Home ब्लॉग रूस का यूक्रेन में स्पेशल सैन्य ऑपरेशन से बदला विश्व ऑर्डर

रूस का यूक्रेन में स्पेशल सैन्य ऑपरेशन से बदला विश्व ऑर्डर

7 second read
0
0
194

 

24 फरवरी से रूस का यूक्रेन में होने वाले स्पेशल सैन्य ऑपरेशन से विश्व एक नये ऑर्डर में चला आया है, जिससे शीर्ष पर 31 वर्षों से काबिज अमेरिका की चिन्ता बढ़ गई है. सोवियत संघ के 15 हिस्सों में बिखराव ने पिछले 31 वर्षों से जारी एक ध्रुवीय दुनिया में उलट-फेर होने वाला है और शीर्ष पर मौजूद अमेरिका की स्थिति डांवाडोल हो गई है. दुनिया एक बार फिर दो-ध्रुव में बंट गया है, और इसके साथ ही नये शीत युद्ध के दौर में दुनिया चला है.

1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही अमेरिका पूरी दुनिया में नंगा नाच करने लगा. यह भी ज्ञातव्य हो कि सोवियत संघ से लड़ने और उसे नष्ट करने के लिए ही अमेरिका ने नाटो जैसा गुंडा वाहिनी खड़ा किया, जिसकी तादाद आज की तारीख में 15 से बढ़कर 30 हो गई है, जिसे 31 फिर 33 करने की कोशिश के विरोध में रुस ने नाटो में शामिल होने की कोशिश करने वाले 31वें देश यूक्रेन पर रुस ने स्पेशल सैन्य ऑपरेशन शुरू कर दिया है.

अमेरिका और उसका गुंडा वाहिनी नाटो सोवियत संघ के 15 भागों में विघटन से ही संतुष्ट नहीं हुआ, वह सोवियत संघ के सबसे बड़े हिस्से रूस को इराक की भांति नष्ट-भ्रष्ट करना चाहता है, यही कारण है कि अमेरिका रूस को पूरी तरह खत्म करने के लिए नाटो के 15 सदस्य देशों से बढ़ते-बढ़ते 30 और अब यूक्रेन, स्वीडन, फिनलैंड को मिलाकर 33 करना चाहता है ताकि वह रूस को पूरी तरह जमीन से काटकर उसे घुटनों पर ला सके.

यूक्रेन में रूस का 24 फरवरी को शुरू किया गया स्पेशल सैन्य ऑपरेशन इसलिए भी जरूरी था कि अगर वह अब भी नाटो की समूची सैन्य ताकत के खिलाफ हमला नहीं करता तो कुछ समय के बाद वह हमला करने की स्थिति में ही नहीं रह जाता और वह इराक की ही भांति खण्डहर होकर अमेरिका का गुलाम बन जाता. यही कारण है कि रुसी टेलीविजन यह साफ तौर पर कह रहा है कि रुस का हार रुस का विनाश कर देगा.

बकौल, रुसी राष्ट्रपति पुतिन, जब रुस ही नहीं रहेगा तो दुनिया का हमारे लिए क्या मायने रखता है. दुनिया ही खत्म कर देंगे. यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि दुनिया को खत्म करने की पुतिन की यह धमकी हवा में नहीं है. रुस के पास इतनी क्षमता है कि वह इस पृथ्वी को ही कई बार नष्ट कर सकता है. और रुस को यह क्षमता महान सोवियत समाजवाद ने दिया है, जिसके संस्थापक नेता और विश्व सर्वहारा के महान शिक्षक लेनिन और स्टालिन की देन है.

