भारतीय सुरक्षा बल द्वारा मणिपुरी जनता की बेलगाम हत्या के विरूद्ध 16 साल से अनशन कर रही युवा मन की व्यथा का इससे ज्यादा और क्या मजाक हो सकता है कि शासकवर्गीय चुनाव में उसे महज 90 वोट की प्राप्ति होती है. इरोम को मिले महज 90 वोट इस चुनाव के भ्रष्टाचारमुक्त और जनपक्षीय होने के मूल चरित्र पर ही सवाल उठाने के लिए काफी हैं. यह चुनाव बलात्कारियों, डाकुओं, हत्यारों और लूटेरों का पर्याय बन गया हैं.
यह अनायास नहीं है कि वर्तमान लूटेरी राजव्यवस्था के विरूद्ध हथियारबंद संघर्ष की ज्वाला जलाये कट्टर वामपंथियों ने इस चुनाव का बहिष्कार करने की रणनीति को अपना केन्द्रीय कार्यभार बना लिया है. ऐसे में इरोम शर्मिला को मिले महज 90 वोट इन कट्टर वामपंथियों के तर्कों की ही शानदार तरीके से न केवल पुष्टि ही करती है वरन् भारतीय लोकतंत्र का पोल भी खोलती है. इस चुनाव में धांधली ने सबसे ज्यादा भारतीय चुनाव प्रणाली की विश्वसनीयता को ही खत्म कर दिया है.
कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने तकनीकि विशेषज्ञता का परिचय देते हुए चुनाव में प्रयोग किये जाने वाले ई0वी0एम0 मशीन के ही साॅफ्रटवेयर में छेड़छाड़ कर जहां गिर रहे वोटों को अपने पक्ष में कर लिया है वहीं भारतीय स्वायत्त संस्थाओं पर भी अपनी गिरफ्रत को बढ़ाते हुए एक-एक कर तमाम संस्थाओं में अपने अनुयायियों को बहाल कर उसे अपनी मनोनुकूल सांचे में ढाल लिया है. सी0बी0आई0 तो पहले ही तोता था. अब आर0बी0आई0, चुनाव आयोग भी यहां तक कि भारतीय न्याय व्यवस्था का सर्वोच्च संस्थान सुप्रीम कोर्ट को भी अपने अनुसार ढाल लिया है अथवा अपने दबाव में ले लिया है. ऐसे में वर्तमान भारतीय व्यवस्था एक पूरी चुनौती को झेल रही है.
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