Home ब्लॉग किसान आंदोलन और सच्चे गणतंत्र के संघर्ष का हिस्सा बने

किसान आंदोलन और सच्चे गणतंत्र के संघर्ष का हिस्सा बने

5 second read
0
0
299

किसानों के 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की घोषणा काफी पहले कर दिये जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार के ओर से भी एक पत्र जारी किया गया था, जो किसानों के ट्रैक्टर परेड में हिंसा फैलाने और हिंसा फैलाने के लिए अपने कार्यकत्र्ताओं अथवा गुंडों को आश्वस्त करने वाला था.
15 जनवरी, 2021 को जारी पत्र ‘राष्ट्रहित में किसान आन्दोलन संबंधी आग्रह’ शीर्षक में भाजपा की ओर से साफ शब्दों में कहा गया था कि –

सभी कार्यकर्ता और स्वयंसेवकों को सूचित किया जाता है कि किसान नेता और सरकार के बीच हो रही बातचीत का, किसान संगठनों के जिद्दी और अड़ियल रवैया की वजह से, कोई परिणाम नहीं निकलता देख हमें खुद को राष्ट्रहित हेतु मजबूत करना होगा. कहीं भी सरकारी सम्पति के नुक्सान (मोबाइल टाबर, दुकान, बीजेपी कार्यालय आदि) और सरकार विरोधी गतिविधियों और भाषणों को वर्जित करना होगा. किसान संगठनों द्वारा दिल्ली में की जा रही 26 जनवरी, 2021 की ट्रैक्टर रैली का विरोध करते हुए इन देशद्रोहियों की हर कोशिश नाकाम करने का प्रयतन करना होगा.

अंत : जरूरत पड़ने पर जुल्म के बदले की गयी हिंसा पर कोई भी कानूनी करवाई न होने का भरोसा दिलाते हुए, आने वाली रणनीति के लिए हम अपने सभी कार्यकर्ता और स्वयंसेवको को अपने प्रदेश अध्यक्ष/नजदीकी कार्यालय से संपर्क में रहने का आग्रह करते हैं.

सधन्यवाद,
भवदीय
(पराजेश भाटिया)
महामंत्री एवं प्रदेश मुख्यालय प्रमुख, भारतीय जनता पार्टी

भारतीय जनता पार्टी की ओर से 26 जनवरी को हिंसा करने और हिंसा के बाद पुलिस व अन्य कानूनी कार्रवाई न होने का पूरा भरोसा दिया, जिसका पूरा पालन भारतीय जनता पार्टी की ओर के कार्यकत्र्ताओं, स्वयंसेवकों, जो वस्तुतः गुण्डे हैं, ने किया, और देश को भ्रमित करने का कुप्रयास किया. जिसके तहत उसके गुर्गे ने दिल्ली में किसान आन्दोलन के नाम पर हिंसा फैलाया.

भारतीय जनता पार्टी के गुर्गो के अथक प्रयास के बाद भी संयमित किसान आन्दोलनकारियों ने हिंेसा को न केवल फैलने से रोका बल्कि पुलिस और भाजपाई गुर्गों द्वारा किये गये तमाम षड्यंत्रों को भी विफल किया. पुलिसिया और भाजपाई गुंडों के द्वारा 26 जनवरी के ट्रैक्टर परेड के बाद तो सोशल मीडिया पर भाजपाई आईटी सेल के गुंडों का अनर्गल प्रलाप का बाढ़ आ गया. हिंसा सारी दुनिया ने कैमरे की नजरों से देखा. इसके बाद सारी दुनिया के लोग उबल पड़े और सोशल मीडिय पर अपना तीब्र विरोध दर्ज किया.

सोशल मीडिया पर भाजपाई गुंडों के किसान आन्दोलनकारियों के खिलाफ फैलाये जा रहे अनर्गल प्रलाप के खिलाफ लिखते हुए प्रशांत जालटे कहते हैं –

सुनिए, आप चाहे जितने बड़े राष्ट्रवादी हों लेकिन उस सैनिक से बड़े राष्ट्रवादी नहीं हैं, जो सीमा पर युद्ध लड़कर रिटायर हुआ है और दो महीनों से दिल्ली के बॉर्डर पर बैठा है. गोदी मीडिया आज बहुत देश-देश कर रहा है, दो महीने से कहां थे ये लोग ?

