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अपनी नस्लों को गुलामी की बेड़ियों से बचाने का एक मात्र उपाय है – किसान आंदोलन की जीत

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अपनी नस्लों को गुलामी की बेड़ियों से बचाने का एक मात्र उपाय है - किसान आंदोलन की जीत

मौजूदा जारी किसान आंदोलन को नष्ट करने, बदनाम करने हेतु भ्रष्ट और कॉरपोरेट घरानों के नौकर मोदी-शाह गैंग्स का हमला जारी है, जिसका जोरदार जवाब किसान आंदोलन के नेताओं द्वारा बार-बार दिया जा रहा है. मोदी-शाह गैंग के तमाम दुश्प्रचार और हमले के बाद भी जब किसान आंदोलन को कमजोर नहीं किया जा सका तब उसने नई रणनीति के तहत वह संसद की एक स्थायी समिति के माध्यम से सरकार को कहा है कि तीनों कृषि कानूनों में से वह एक को ‘भाषा और भाव’ में लागू करे.

संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट शुक्रवार को लोकसभा में पेश की गई. इसमें कहा गया है कि –

समिति उम्मीद करती है कि हाल ही में लागू किया गया आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020, देश के कृषि क्षेत्र में अनछुए संसाधनों को खोलने में मददगार साबित होगा. इस कानून के जरिए कृषि क्षेत्र में बढ़े हुए निवेश तैयार करने में मदद मिलेगी, जिससे कृषि मार्केटिंग में न्यायपूर्ण और उत्पादक प्रतियोगिता होगी और किसानों की तनख्वाह में इजाफा होगा.

कमेटी ने इन फायदों को गिनाते हुए सरकार को आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 लागू करने का प्रस्ताव दिया है. और कहा है कि सरकार को बिना किसी रुकावट के इसे लागू करना चाहिए, ताकि किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़े अन्य स्टेकहोल्डरों को इस कानून में बताए गए फायदे जल्द से जल्द मिल सकें.

लोकसभा में पेश स्थायी समिति के इस रिपोर्ट के खिलाफ किसान नेताओं ने स्पष्ट चेतावनी जारी करते हुए अपना रुख साफ कर दिया है. सयुंक्त किसान मोर्चा के नेता दर्शन पाल की ओर से आंंदोलन के 115वेें  दिन, 20 मार्च 2021 को प्रेस नोट जारी करते हुए कहा है कि –

खाद्य, उपभोक्ता मामले व जन वितरण की स्टैंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘केंद्र सरकार आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020’ को लागू करे. हम इस संसदीय समिति के इस कदम की सख्त निंदा व विरोध करते हैं. सरकार के साथ बातचीत में व अन्य प्लेटफॉर्म पर यह बार-बार समझाया जा चुका है कि ये तीनों कानून ही गलत है व किसानों और आम नागरिकों का शोषण करने वाले हैं. यह कानून पूरी तरह से गरीब विरोधी है क्योंकि यह भोजन, जो मानव के अस्तित्व के लिए सबसे आवश्यक है, उसे आवश्यक वस्तु की सूची से हटाता है. यह असीमित निजी जमाखोरी और कालाबाजारी की अनुमति देता है.

ऐसा नहीं है कि केवल किसान संगठनों की ही ऐसी आशंका है बल्कि खुद संसद के स्थायी सदस्यों की रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहता है कि –

आलू, प्याज और दाल जैसी चीजें लोगों की रोजाना डाइट का हिस्सा हैं और लाखों लोग जिन्हें पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम का फायदा नहीं मिलता, उन्हें नए कानून के लागू होने के बाद बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए सरकार को सभी अहम वस्तुओं की कीमतों पर करीब से नजर रखनी चाहिए और कानून में मौजूद प्रावधानों को जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल करना चाहिए.

ऐसे में स्थायी समिति के रिपोर्ट खुद ही तीनों कृषि कानूनों को जनविरोधी-किसान विरोधी बता देता है. वहीं किसान आंदोलन के नेता दर्शन पाल अपने प्रेस नोट में बताते हैं कि –

यह पीडीएस (जनवितरण प्रणाली) सुविधाओं और इस तरह की अन्य संरचनाओं का खात्मा करेगा. यह खाद्यान्नों की सरकारी खरीद को नुकसान करेगा. यह खाद्य आवश्यकताओं के लिए 75 करोड़ लाभार्थियों को खुले बाजार में ढकेलेगा. इससे खाद्य बाजारों में कॉर्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा. यह पूरी तरह से अपमानजनक है कि कई राजनैतिक दल जो 3 कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए किसानों के आंदोलन को समर्थन देने का दावा कर रहे हैं, उन्होंने ECAA के कार्यान्वयन के लिए मतदान किया है. यह इन कानूनों पर इन दलों के बीच व्यापक सहमति को दर्शाता है. हम कमेटी से अपील करते है कि ये सिफारिशें वापस ले व सरकार तीनों कानूनों को सिरे से रद्द करें.

