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वैक्सीन इतनी कारगर है तो फिर संक्रमण बढ़ क्यों रहा है ?

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गिरीश मालवीय

क्या कोई बताएगा कि वैक्सीन इतनी कारगर है तो फिर पूरी दुनिया में संक्रमण घटने के बजाए बढ़ क्यों रहा है ?20 जून को जहां विश्व में 3 लाख तीन हजार केस थे, वही 15 जुलाई को 5 लाख 63 हजार केस आए हैं. वेक्सीनेशन में मॉडल बताए जा रहे देश इजरायल में भी अब रोज नए 900 से 1000 पेशेंट आ रहे हैं. इजरायल में सर्वाधिक 85 फीसदी वयस्कों का वैक्सीनेशन हो चुका है, लेकिन अब यहां नए संक्रमण में इजाफा देखा जा रहा है. वहां अब तीसरी डोज की अनुमति दी जा रही है.

अमेरिका जहां 49 प्रतिशत लोगों को टीके की दोनों डोज लग चुकी है, वहां दिन प्रतिदिन केस क्यों बढ़ रहे हैं ?
अमेरिका के 50 राज्यों में से 19 में पुराने मामलों की तुलना में कोरोना के दोगुने नए केस सामने आ रहे हैं. इन राज्यों में पिछले 25 दिनों में संक्रमण के नए मामलों में 350% की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. अब वहां वापस मास्क लगाने की पाबंदी लागू की जा रही है.

ब्रिटेन में जहां 53 प्रतिशत लोगों को टीके की दोनों डोज लग चुकी है, वहां पिछले 25 दिनों में 253 प्रतिशत केस बढे हैं. 25 जून को जहां पंद्रह हजार केस मिले थे, वह कल साढ़े 48 हजार केस मिले हैं.

इंग्लैंड के मुख्य चिकित्सा अधिकारी प्रो. क्रिस व्हिटी ने कहा कि कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या करीब हर तीसरे हफ्ते में दोगुनी हो रही है. यदि यही रुख बना रहा तो आंकड़े भयावह हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि हमें कोरोना के मामलों में आश्चर्यजनक तेजी को नजरंदाज नहीं करना चाहिए. यदि यह तेजी बनी रहती है तो हम मुसीबत में फंस सकते हैं.

नीदरलैंड में कोरोना के साप्ताहिक मामलों में 300 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, वहां 43 प्रतिशत लोगों को टीके की दोनों डोज लग चुकी है.

इंडोनेशिया तो इस समय एशिया में कोरोना का एपीसेंटर बन गया है. इंडोनेशिया में कल 56,757 केस सामने आए जबकि इंडोनेसिया में आबादी के प्रतिशत के हिसाब से 5.9 प्रतिशत आबादी को दोनों डोज लग चुके हैं, जो भारत से भी ज्यादा है. इसके अलावा थाईलैंड, म्यांमार, मलेशिया, बांग्लादेश में भी अब अभूतपूर्व उछाल देखने को मिल रहा है.

दक्षिण अमेरिका की हालत तो बहुत बुरी है. ब्राजील में तो वेक्सिनेशन का कोई प्रभाव ही नजर आ रहा है जबकि 15.7 प्रतिशत आबादी को दोनों डोज लग चुके हैं. अर्जेंटीना में भी संक्रमण की गति तेज है. वहां भी साढ़े ग्यारह प्रतिशत जनता को दोनों डोज लग चुकी है. चिली में तो 60 प्रतिशत जनता फुल वेक्सीनेटेड हो गयी है लेकिन वहां भी संक्रमण बढ़ रहा है, बाकी देश भी बढ़ते संक्रमण से जूझ रहे हैं.

यूरोप में भी ऐसा ही हाल है. स्पेन में भी जहां 49 प्रतिशत लोगों को टीके की दोनों डोज लग चुकी है, वहां संक्रमितों की संख्या इतनी क्यों उछल रही है. वहां भी पिछले 25 दिनों में संक्रमण के नए मामलों में 462% की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. 25 जून को जहां पांच हजार केस मिले थे, वह कल साढ़े 28 हजार केस मिले हैं.