हर बात पर गिरोह के लोग देश-देश करने लगते हैं. जो लाखों लोग सड़क पर हैं, वे देश से बाहर हैं ? जो हजारों की संख्या में रिटायर्ड फौजी धरने पर हैं, वे देश के नहीं हैं ? 8 महीने से आंदोलन कर रहे लोग देश के नहीं हैं ? आंदोलन में मरने वाले दर्जनों लोग देश के नहीं हैं ? जिस जनता को दो धड़ों में बांटने का षडयंत्र रचा जा रहा है, वे देश के लोग नहीं हैं ? देश, संविधान, कानून, राष्ट्रीय चिन्ह और धर्म के नाम पर कब तक उल्लू बनाओगे ?

जहां तक तिरंगे के अपमान की बात है तो हमारा तिरंगा विराट भारतीय गणतंत्र और जनता की शक्ति का प्रतीक है. उसके नीचे 140 करोड़ झंडे फहराए जा सकते हैं. इस देश के करोड़ों रंग, करोड़ों लोग, हजारों विचार सब तिरंगे के नीचे हैं. तिरंगे की निचली सीढ़ी पर कोई झंडा फहरा देने से भारत के तिरंगे का कुछ नहीं बिगड़ता. देश का हर भला-बुरा बच्चा ‘भारत माता’ का ही बच्चा है. कुछ शरीफ हैं, कुछ उचक्के-उपद्रवी भी हैं.
दिल बड़ा रखिए. ये घिनौना खेल बंद कीजिए.

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, महाराष्ट्र जैसे राज्यों के लाखों किसानों को आप देशविरोधी साबित भी कर ले जाएं तो हासिल कुछ नहीं होगा.

वहीं बट्टी लाल सरसॉप लिखते हैं –

किसानों ने दिल्ली पुलिस को 13 बन्दे सौंपे हैं, जिनके पास सरकारी आईडी कार्ड भी हैं. आईटीओ पर सरकारी बसों को नुकसान पहुंचाने में इन्हीं का योगदान था. जॉइंट कमिश्नर ने जांच का भरोसा हालांकि दिलाया है लेकिन यह साबित होता है कि आन्दोलन को बदनाम करने के लिए सरकार ने अपनी पूरी ताकत झौंक रखी है.

वहीं संजीव ढिंडसा लिखते हैं –

तिरंगे को फेंकने वाला तो राष्ठ्रद्रोही ठहराया जा रहा है लेकिन तिरंगे पर लठ मारने वाले और सड़क पर फेंकने वाले वर्दीधारियों पर कोई उंगली क्यों नहीं उठा रहा है ? जरा विवेक से सोचिए इस तिरंगे का असली अपमान किसने किया और किसानों को भड़काने का काम किसने किया ?

वहीं पीके सिंह लिखते हैं –

अकेला किसान कितनों से लड़ रहा है ?? समस्त भाजपा पार्टी, करोड़ों RSS कार्यकर्ता, दिल्ली पुलिस प्रशासन, सुप्रीमकोर्ट के लालची जज, सीआई, ईडी, एनआईए डिपार्मेंट, पूंजीपति जिनके आगे सरकार नतमस्तक है, 129 गोदी मीडिया चैनल, करोड़ों भाजपाई अंधभक्त आदि-आदि.

उपरोक्त विचार यह बताने के लिए पर्याप्त है कि किस तरह भाजपा ने अपनी निरंकुश सत्ता, अपराधियों का सरगना नरेन्द्र मोदी और षड्यंत्रकारी, हत्यारा व तड़ीपार अमित शाह के पूरे नियंत्रण व सहमति से किसान आन्दोलन को खत्म करने, उन्हें भ्रमित करने व देश में बदनाम करने की कोशिश की. इसके बाद भी किसान आन्दोलन ने अपनी जबर्दस्त जीत हासिल की. वहीं आन्दोलन की पूरी व्याख्या और उसके अगले पड़ाव की बेहतरीन चित्र खीचते हुए नरेन्द्र कुमार लिखते हैं –

इस किसान आंदोलन और सच्चे गणतंत्र के संघर्ष का हिस्सा बनें. नेतृत्व अब जनता के हाथ में है. अनुशासन जरूरी और अच्छी बात है. किसानों ने अपने नेताओं के अनुशासन की भावना का अबतक सम्मान किया है लेकिन इतना भी अनुशासन क्या कि सत्ता यह समझ ले कि नेताओं को नियंत्रण में कर लेने पर जनता नियंत्रण में आ जाएगी ! जनता को जन आंदोलन में अपना रास्ता, अपनी लड़ाई और अपना नेतृत्व खुद करना होता है.

