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ऋषि सुनक की सनक में उन्मत ‘भारतीय मुनी’

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ऋषि सुनक की सनक में उन्मत 'भारतीय मुनी'
ब्रिटिश ‘ऋषि’ और भारतीय ‘मुनी’

ब्रिटिश नागरिक ऋषि सुनक ब्रिटेन का प्रधानमंत्री क्या बना भारतीय मुनियों का गिरोह सनक गया है. बल्लियां उछल-उछल कर इस परिघटना का इस तरह ढ़ोल पीट रहा है मानो ब्रिटिश ‘ऋषि’ भारतीय ‘मुनी’ साथ मिलकर किसी काल्पनिक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने वाला है. इसके साथ ही ये भारतीय मुनी गिरोह इस बात पर भी उछल रहे हैं कि ‘जिस ब्रिटेन ने भारत को 200 साल तक गुलाम बनाकर रखा अब वह एक भारतीय ब्रिटेन को गुलाम बनायेगा !’ सवाल है, क्या सचमुच ऋषि सुनक ब्रिटेन को गुलाम बनाने जा रहा है ?

ऐसी ओछी सोच रखने वाले ये भारतीय मुनी अपनी नीचता की पराकाष्ठा तब पार कर जाता है जब भारत में ही बकायदा विवाहिता सोनिया गांधी को जब प्रधानमंत्री बनने की बारी आती है, तब ये भारतीय मुनी और उनकी मुन्नियां नंग-धरंग होकर सिर मुड़ाने और विधवा होने की ढ़ोंग करने लगता या लगती है. मर चुकी सुषमा स्वराज की यह निर्लज्ज ढ़ोंग सबने देखा है.

भारत के सम्पूर्ण इतिहास के कुछ वर्षों को छोड़ दें तो तकरीबन तमाम वक्त यहां के बहुसंख्यक निवासी गुलामी की जिन्दगी व्यतीत करते आये हैं. खासकर आर्यों के हमले और उसके बाद रचित मनुस्मृति ने भारत की बहुसंख्यक आबादी को निकृष्ट दास से भी बदतर जीवन जीने को विवश कर दिया है. जिस कारण बड़ी तादाद में भारतीयों ने इस देश से पलायन किया है, जो आज भी जारी है. अथवा विदेशी शासकों ने जबरन काम करवाने के लिए गुलाम बना कर ढ़ो ले गये हैं.

‘भारतीय मूल’ आखिर कितना भारतीय ?

इन दोनों तरीकों से पलायित भारतीय आबादी ने जहां भी गये, खुद को वहीं पर पूरी तरह संयोजित कर लिये और उस देश के विकास में अपना भरसक योगदान दिये, जिस कारण कई जगहों पर वे उच्च पदों पर भी पहुंचे. इसी में अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस है तो इंडोनेशिया के प्रधानमंत्री राम गुलाम और अब ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक है. अपने-अपने देशों में उच्च पदों पर पहुंचे ये तमाम लोगों पूरी तरह अपने देश की नीतियों के पक्षधर है,

अगर उनके देश की नीतियों के आड़े अगर भारत भी आयेगा तो वह उसे उसी समय खड़ी खड़ी सुना देगा, जैसा की कमला हैरिस मोदी के साथ कर चुकी है और उससे भी पहले भारतीय मूल के एक अमेरिकी वकील ने भारतीय दूतावास की एक महिला कर्मचारी को अमेरिकी श्रम कानून के उल्लंघन के अपराध में अमेरिकी थाने में रातभर बंद करवा चुके हैं, जिसको लेकर भारत में खूब शोर-शराबा हुआ था.

यही कारण है कि अगर भारतीय मूल के किसी व्यक्ति ने अपने देश में कोई उच्च पद हासिल कर लिया है तो यह उस देश के आन्तरिक सहिष्णुता और लोकतांत्रिक मूल्यों के सम्मान के कारण है, न कि वह कोई भारतीय है, इसके कारण. वह उतनी ही मजबूती से अपने देश की नीतियों पर अडिग रहेगा जितना उस देश का कोई मूलनिवासी होता.

