इजरायल लेबनान की कथित सीज फायर को पश्चिमी मीडिया अमरीका का मास्टर स्ट्रोक बता ही रहा था कि पुतिन ने ईरान को सुखोई SU-35 फाइटर जेट थमा दिए. हालांकि अमरीका, रूस-ईरान की सुखोई SU-35 डील के लिए ईरान से गंभीर नतीजे भुगतने की चेतावनी पहले ही दे चुका है.
दरअसल रूसी न्यूज एजेंसी तास के अनुसार लेबनान इजरायल सीज फायर, कोई सीज फायर नहीं है बल्कि अमरीका द्वारा अपने को यूक्रेन में बचाने की एकमुश्त ताकत झोंकने की कवायद मात्र है. यानी कि इजरायल केवल लेबनानी इलाकों में हमला नहीं करेगा बाकी गाजा, फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इजरायली हमले जारी रहेंगे.
समाचारों के मुताबिक इजरायल के नापाक इरादों को भांपते हुए पुतिन ने ईरान को न केवल सुखोई SU-35 भेज दिया है बल्कि लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों की खेप भी रवाना कर दी है. उधर इजरायली मीडिया ने कहा है कि रूस द्वारा ईरान को उकसाना शांति बहाली की कोशिशों में रुकावट पैदा करना है.
अब मामला जो भी है लेकिन इजरायल को तब तक शांति की उम्मीद नहीं करनी चाहिए जब तक वह गाजा फिलिस्तीनी हिस्सों से अपना फौजी दस्ता पूरी तरह वापस नहीं बुला लेता है. खबर है कि ईरानी वायु सेना ने अपने 2 दर्जन ‘सैनिक पायलटों’ को सुखोई SU-35 आपरेट करने की ट्रेनिंग मार्च 2020 से जून 2023 तक मास्को में दिला रखी है और सुखोई SU-35 की डील वर्ष 2019 से चल रही थी, जो अब जाकर फ्लोर पर पूरी हो गई है.
इस समय पश्चिमी मीडिया ने पुतिन के ओरेशनिक मिसाइल हमले की तैयारी का इतना अनाप-शनाप प्रचार कर दिया है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को चक्कर आने लगे हैं. शेयर मार्केट अपने सबसे अधिक अनिश्चितकालीन घाटे की भेंट चढ़ रहा है. जहां एक ओर नाटो सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों की नींद उड़ी हुई है, वहीं दूसरी तरफ पुतिन की ‘हुर्रा’ संबोधन में सख्ती और बाडी लैंग्वेज में और अधिक आत्मविश्वास का इजाफा हुआ है.
यूक्रेनी सैनिकों में मची भगदड़ अफरातफरी से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पुतिन की तरफ से कोई बड़े हमले की पक्की तैयारी की जा रही है. हालांकि नाटो देशों द्वारा पिछले दो सालों में इस तरह रूस को उकसाने के कई मामले होते रहे हैं लेकिन इस बार का मामला अलग इसलिए है कि क्रेमलिन अपने परमाणु शक्ति इस्तेमाल करने के दस्तावेजों में बदलाव कर चुका है और एक हफ्ते पहले यूक्रेन के नीप्रो शहर में गैर परमाणु ICBM मिसाइल दागकर नाटो देशों को ट्रेलर भी दिखा चुका है.
उधर नाटो सदस्य देशों का एक धड़ा मानता है कि पुतिन नाटो देशों पर हमला करेंगे तो करेंगे लेकिन इन नाटो सदस्य देशों का ये भी मानना है कि रूस की ओरेशनिक जैसी गैर परमाणु मिसाइलों के जबाब में नाटो के पास कोई गैर परमाणु मिसाइल नहीं है, अंततोगत्वा नाटो देशों को अपनी रक्षा में न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल करना पड़ जायेगा और इस तरह से पुतिन न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल के लिए नाटो को उकसाकर खुद बरी होना चाहते हैं.
हालांकि बेलारूस राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने नाटो देशों पर ‘पुतिन का शक्तिशाली हमला’ की बात को डर से उपजे कयास मात्र बताया है. लुकाशेंको ने कहा कि पुतिन ने अपने को यूक्रेन में केन्द्रित किया है नाटो सदस्य देश यूक्रेन को मदद करना बंद कर दें तो युद्ध खुद ब खुद खत्म हो जाएगा वरना पुतिन का ये प्रणयुद्ध है और नाटो का वजूद मिटाने तक पुतिन युद्ध खत्म कर देंगे, ये सिर्फ एक खूबसूरत गलतफहमी होगी.
