जगदीश्वर चतुर्वेदी
दिल्ली में ऐसा क्या है कि दिल्ली की सड़कों के नाम हिन्दू राजाओं के नाम पर रखे जाएं ? सवाल यह है राजस्थान का नाम महाराणा प्रदेश क्यों नहीं रख देते ? या महाराणा प्रताप के नाम पर उस शहर का नाम रख दो जहां वे पैदा हुए थे ! संघियो !कुछ तो नॉनसेंस कम करो !! नॉनसेंस देश बना रहे हो ! सड़कों के नाम बदलने से देश नहीं बदलता. दिल्ली में हेडगेवार मार्ग है उससे हेडगेवार महान नहीं हो गए !
आरएसएस का विकास एजेण्डा खत्म हो चुका है. वे बटुकों के जरिए सड़कों के नाम बदलने, पदों पर मोहरे बिठाने से ज्यादा कोई काम नहीं कर पा रहे हैं. इतने बड़े देश के लिए कोई नीति नहीं ! कोई नया कार्यक्रम नहीं ! कोई नया विश्वविद्यालय नहीं ! सिर्फ जो पहले से है उसके नाम बदलो, पदों पर मोहरा बिठाओ ! सरकारी संपत्ति कारपोरेट घरानों को बेचो. यह चिरकुट मुहिम है ! जनविरोधी मुहिम है ! ये चीजें बताती हैं कि संघ के पास देश का कोई सपना नहीं है. वे जो काम कर रहे हैं उसको तो सरकार में गए बिना भी कर सकते थे. नाम बदलना और मोहरे बिठाना परिवर्तन नहीं है, परिवर्तन के नाम पर विध्वंस है.
पीएम मोदी की सफलता तब मानी जाएगी जब वे भारत के पूंजीपतियों को कम से कम एक-एक नई मौलिक वस्तु के आविष्कार करने या एक नया कारखाना खोलने के लिए तैयार कर लें ! चीन का आलम यह है कि उसने मेड इन चाइना के ब्रांड को निर्मित करने के लिए चीन के पीएम को विदेशों में भाषण देने नहीं भेजा, बल्कि देश में माहौल बनाया, नीतियां बनायीं और पूंजीपतियों की खुशामद की कि वे चीन आएं और पूंजीनिवेश करें. लेकिन पीएम मोदी तो भाषण से मेक इन इंडिया ब्रांड बनाना चाहते हैं.
मोदीजी भाषणों से ब्रांण्ड नहीं बनता, देश भी नहीं बनता ! श्रोताओं की वाह-वाह अधिकांश समय नकली होती है. असल है नीतियां और उनके लिए अनुकूल शांत माहौल लेकिन आपके सत्ता में आने के बाद तो सामाजिक अशांति बढ़ी है, किसानों-मजदूरों में असुरक्षा बढ़ी है, ऐसी स्थिति में बाहर से कोई भी पूंजीपति पूंजी निवेश करने नहीं आने वाला. मेक इन इंडिया के नारे को सफल बनाना है तो पहले आम जनता के जीवन में सुरक्षा, स्थिरता और शांति की स्थापना करो.
पीएम नरेन्द्र मोदी की देशसेवा और विदेश सेवा देखकर मन गदगद है ! देश में भाषणों में चौतरफा खुशहाली और रीयलसेंस में बदहाली लौट आयी है. विपक्ष का अंत कर दिया गया है. किसान-मजदूर काम पर लगे हैं. कहीं पर कोई आंदोलन नहीं है.
विदेश यात्राओं के दौरान आप्रवासी भारतीयों का मोदी प्रेम देखकर मन विष्णु-विष्णु हो गया है. आप्रवासी भारतीयों का मोदी-मोदी संकीर्तन सुनकर मन यही कह रहा है भारतीय भाईयो-बहिनो तुरंत देश लौटो, मोदी के भारत निर्माण प्रकल्प को पूरा करो, कोई भारतीय विदेश में न रहे, सब अपने देश में रहें ! लेकिन मोदी मोदी कहने वाला कोई व्यक्ति विदेश से लौटना नहीं चाहता, उलटे हर साल औसत अस्सी हजार मोदी भक्त भारत छोड़कर विदेश भाग रहे हैं.
भारत में विगत आठ साल से दूध-घी की नदियां बह रही हैं ! कोई खानेवाला नहीं है ! लाखों एकड़ जमीन कारखानों के लिए फालतू पड़ी है, कोई पैसा लगाने वाला नहीं है ! सारे चैनल मोदी मोदी कर रहे हैं, कोई वैविध्यपूर्ण कार्यक्रम देने वाला नहीं है ! गुजरात में तो पैसे के निवेश से लेकर आदमी के निवेश की अनंत संभावनाएं हैं, पर कोई निवेश नहीं. कुछ साल तो गुजारो गुजरात में !!
सच्चे मोदीभक्त हो तो लौटो भारत. यहां नौकरियां हैं, बैंक लोन है, कौशल के विकास के अनेक संस्थान हैं, वे तमाम अमीर हैं जो मोदी के साथ विदेशयात्रा में जा रहे हैं. मोदी के भाषणों में भारत में अब गरीबी नहीं है, आम लोग स्वस्थ रहते हैं, प्रदूषण नाम की चीज का स्वच्छता अभियान के द्वारा आठ साल में अंत कर दिया गया है !
सारे मंत्रालय ‘ईमानदारी’ से काम कर रहे हैं ! धड़ाधड़ प्रकल्पों को मंजूरी दी जा रही है ! कौशलपूर्ण भारतीयों का अकाल है ! नौकरियां हैं लेकिन नौकरी करने वाले लोग नहीं हैं ! कम से कम अब तो मान लो, पीएम मोदी आपके पास विदेश में जाकर अनुरोध कर रहे हैं, लौटो देश को, देखो पीएम मोदी बिना सोए काम कर रहे हैं ! हम आपको सोते हुए काम का अवसर देने का वायदा करते हैं ! एक बार भारत आकर तो देखो अच्छा लगेगा ! गुजरात से ही आरंभ करो, गुजरात को हब बनाओ और जीवन का आनंदमय समय दांडियां करते हुए गुजारो !
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