‘भारतीय मूल’ का भारत में कितना सम्मान

विदेशों में बसे भारतीय मूल के किसी व्यक्ति के उच्च पद पर आसीन होते ही भारतीय मुनी बल्लियां उछलने लगते हैं. दरअसल यह गुलाम मानसिकता का परिचायक है. लेकिन वही उच्च पदस्थ भारतीय मूल के व्यक्ति अपने पुरखों की खोज में यहां आते हैं तब यही मुनी-महात्मा उसके जड़ों को ही मिटा डालते हैं. राम गुलाम के साथ घटी इस घटना ने भारतीय उल्लास के पीछे छिपी घृणा को बखूबी उजागर किया है.

दरअसल, मॉरिशस के प्रधानमंत्री राम गुलाम जब प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए तो भारतीय मुनियों ने खूब खुशियां मनाई. इससे भारत से गुलाम बनाकर ले जाये गये राम गुलाम के पुरखों के वास्तविक आवास की खोज भारत में शुरु की गई. पता चला कि वह बिहार के एक जिले के किसी गांव से संबंध रखते थे. भारत सरकार के बुलाहट पर जब राम गुलाम भारत आये और अपने पुरखों की जमीन पर जाने की कोशिश की तो उन्हें उनकी स्मृतियों से ही मिटा दिया गया और बरगला कर भगा दिया.

उनके पुरखे के गांव के लोगों को यह डर सताने लगा कि यदि वास्तव में उनको उनका अपना जमीन दिखा दिया जाये तो कहीं वह उस जमीन पर अपना दावा न कर दें, जिस जमीन पर आज से माफिया गिरोह या अन्य लोगों ने किसी यरह कब्जा कर रखा है. इसी डर के कारण राम गुलाम को उनका अपना जमीन देखने ही नहीं दिया गया. और फिर अंत में वह निराश होकर अपने देश वापस लौट गये. इसी के साथ फिर भारतीय मुनियों ने फिर कभी राम गुलाम को बुलाने का आमंत्रण भी नहीं दिया.

सोचिए, आज जिस ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर भारतीय मुनि बल्लियां उछल रहे हैं, अगर ऋषि सुनक ने अपने मूल स्थान के जमीन पर अपना दावा करने आ जाये तो यह सारी खुशियां एक क्षण में हवा हो जायेगी. दरअसल, गुलामों की इस प्रवृत्ति ने भारतीयों को दुनिया भर में हास्यास्पद बना दिया है.

सुनक बनाम मोदी, नागरिक बनाम हिन्दुत्व !

प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी लिखते हैं  भारत के हिन्दुत्ववादी लोगों में इन दिनों ब्रिटेन का नशा चढ़ा हुआ है. अभी तक वे हिंदुत्व के नशे में थे, इन दिनों सुनक के नक़ली नशे में हैं. यह नशा पैदा किया है मीडिया के हिन्दुत्ववादी अबाध प्रवाह ने. यह सच है ब्रिटेन में सुनक ऋषि पीएम बनने वाले हैं, पर उनका भारत से कोई लेना देना नहीं है. इसके बावजूद हिन्दुत्ववादी गैंग उनके पीएम बनने को हिन्दूधर्म की विजय के रुप में देख रहा है.

सुनक की खूबी है उनका ब्रिटेन का नागरिक होना, न कि हिन्दू होना. वे इसलिए पीएम नहीं बनाए जा रहे क्योंकि वे हिन्दू हैं. हिन्दूधर्म उनकी व्यक्तिगत चीज है, यह उनकी पहचान का मूल नहीं है. उनकी पहचान ब्रिटेन की नागरिकता से बनी है लेकिन हिन्दुत्ववादियों को तो धर्म की पहचान के आगे नागरिक की पहचान नज़र नहीं आती. सुनक और उनके राजनीतिक दल ने कभी हिन्दूधर्म के नाम पर वोट नहीं मांगा. भारतवंशी के नाम पर वोट नहीं मांगा, वे हमेशा राजनीतिक कार्यक्रम के आधार पर चुनाव लड़ते रहे लेकिन हिन्दुत्ववादियों को इस सबसे कोई लेना-देना नहीं है.

हिन्दुत्ववादी एक फेक थ्योरी पर काम कर रहे हैं. थ्योरी यह है कि हिन्दू धर्म महान है. विश्व में वर्चस्व स्थापित करने की उसमें क्षमता है. जिसका इस थ्योरी का अनेक दंतकथाओं के ज़रिए वे आए दिन प्रचार करते रहते हैं. उनके सिद्धान्त प्रचार में एक सूत्र है ‘वसुधैव कुटुम्बकम.’ इस धारणा का वे खूब दोहन करते हैं जबकि वास्तविकता यह है हिन्दू धर्म भारत में किसी भी युग में सर्व-स्वीकृत धर्म नहीं रहा. हिन्दू धर्म में जितने भी विचार हैं वे सब लोकल यानी स्थानीयता से बंधे हैं. जाति और वर्णाश्रम व्यवस्था से बंधे हैं.

