तुम अपने दुःख के कतरे से भी
महाकाव्य रच देते हो
तुम्हारा जीवन कहानियों में पुनर्जन्म पाता है
तुम्हारी आत्मा वेदों में विश्राम करती है
तुम्हारी हर खुशी
देवताओं के चरणों मे फूल बनकर बरसती है.
दुःखी तो हम भी होते हैं
लेकिन हमारा दुःख महज खारा पानी है
जो बहते बहते सूख जाता है.
हमारे जीवन में भी कहानियां होती हैं
लेकिन वो ‘कहानी’ नहीं बन पाती
इसलिए हमारा पुनर्जन्म नहीं होता
हम महज जीते हैं और मर जाते हैं.
आत्मा तो हमारी भी होती है
लेकिन वह वेदों में निवास नहीं करती
उसे तो निरंतर बचते रहना होता है-
आग से, बारिश से, और कड़ाके की ठंड से
शायद इसलिए तुम
हमारी रूह को रूह नहीं मानते.
हम खुश भी होते हैं,
नाचते और गाते भी हैं
लेकिन हमारी खुशी
देवताओं के चरणों में
फूल बनकर नहीं बरसती.
हमारे नाचने से,
नदी में पानी चढ़ता है
पहाड़ों पर बादल आते हैं
हमारी खुशी से
हमारे स्तनों में दूध उतरता है…
हमारे दुःख और तुम्हारे दुःख में
हमारी खुशी और तुम्हारी खुशी में
हमारी आत्मा और तुम्हारी आत्मा में
इतना फासला क्यों है ?
…क्योंकि तुम इतिहास के अंदर हो
और हम इतिहास के बाहर…
- मनीष आजाद
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