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धर्म, पूंजीवाद का बाप है. निकम्मा पुत्र अपने कुकर्मों को छिपाने के लिए हमेशा अपने बाप की आड़ में छिप जाता है. नतीजा ये है कि दुनिया में एक ही धर्म के तमाम देश होने के बावजूद वो धार्मिक तौर पर एकजुट नहीं हैं. इसका फायदा अमरीका बड़े जोर-शोर से उठा रहा है.
ईराक, अफगानिस्तान, ईरान, फिलिस्तीन तमाम इस्लामिक देशों में राजनीतिक फूट-फुटौव्वल पैदा कर अमरीका अपने हितों के लिए खतरा मानते हुए उन्हें एकजुट होने से रोकते रहा है और धीरे धीरे सबको ठोकते पीटते इस्लामिक मुल्कों को उनकी दयनीयता पर अकेला छोड़ते रहा है.
पूंजीवादी व्यवस्था वाले मुल्कों में आपसी एकता सिर्फ संसाधनों की एकता है, न कि मानवतावादी एकता. दुनिया में दो ही धर्म सबसे ज्यादा तादाद में हैं क्रिश्चियन और इस्लाम. बाकी छोटे छोटे धर्म तो इन दो ताकतवर धर्मों के बफर जोन मात्र हैं. क्रिश्चियन मुल्क अगर विज्ञान व दर्शन में एक औसत अगुवाई वाले देश बने हैं तो ये उनके ‘आसमानी बाप’ की देन नहीं बल्कि उन मुल्कों में मुखर रहते रहे नास्तिक व विज्ञानवादी महामानवों की असाधारण बलिदानों की देन है, जिन्होंने महिलाओं को भी बराबरी के अधिकार देने की भारी मुखालफत की.
जबकि इस्लाम धर्म में विज्ञान की तरफ पीठ फेर ली गई. वह अपने पीर पैगम्बरों के साधुवादों व ‘आसमानी किताब’ में ही एक कपोल कल्पित ‘स्त्रीहीन’ जन्नत को टटोलते रहे और धर्मांधता की पट्टी आंख से भी ज्यादा दिलो-दिमाग में कस गई. शरीयत इनके लिए पवित्र आदेश है लेकिन जब अमरीका-ब्रिटेन इनके तम्बू, टाल-टप्पर सबको उजाड़े जा रहे हैं तब वहां पर इनका शरीयतनामा धूल फांक रहा होता है. धर्म और राजनीति इनके लिए एकदम विपरीत चीजें हैं.
अमरीका (भले ही) अपनी राजनीति से इनके सारे इलाकों को बम-मिसाइलों से पाट दे लेकिन बचे खुचे लोग प्रतिरोध करने के बजाय बेहयाई से चादर बिछा कर नमाज अता करने लग जाते हैं. आज
अगर गजा़, फिलिस्तीन, सीरिया, ईराक, ईरान में इंसानी अम्न के हिमायती हैं तो सिर्फ विज्ञान के वास्तविक कद्रदान रूस, उत्तर कोरिया, चीन जैसे प्रगतिशील मुल्क हैं.
पक्षधरता बिना स्वहित के दर्ज नहीं कराई जाती है. तब रूस, चीन, उत्तर कोरिया के भी इन युद्धों में अपने अपने हित हैं, इसमें कोई दोराय नहीं. लेकिन दुनिया का दूसरे नंबर का शक्तिशाली धर्म, आखिर अपने धर्म के लोगों को बचाने के लिए एकजुटता क्यों नहीं दिखा पा रहा है ?
कहने को तो अरब मुल्कों का दुनिया में नाम बताया जाता है लेकिन शाह, शेख, पठान सब अमरीका के पिट्ठू बने हुए हैं और ब्लैक मेल होने की हर पीड़ा को सहन कर रहे हैं. अगर ऐसे धर्म जो अपने ही धर्म के लोगों को मारे जाने पर शक्तिशाली राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं देते हैं तो ऐसे कथित शक्तिशाली धर्मों का नाश जरूर होना चाहिए, जिन्होंने ‘आसमानी किताब’ के चक्कर में जमीनी हकीकत से मुंह फेर लेने को ही ‘ईमान और सच्चा धर्म’ घोषित कर रखा है.
- ए. के. ब्राइट
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