिक रुग्ण हैं. इनसे दूर रहिये.
राम चन्द्र शुक्ल लिखते हैं कि कोरोना पूरी तरह से भय पर आधारित व्यापार है. रात दिन समाचार चैनलों अखबारों, सरकारी प्रचार तंत्र व सोशल मीडिया पर इसी एक चीज
की चर्चा हो रही है, जिसके कारण आम जनता का बुरी तरह से मानसिक दबाव में आकर भयभीत हो जाना स्वाभाविक है.
जब यूरोप के जर्मनी जैसे देश के एक राज्य का वित्त मंत्री कोरोना की दहशत का शिकार बनकर ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर सकता है तो भारत की अशिक्षित व अर्धशिक्षित जनता के मन पर इसका कितना घातक असर पड़ रहा है, इसका अनुमान लगाया जाना मुश्किल नही है.
(हेमंत मालवीय के सोशल वाल से सम्पादन सहित)
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