वहीं, किसान नेता दर्शन पाल आंदोलनकारी किसानों को बधाई देते हुए कहते हैं कि किसानों के भारी विरोध के बाद गेंहूं की खरीद से सम्बधी नए नियमों को सरकार ने वापस ले लिया है. अब गेहूं की खरीद पर वहीं पुरानी प्रणाली (जो 2020-21 में थी) चलती रहेगी. सयुंक्त किसान मोर्चा इसे किसानों की जीत मानते हुए सभी आन्दोलनकारियों को बधाई देता है.

दूसरी ओर तीनों किसान विरोधी कृषि कानूनों के वापस न होने की सूरत में संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में लिए गए निर्णय के आलोक में देश भर में आंदोलन को और तेज करते हुए निम्न घोषणाएं की हैं –

  1. 22 मार्च को देशभर में जिला स्तर पर जन संगठनों की बैठक की जाएगी, जिसमें 26 मार्च के पूर्ण भारत बंद को सफल बनाने की तैयारिया की जाएगी.
  2. 23 मार्च को शहीद दिवस पर देशभर से दिल्ली बोर्डर्स पर आ रहे नौजवानों का स्वागत किया जाएगा.
  3. 26 मार्च को पूर्ण रूप से भारत बंद किया जाएगा. सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर सभी सेवाएं बंद रखी जायेगी. सड़क व रेल परिवहन बन्द होगा. भारत बंद का प्रभाव दिल्ली के अंदर भी होगा.
  4. 28 मार्च को होलिका दहन में तीन कृषि कानूनों की प्रतियां जलाई जाएगी.
  5. 5 अप्रैल को FCI के देशभर में दफ्तरों पर सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक घेराव किया जाएगा.

दर्शन पाल कहते हैं कि 26 मार्च को भारत बंद को सफल बनाने के लिए कई संगठनों का समर्थन मिल रहा है. राष्ट्रीय स्तर के संगठनों के बाद अब राज्यवार संगठनों से मिलकर तैयारियां की जाएंगी. यह भारत बंद पूरी तरह से बंद होगा और दिल्ली के अंदर भी इमरजेंसी सेवाओं को छोड़कर सब कार्यक्रम बन्द रहेंगे. सयुंक्त किसान मोर्चा देश की जनता से अपील करता है कि भारत बंद का समर्थन करते हुए अपने अन्नदाता का सम्मान करें.

भाजपा के वैचारिक अभिभावक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि कृषि कानूनों से संबंधित आन्दोलन में मोदी सरकार व किसानों के बीच ‘राष्ट्रविरोधी और असामाजिक ताकतों’ ने गतिरोध पैदा किया हुआ है. हम आरएसएस के इस व्यवहार की कड़ी निंदा करते हैं. किसान आंदोलन पहले से ही शांतिपूर्ण रहा है व सरकार के साथ हर बातचीत में भाग लिया गया है. किसानों के प्रति इस तरह की सोच रखना किसानों का अपमान है. सरकार के घमंडी व्यवहार व भाजपा के विपक्षी होने के कारण किसानों का दिनों दिन अपमान हो रहा है. सरकार तीनों कृषि कानूनों को तुरंत रद्द करें व एमएसपी पर कानून बनाये.

वहीं, किसान नेता दर्शन पाल की ओर जारी प्रेस नोट में यह बताया गया है कि किस प्रकार समूचे देश में आंदोलन को तेज किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ‘अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा’ के नेतृत्व में तेलंगाना राज्य के निर्मल जिले में खानपुर क्षेत्र में आयोजित किसानों व आदिवासियों की रैली व जनसभा हुई. इसमें तीन खेती के कानूनों को रद्द कराने, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार एमएसपी का कानूनी अधिकार देने, आदिवासियों व किसानों को खेती की पोडू जमीन से विस्थापित ना करने तथा खेती करने के पट्टे वन अधिकार कानून 2006 के अनुसार देने की मांग उठाई गई.

बिहार में सासाराम जिले के नौहट्टा ब्लॉक मे मुजारा लहर आंदोलन की वर्षगांठ के अवसर पर 19 मार्च को अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के नेतृत्व में किसानों का प्रदर्शन हुआ. इसमें मांग की गई कि खेती के तीन काले कानून वापस हों, एमएसपी का कानून बने और बटाईदार किसानों को सभी अधिकार दिए जाए.