विश्व में वे तमाम देश जो लोकतंत्र, लोकतांत्रिक, संरचनाओं और लोकतांत्रिक मनुष्य के निर्माण में लगे हैं, वे कभी उन विचारों की ओर नहीं लौट सकते जिनकी धुरी असमानता है. हिन्दू धर्म व्यक्ति से व्यक्ति के बीच असमानता के आचरण पर टिका है, आज भी असमानता इसकी धुरी है. उसने समानता के नज़रिए का कभी समर्थन नहीं किया. समर्थन किया होता तो ब्रिटेन के शासकों को मनुस्मृति के स्थान पर भारतीय दण्ड संहिता लागू न करनी पड़ती.

आज भी आरएसएस के लोग कहते हैं – गर्व से कहो हम हिन्दू हैं. वे यह नहीं कहते कि गर्व से कहो हम नागरिक हैं. उनके यहां अनेक रुपों और स्तरों पर संविधान का प्रवेश वर्जित है और मनुस्मृति और धर्मशास्त्रीय मान्यताएं और धार्मिक रुढ़ियां जीवन में मुख्य संचालक हैं. संघ के लोग आज भी संविधान का पालन करने से डरते हैं और उससे दूर रहकर चलते हैं. उनको भय है कि कहीं संविधान का उन्होंने पालन किया तो हिन्दूधर्म ख़त्म न हो जाए इसलिए वे अहर्निश धर्मनिरपेक्षता पर हमले करते रहते हैं जबकि सुनक को धर्मनिरपेक्षता पसंद है.

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि लोकतंत्र का धर्म के साथ अंतर्विरोध है. लोकतंत्र जब आता है तो वह ईश्वर और धर्म के स्थान पर मनुष्य को प्रतिष्ठित करता है. सारी दुनिया में ईसाईयत और राजा के वर्चस्व को लोकतंत्र ने ख़त्म किया. ब्रिटेन में भी ईसाईयत के वर्चस्व को लोकतंत्र ने ख़त्म किया, मनुष्य की शक्ति और नागरिकता की पहचान को प्रधान बनाया. भारत में भी जब संविधान बना तो धर्म को नहीं मनुष्य को प्रधान बनाया गया. मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की नई व्याख्या और नई समानता पर आधारित व्यवस्था पैदा हुई.

हमारे पुराने अधिकांश शास्त्रों में समानता की धारणा नहीं है. जहां है भी वहां वे वर्णाश्रम व्यवस्था को जीवन से अपदस्थ नहीं कर पाए. एकमात्र लोकतंत्र और मनुष्य की सत्ता ही है जो समानता का जयघोष करती है।धर्म कभी समानता का जयघोष नहीं करता. धर्म में तो निषेधों और असमानता और शोषण से लड़ने की क्षमता ही नहीं है. हिन्दू धर्म भेदों को मानता है और भेदों को पालता-पोसता है. यही वजह है कि राजा राजमोहन राय ने हिन्दू धर्म की तीखी आलोचना विकसित की और उसका प्रचार किया.

राजा राजमोहन राय आधुनिक भारत के जनक हैं. कोई हिन्दू नेता या आरएसएस का नेता आधुनिक भारत का जनक नहीं है. राजा राजमोहन राय ने हिन्दू धर्म को अस्वीकार करते हुए ब्रह्म समाज की स्थापना की. आधुनिक भारत में सबसे पहले आधुनिक मनुष्य और आधुनिक मूल्यों की ओर हम सबका ध्यान खींचा और हिंदू धर्म की तीखी आलोचना विकसित की.

राजा रामममोहन राय ने हिन्दू, इस्लाम और ईसाई तीनों ही धर्मों की अपने लेखन में तमाम बुरी चीजों की आलोचना विकसित की. धर्म की पहचान से देश की जनता को मुक्त करके मनुष्य की पहचान को प्रतिष्ठित किया. उस ज़माने के सनातन हिन्दू धर्म के मानने वालों के ख़िलाफ़ समझौताहीन वैचारिक-सामाजिक संघर्ष चलाया और आधुनिक भारत के निर्माण में केन्द्रीय भूमिका अदा की.