रुस की सैन्य ताकत का प्रदर्शन

भारतीय न्यूज चैनल की ओर से यूक्रेन सैन्य ऑपरेशन को कवर करने गये एक पत्रकार बताता है कि उसने पिछले दो सप्ताह में यूक्रेन से लेकर रुस तक करीब पांच हजार किलोमीटर का दौरा किया, लेकिन उसने कहीं भी यूक्रेन के सैनिकों को नहीं देखा. यहां तक की कोई यूक्रेनी चेकपोस्ट भी नहीं देखा. दरअसल, इस लड़ाई में यूक्रेन कहीं है ही नहीं. बस वह कुछ क्षेत्रों में और पश्चिमी मीडिया के गॉशिप में सिमट गया है.

पत्रकार का उपरोक्त बयान यह बताने के लिये पर्याप्त है कि यूक्रेन किसी भी हालत में रुस के लिए चुनौती नहीं है. जो भी चुनौती पेश आ रही है वह नाटो के सैनिकों के द्वारा यूक्रेनी सेना का बर्दी पहनकर नाटो द्वारा दिये गये सैकडों बिलियन डॉलर के हथियारों के कारण हो रहा है. इसमें भी नाटो द्वारा दिये जा रहे हथियारों में लम्बी दूरी तक मार करने वाले हथियारों की आपूर्ति नाटो नहीं कर रहा है. वजह है अगर लम्बी दूरी मार करने वाले हथियारों से रुस के अन्दर हमला होता है तो बौखलाया रुस सीधे ने टो देशों पर हमला कर सकता है.

यूक्रेन में रूस ने 24 फरवरी को जब स्पेशल ऑपरेशन शुरू किया था तब वह यह समझकर ही किया था, उसे नाटो के सभी 30 देशों के साथ युद्ध करना पड़ सकता है, यही कारण है कि रुस ने स्पष्ट चेतावनी जारी किया था कि अगर कोई भी देश बीच में आयेगा तो उसे धरती से ही मिटा देंगे.

गौरतलब है कि यह रूस का यह महज चेतावनी नहीं, एक ऐसी साफगोई थी जिससे अमेरिका समेत किसी भी नाटो देशों की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह इस मामले में बयानबाजी और सैन्य उपकरणों को बेचने से अधिक कुछ कर सके. यह रूस की अमेरिका समेत सभी नाटो देशों पर सबसे बड़ी और पहली जीत थी.

जेलेंस्की नवनाजीवाद का प्रतिनिधि

रुस शुरू से ही यह कहता आ रहा है कि यूक्रेन के नवनाजीवादियों के खिलाफ सैन्य ऑपरेशन कर रहा है. असल में पश्चिमी युक्रेन की आबादी जर्मनी के हिटलर के नाजी फौज में अपनी सेवा दे चुका है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह मिला कि जब मारियापोल में जेलेंस्की के निजी फौज अजोब बटालियन के सैनिकों ने रुसी फौज के सामने सरेंडर किया था तब उस सैनिकों के शरीर पर नाजी चिन्ह मौजूद था.

रूस को मिटाना अमेरिका और नाटो का लक्ष्य

यूरोपियन यूनियन और अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो ने स्पष्ट इशारा दे दिया है कि यूक्रेन युद्ध के मसले में ताज़ा टकराव को रोकने का उसका बिल्कुल भी इरादा नहीं है. नाटो महासचिव जेंस स्टोल्टनबर्ग ने अख़बार ‘फ़ाइनेंशियल टाइम्स’ में लिखते हुए स्पष्ट माना कि ‘नाटो इस जंग की तैयारी वर्षों से कर रहा था और यह तब तक जारी रहेगी, जब तक रूस को आर्थिक और सैन्य तौर पर तबाह करके अपने दबदबे में नहीं कर लिया जाता.’ यानी रूस को मिटाना, बर्बाद करना अमेरिकी साम्राज्यवाद और नाटो का पहला मकसद है.