तीनों कृषि काूननों को रद्द करने, बिहार विधानसभा से उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित करने, एमएसपी को कानूनी दर्जा देने, एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली और भूमिहीन व बटाईदार किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का लाभ प्रदान करने सहित अन्य मांगों पर पटना के गेट पब्लिक लाइब्रेरी में अखिल भारतीय किसान महासभा व खेग्रामस के संयुक्त बैनर से आयोजित किसान-मजदूरों की महापंचायत में हजारों किसान-मजदूरों ने भागीदारी निभाई.

आज रायबरेली में किसान महापंचायत आयोजित की गई जिसमें किसान नेताओ ने आत्महत्या कर चुके किसानों का मुद्दा उठाया व इन परिवारों को आर्थिक मदद उपलब्ध कराने की मांग की. 22 मार्च को एक विशाल महापंचायत उत्तर प्रदेश के वाराणसी में आयोजित की जाएगी, जिसमें हज़ारों की संख्या में किसानों के पहुंचने की तैयारियां है.

उतराखण्ड से चली किसान मजदूर जागृति यात्रा गुरुद्वारा बनका फार्म से चलकर हरगांव, मोहाली होते हुए मैगलगंज पहुंची, जिसमें रास्ते भर में जगह-जगह अपार समूह ने जागृति मार्च का अभिवादन व स्वागत किया. रास्ते भर में गांव देहातों कस्बों में मंच से मजदूरों, मंझले व्यापारियों तथा किसानों को तीन काले कानूनों से अवगत करवाया गया.

मिट्टी सत्याग्रह यात्रा विकेन्द्रित रूप में 12 मार्च से 28 मार्च तक देश के कई राज्यों में जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, आसाम और पंजाब में जन संवाद अभियान चला रही है. मिट्टी सत्याग्रह यात्रा 30 मार्च को दांडी से शुरू होकर गुजरात के अन्य जिलों से होकर, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के कई जिलों से होकर 5 अप्रैल की सुबह 9 बजे शाहजहांपुर बॉर्डर पहुँचेंगी.

यात्रा के आखिरी दौर में पूरे देश की विकेन्द्रित यात्राएं किसान बॉर्डर पर अपने राज्य के मिट्टी कलश के साथ यात्रा में शामिल होंगे. शाहजहांपुर बॉर्डर से ये किसान टिकरी बॉर्डर जाएंगे. अप्रैल 6 की सुबह 9 बजे सिंघु बॉर्डर और शाम 4 बजे गाजीपुर बॉर्डर पहुँचेंगे. बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के सभी वरिष्ठ किसान साथी इस मिट्टी सत्याग्रह यात्रा का हिस्सा रहेंगे. पूरे भारत से आई मिट्टी किसान आंदोलन के शहीदों को समर्पित की जाएगी. बॉर्डर पर शहीद स्मारक बनाए जाएंगे. स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों की पुनर्स्थापित करने के विचार को आगे बढ़ाने के लिए किसान संकल्पित हैं.

संयुक्त होरता (कर्नाटक भर में कई किसान संगठनों का एक समन्वय), कर्नाटक राज्यसभा संघ (केआरआरएस) और हसीरू सेने के संयुक्त आयोजन में शिवमोग्गा जिले में आज एक महापंचायत हुई..इस महापंचायत में न सिर्फ किसान, बल्कि वे सब भी जो किसानों को समर्थन कर रहे हैं, भाग लेंगे. इसके द्वारा कर्नाटक भर में महापंचायतें आयोजित की जाएंगी. एसकेएम के वरिष्ठ नेताओं के साथ कर्नाटक के किसान 22 मार्च को बैंगलोर में विधानसभा मार्च करेंगे.

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि अपनी मांगों के समर्थन में आंदोलन के लिए किसान आंदोलनकारी किसी भी हालत में समझौता करने या पीछे हटने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि किसान समझते हैं कि इस आंदोलन में पराजय का सीधा मतलब आत्महत्या करना है. ऐसे में किसान आंदोलनकारी अपनी जीत चाहते हैं.

आंदोलन को तेज करने के लिए इससे भी आगे बढ़कर किसान नेता राकेश टिकैत कह चुके हैं कि यदि किसानों की मांगें नहीं मानी गई तो वह अदानी के गोदामों को ढ़ाहकर गौशाला बना देंगे.

यह कहना अन्यथा नहीं होगा कि हम चाहे किसान आंदोलन का समर्थन करें या विरोध, यदि यह किसान आंदोलन पराजित कर दिया गया तो हम और हमारी नस्लें अंबानी और अदानी की गुलाम नस्ल बनेगी. अपनी और अपनी नस्लों.को गुलामी की बेड़ियों से जकड़ने से बचाने का एक मात्र उपाय है – किसान आंदोलन की जीत.

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