ब्रिटेन में सुनक के पीएम बनने से भारत में घी-दूध की नदियां बहने वाली नहीं हैं, न हीं ब्रिटेन में आर्थिक संकट दूर होने वाला है. सुनक के वित्तमंत्री रहते ब्रिटेन में आर्थिक संकट कम नहीं हुआ, अब वे प्रधानमंत्री बनेंगे तो कोई मूलगामी परिवर्तन वहां के समाज में आने की संभावनाएं नहीं हैं. बुनियादी बात यह है सुनक ऋषि एक राजनीतिक नेता हैं, वे हिन्दू नेता नहीं हैं. उनके पास लोकतंत्र की परंपराओं और मूल्यों की समृद्ध परंपरा है, जिसका हमारे हिन्दुत्ववादियों और उनके नायक पीएम नरेन्द्र मोदी में एक सिरे से अभाव है.

नरेन्द्र मोदी और सुनक में कई बुनियादी अंतर

नरेन्द्र मोदी और सुनक में कई बुनियादी अंतर हैं. पहला अंतर यह है कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद भी हिन्दू की पहचान से अपने को मुक्त नहीं कर पाए हैं, जबकि सुनक ने कभी हिन्दू पहचान के प्रतीकों को अपने राजनीतिक सार्वजनिक आचरण का अंग नहीं बनाया. वे अपने लोकतांत्रिक व्यक्ति की तरह पेश करते रहे.
लोकतांत्रिक व्यक्ति और हिन्दू व्यक्ति में जमीन-आसमान का अंतर होता है. हिन्दू व्यक्ति धर्म के बोझ को ढोता है, लोकतांत्रिक व्यक्ति धर्म से मुक्त स्वतंत्र नागरिक की भूमिका निभाता है.

दूसरा बड़ा अंतर यह है कि सुनक ने उन्मादी प्रचार नहीं किया, मोदी ने उन्मादी प्रचार किया. तीसरा अंतर यह है कि सुनक ने कभी ब्रिटेन के सरकारी धन का धार्मिक-पर्व महोत्सव पर अपव्यय नहीं किया, जबकि मोदी ने अरबों रुपए का सरकारी धन हिन्दू धर्म और उत्सवों पर खर्च किया. इसे धार्मिकता का प्रचार कहते हैं. सुनक के लिए जनता प्रमुख है मोदी के लिए संघ और उसका प्रौपेगैंडा प्रमुख है. सुनक ने कभी मीडिया सेंसरशिप की हिमायत नहीं की, मीडिया के दमन का समर्थन नहीं किया जबकि मोदी ने मीडिया का दमन किया, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले बोले.

सुनक के देश में यूएपीए जैसे क़ानून में न्यूनतम लोग बंद हैं जबकि भारत में विश्व के सबसे अधिक क़ैदी यूएपीए जैसे जनविरोधी-राष्ट्र विरोधी क़ानून के तहत मोदी शासन में बंद किए गए. भारत में तकरीबन साढ़े तेरह हज़ार से अधिक निर्दोष लोग बंद हैं.

सुनक ने कोरोना में पीरियड में हर नागरिक को सब्सीडी दी, मोदी ने किसी की आर्थिक मदद नहीं की क्योंकि हिन्दुत्व में जनता की मदद करना मुख्य नहीं है. मुख्य है – सत्ता हथियाना और दलाली खाना. सुनक को लोकतंत्र के लिए सांसदों की ख़रीद फ़रोख़्त और अपहरण, जोड़तोड़, होटलबाजी नहीं करनी पड़ी, पीएम मोदी आए दिन विधायकों-सांसदों की खरीद-फरोख्त, नेताओं की ख़रीद फ़रोख़्त करते रहते हैं.

मोदी चुनी हुई सरकारों को गिराते रहते हैं क्योंकि उन्हें लोकतंत्र और उसकी कार्यप्रणाली में विश्वास नहीं है. जबकि सुनक का लोकतंत्र में अटूट विश्वास है. सबसे बड़ी बात यह है सुनक बातूनी-भाषणबाज-असत्यवादी नहीं हैं. मोदी को भाषण और असत्यवाचन के अलावा कुछ नहीं आता. अहर्निश भाषण देना और असत्य बोलना उनके व्यक्तित्व का गुण है.

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ROHIT SHARMA

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