अमेरिकी साम्राज्यवाद ने नाटो गिरोह का गठन ही इसीलिए किया था कि सोवियत संघ की बढ़ती लोकप्रियता को न केवल रोका जाये बल्कि उसे खत्म भी कर दिया जाये. अमेरिकी साम्राज्यवाद और नाटो गिरोह ने अपना यह मकसद 1953 के बाद हासिल भी कर लिया था, जब गद्दार ख्रुश्चेव ने सोवियत संघ के जड़ में मट्ठा डाल दिया था और जिसकी अंतिम परिणति 1991 में सोवियत संघ के पतन हो गया था. 15 टुकड़ों में बंटे सोवियत संघ के उत्थान और पतन ने दुनिया की जनता के सामने यह साबित कर दिया कि समाजवाद की लड़ाई कितनी भीषण है, इसे न केवल बाहर से युद्धों के द्वारा ही खत्म किया जा सकता है बल्कि अन्दर से भी खत्म किया जा सकता है.

फरवरी 1956 में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं पार्टी कांग्रेस में दिये अपने कुख्यात ‘गुप्त भाषण’ में गद्दार ख्रुश्चेव ने जोसेफ़ स्तालिन पर आरोपों की झड़ी लगा दी थी. उस समय तक विश्व कम्युनिस्ट आन्दोलन के सर्वमान्य नेता स्तालिन पर किये इस हमले की आड़ में उसने वास्तव में मार्क्सवाद-लेनिनवाद को ही अपने हमले का निशाना बनाया और शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व, शान्तिपूर्ण प्रतियोगिता और शान्तिपूर्ण संक्रमण की नीति के तहत सोवियत संघ समेत दुनिया भी की समाजवादी शिविर और अन्तरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आन्दोलन को भारी नुकसान पहुंचाया. इसी का परिणाम था कि धीरे-धीरे सारी दुनिया में समाजवादी शिविर एक-एक कर ध्वस्त होता चला गया. और आज खुद रूस खत्म होने के कागार पर पहुंच गया है.

जब इस गद्दार ख्रुश्चेव को उसके पद से जबरन हटाया गया तब इसने नीचतापूर्वक जो शब्द कहा था, वह भी इसके दूरगामी उद्देश्य को रख दिया. उसने कहा था कि –

मैं बूढ़ा और थका हुआ हूं. उन्हें खुद से निपटने दें. मैंने मुख्य काम किया है. क्या किसी ने स्टालिन को यह बताने का सपना देखा होगा कि वह अब हमें शोभा नहीं देता और सुझाव देता है कि वह सेवानिवृत्त हो जाए ? हम जहां खड़े थे वहां गीली जगह भी नहीं बची होगी. अब सब कुछ अलग है. डर दूर हो गया है, और हम बराबर के रूप में बात कर सकते हैं. यही मेरा योगदान है. मैं लड़ाई नहीं करूंगा. [266]

अमेरिका को हर वक्त अपनी दादागीरी के खात्मे का खौफ सताता रहता है. इसलिए वह सारी दुनिया से बेवजह युद्ध में अपनी नाक जरूर घुसेड़ता है. अगर कहीं युद्ध नहीं हो रहा हो तब वह युद्ध के लिए देशों को उकसाता रहता है, अगर तब भी कहीं युद्ध नहीं हो रहा हो तब वह बकायदा आतंकवादियों की मदद से युद्ध को पैदा करता है. साफ है युद्ध अमेरिकी दादागीरी और उसकी आर्थिक सम्पन्नता का सबसे बड़ा कारण है.

मौजूदा युद्ध रूस का युक्रेन में अपनी सैन्य हस्तक्षेप का है. अमेरिका ने रूस को इतना मजबूर कर दिया कि रूस को मजबूरन युद्ध में जाना पड़ा. विगत 8 माह से जारी युक्रेन में रूसी हस्तक्षेप के खिलाफ अमेरिकी साम्राज्यवाद के नेतृत्व में समूचा नाटो यानी यूरोपियन देश युक्रेन में रूस के खिलाफ युद्ध लड़ रहा है. यानी, रूस के खिलाफ समूचा नाटो गिरोह युक्रेन में युद्ध लड़ रहा है और अपने सैन्य सौदों का कारोबार कर रहा है.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…