यानी जिन देशों में लोगों को 50 प्रतिशत के आसपास दोनों डोज लगी हुई है, वो अब भी संक्रमित हो रहे हैं, ऐसा क्यो है ? कुछ लोग डेल्टा वेरियंट को इसकी वजह बता देंगे, और उसे रोकने के लिए तीसरी वाली बूस्टर डोज की हिमायत करेंगे. लेकिन क्या गारंटी है कि तीसरी डोज मिलने पर भी यह बीमारी रुक जाएगी ? क्या तब तक और कोई नया वेरियंट नहीं आ जाएगा ?

यह भाषा किसी लोकतांत्रिक देश में चुने हुए नेता की नहीं हो सकती. यह भाषा किसी तानाशाह या राजा/महाराजा की ही हो सकती है. देश में कोरोना मामलों को देख रहे सबसे बड़े अधिकारी नीति आयोग के डॉ. वी. के. पॉल ने बयान दिया कि प्रधानमंत्री मोदीजी ने हमें यही टारगेट दिया है कि देश में तीसरी लहर नहीं आनी चाहिए.

क्या देश का रक्षा मंत्री यह बयान दे सकता है कि प्रधानमंत्री ने हमें टारगेट दिया है कि पाकिस्तान आक्रमण नहीं करना चाहिए ? क्या देश का व्यापार मंत्री यह बोल सकता है कि प्रधानमंत्री ने हमें टारगेट दिया है कि चीन से आयात नहीं होना चाहिए ?

ऐसे बयान बहुत सोच समझकर दिए जाते हैं. बयान की भाषा को स्ट्रेटेजिक रूप से प्लान किया जाता है. इसे कहते हैं एक नैरेटिव सेट करना कि कुछ हुआ तो मेरी जिम्मेदारी नहीं है, यह मेरे अधीनस्थ की जिम्मेदारी है. अरे महाराज, यह यह जो बात बोली जा रही हैं, अल्टीमेटली उसकी जिम्मेदारी आप पर ही तो है लेकिन उसके बावजूद यह एडवांस में इसलिए बोला जा रहा है ताकि बाद में प्रधानमंत्री स्वयं को पाक-साफ दिखा सके कि हमने तो बोला था. अब अगर तीसरी लहर आई तो देश की जनता जाने कि तीसरी लहर क्यों आई ?

ऐसा बयान देना दोनों हाथों में लड्डू रखने के बराबर है. यानी अगर तीसरी लहर रुक गयी तो मोदी की वाह-वाह और अगर तीसरी लहर आ गयी तो भी मोदी की वाह-वाह क्योंकि मोदी जी ने तो आदेश दिए थे लेकिन उनके आदेशों का पालन नहीं हुआ तो इसमे मोदी की क्या गलती ?

आपको याद होगा कि कुछ महीने पहले ही दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से हुई हजारों मौतों को मीडिया ने ‘सिस्टम’ के माथे मढ़ दिया था कि इसमें मोदी क्या करे ? उस बेचारे की तो कोई गलती ही नहीं है. जो भी गलती है उसमें ‘सिस्टम’ की है. और पब्लिक के दिमाग में भी यही छवि बन गयी. बिकी हुए मीडिया ने अपना काम बखूबी किया और सफल हुआ.

अब फिर से नया खेल शुरू हो गया है. ऐसे बयान दिलवाए जा रहे हैं. और एक बार फिर मोदी की छवि को इंटेक्ट रखने के लिए मीडिया तन मन धन से लग गया है. मैल्कम एक्स ने एक बार कहा था ‘सावधान रहिए, मीडिया आपको उन लोगों से नफरत करना सीखा देगा जो शोषित हैं और उन लोगों से आपको प्यार करना सिखा देगा जो शोषणकारी है, दमनकारी है.’

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