जो अभी हो रहा है, यह होता है जन आंदोलन का चरित्र , जन आंदोलन का स्वरूप और जन आंदोलन की दिशा. यह किसान आंदोलन नेताओं के गिरफ्त में नहीं है. यह किसान आंदोलन अपने नेताओं से एक विमर्श के तहत रास्ता तय कर रहा है. सत्ता यह भ्रम ना पाले कि आंदोलन की मुख्य दिशा और उसके आवेग को सत्ता या उसके नेताओं के अनुशासन नियंत्रित कर सकते हैं.

किसान आंदोलन ने जहां तक तक तर्कपूर्ण लगा नेताओं के अनुशासन को स्वीकार किया, लेकिन जब सत्ता ने अपने गुरूर का, अपनी ताकत का आक्रमक रूप दिखाया और 5000 ट्रैक्टर की सीमाओं को तय करने लगा, दर्जनों शर्तें थोपने लगी और किसान नेताओं को एक तरह से अपमानित करने की कोशिश की, तो बिना कहे जनता ने नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया.

मोदी सरकार तथा सत्ता में बैठे सभी पूंजीवादी नेतृत्व को यह समझना होगा कि जन आंदोलन का मुख्य केंद्र और उसका नेता वास्तव में उसके मुद्दे, उसके प्रहार के केंद्र और बदलाव के रास्ते होते ही हैं इसलिए आज की तारीख में इस आंदोलन में किसान नेताओं से सत्ता की वार्ता अब बेईमानी हो चला है. पिछले 2 महीनों में किसान तथा दूसरे मेहनतकश आबादी, यहां तक कि मध्यवर्ग भी इस आंदोलन की आत्मा, इसके मुद्दे, भूख और मुनाफा के रिश्ते, किसान तथा मध्य वर्ग के संपत्तिहरण के बाद मजदूर बढ़ने के इतिहास और भविष्य को समझ चुके हैं. अब उन्हें कोई पीछे नहीं लौटा पाएगा.

सत्ता समझ ले कि अब यह नेताओं के बस में नहीं है कि कोई अब कानून वापसी के बगैर वे कोई समझौता कर ले. अब यह लड़ाई मंजिल पर ही अगला डेरा डालेगा. वह मंजिल भी एक पड़ाव होगा. यह लड़ाई 3 कानूनों की वापसी के बाद भी रुकने वाली नहीं है, क्योंकि किसान तथा आम जनता यह समझ चुकी है कि मोदी सरकार यदि सत्ता में रहेगी तो इस कानून को लाकर के एकाधिकार पूंजीवादी शक्तियों की फिर मदद करेगा.

इस आंदोलन में पूंजीवाद के समर्थक दूसरी पार्टियां भी नंगा हो रही है इसलिए मोदी सरकार के जाने के बाद जो पार्टियां आएंगी, उनके ऊपर भी किसान तथा दूसरे मेहनतकश अपने मुद्दे – खेती बचाने, बेरोजगारी और राज्य के नियंत्रण में पूरी जनता के लिए जीवन की व्यवस्था – की लड़ाई जारी रखेंगे. इस आंदोलन ने पूंजीवाद को बहुत ही गहराई से नंगा किया है. यह आंदोलन दशकों से जमी बर्फ को पिघला दिया है, जिसके घेरे में उदारवादी नीति तथा पूंजी का तंत्र अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा था.

जन आंदोलन अब नई ऊंचाई और जनता के सही गणतंत्र बनाने की लड़ाई की तरफ मार्च कर चुका है. इस किसान आंदोलन और सच्चे गणतंत्र के संघर्ष का हिस्सा बनें. आए, इस किसान आंदोलन और सच्चे गणतंत्र के संघर्ष का हिस्सा बने.

 

 

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…