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मसखरों का खेल है चुनाव

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नक्सलवादियों ने डंके के चोट पर 1967 ई0 को घोषणा किया था कि भारत में चुनाव केवल मसखरों का खेल है, इसलिए इसका बहिष्कार करना चाहिए. नक्सलवादियों के इस घोषणा के साथ ही एक तरफ देश के तमाम शासक वर्ग जहां एकबारगी थर्रा उठा था वही देश की विशाल आबादी जागरूक भी हो गयी और हथियार उठा ली. इसका परिणाम यह हुआ शासक वर्गों ने जहां चुनाव का बहिष्कार करने वाले नक्सलबादियों को चुन-चुना का मारना शुरू कर दिया वहीं देश भर में चुनाव के इस मसखरेपन के खिलाफ जनता की सशस्त्र आवाजें भी उठने लगी. वहीं शासक वर्ग ने आम जनता के बीच चुनाव को स्थापित करने के लिए अरबों रूपये प्रचार मशीनरी पर झोंक डाले. चुनाव आयोग नामक संस्था को मजबूत किया और चुनावों को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट कर कई चरणों में पर्याप्त सैन्य बल के साथ करवाये जाने लगे. इस सब के बावजूद 50 प्रतिशत तक की आबादी ही चुनाव में भरोसा कर पायी और बांकी के लोग चुनाव को मसखरों का ही खेल समझती रही. वहीं मसखरों के इस खेल में चुनावी वामपंथी भी जोर-शोर से भिड़ गये और अर्श से फर्श पर औंधे मूंह जा गिरे.

चुनावों को भारत की बहुतायत जनता केवल मसखरों का खेल ही समझती है. भले ही वह नक्सलवादियों की तरह चुनाव का बहिष्कार करने की कोशिश न करें फिर भी मसखरों के इस खेल से अपनी पूरी दूरी बनाये रखती है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी का गठन ही इस विश्वास के साथ हुआ था कि चुनाव में जाकर जनता के बुनियादी समस्याओं को समाप्त किया जाये जैसा की भारत का शासक वर्ग जनता को भरोसा दिया करती थी. अपनी स्वच्छ छवि और न बिकने की प्रतिबद्धता के साथ अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में चुनाव लड़ने का प्रयास किया और कई चरणों में मिली सफलता-असफलता के उपरांत आज दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर बैठे हैं. अरविन्द केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के उपरांत उन्होंने जनता की बुनियादी जरूरतों रोटी, कपड़ा, मकान, दवा, शिक्षा आदि जैसे सवालों को लेकर बेहद संवेदनशीलता दिखायी और इन समस्याओं को दूर करने का यथासंभव प्रयास भी किया.

यहां इस बात को स्पष्ट करना समीचीन रहेगा कि भारतीय शासक वर्ग का एक मात्र उद्देश्य साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों की रक्षा करना है. अगर कोई इस मसखरी चुनाव के माध्यम से सत्ता के बीच आ भी जाती है तो उसे प्रथमतः शासक वर्ग के उद्देश्य से परिचित कराया जाता है और उसे इसी ‘‘महान’’ उद्देश्य के लिए प्रेरित भी किया जाता है. परन्तु अगर कोई साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों की रक्षा करने के विपरीत जनता की बुनियादी समस्याओं को हल करने का प्रयास करता है तो उसे राजनैतिक अथवा व्यक्तिक तौर पर खत्म करने का प्रयास शासक वर्गों के द्वारा किया जाता है. मालूम हो कि साम्राज्यवादी और दलाल पूंजीपतियों के हित जनता के शोषण पर टिका होता है. जितना ज्यादा जनता का शोषण तेज होगा, उतना ही ज्यादा साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों का रक्षा होगा और वह फल-फूल सकेगा. अगर जनता के शोषण को खत्म करने की कोशिश की जायेगी जो साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों के विपरीत है, तो तमाम शासक वर्ग साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों की रक्षा में गोलबंद हो जायेगी और उस नयी ताकत का बौद्धिक से लेकर सशस्त्र विरोध तब तक करेगी जब तक कि वह उसमें शामिल न जाये या पूरी तरह से खत्म न हो जाये. आज दिल्ली में सत्ता के एक छोटे से अंश को संभाले आम आदमी पार्टी के साथ यही हो रही है.

पहली बार सत्ता संभाले अरविन्द केजरीवाल ने जिस प्रकार भारतीय दलाल पूंजीपति अंबानी और अदानी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज किया था और दर्ज करते ही सारे शासक वर्ग एक जुट होकर आम आदमी पार्टी के सरकार पर टुट पड़ा और उसे गिरा दिया, उपरोक्त बातों को ही सही साबित करता है. दुबारा दिल्ली की सत्ता पर आये आम आदमी पार्टी ने जब अपने उद्देश्य में बिना कोई बदलाव किये फिर से आम जनता की सेवा में खुद को लगा दिया तब इससे बौखलाये साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों की रक्षा में तमाम शासक वर्गों ने इसके खिलाफ अपने तमाम अस्त्र-शस्त्र छोड़ दिये और एक-एक करके उसके विधायकों को जेल में डाला जाने लगा. उसको प्रताड़ित किया जाने लगा. उसे बदनाम करने के लिए छोटे से छोटे मामले तक में फंसाया जाने लगा. जबकि उससे ज्यादा बदनाम तत्व शासक वर्ग के हितैषियों में शामिल है, जिसको उल्टे महिमामंडित किया जाता है. इस सबके बावजूद जब आम आदमी की प्रतिष्ठा को जनता के बीच जब नहीं गिराया जा सका और उसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती जाने लगी तो साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों का रक्षक हैरान-परेशान यह शासक वर्ग फिर से अपने परखे तरीके चुनाव के मसखरेपन को उभारा. इस बार यह साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों के सबसे वफादार रक्षक भारतीय जनता पार्टी के लिए ई0वी0एम0 मशीन के साथ छेड़छाड़ कर आम आदमी पार्टी की बढ़त को रोकने का प्रयास के रूप में थी, जिसमें वह काफी हद तक कामयाब भी रही. पंजाब चुनाव और उत्तर प्रदेश चुनाव में ई0वी0एम0 के साथ छेड़छाड़ कर आम आदमी पार्टी के बढ़ते हौसले को रोकने का सफल प्रयास भी किया गया.

इस सबसे इतर 11 हजार करोड़ रूपये के भारी भरकम राशि पर मीडिया संस्थानों को खरीद कर आम आदमी पार्टी के खिलाफ मिथ्या दुश्प्रचार में लगा दिया. कभी पूरा न हो पाने वाला सपना मीडिया के माध्यम से जनता के बीच प्रचारित किया जाने लगा. शिक्षित जनता के विरोध को भांपते हुए शिक्षा के स्तर को गिराने या फिर बंद कराने का प्रयास किया गया, जिसमें जे0एन0यू0 जैसी संस्थानों को बदनाम करने से लेकर सीट कटौती तक की साजिशें की गई. दलित-पिछड़े तबकों के छात्र शिक्षा हासिल न कर सके इसके लिए आरक्षण को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है और इसके खिलाफ मीडिया संस्थान के माध्यम से पूरजोर मुहिम चलायी जा रही है. जनता के वास्तविक आवाज को दबाने के लिए सोशल मीडिया तक पर अंकुश लगाये जा रहे हैं और विरोधियों को निशाना बनाया जा रहा है ताकि साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों की रक्षा और आम जनता के अबाध लूट में कोई बाधा न बन सके.

दुर्भाग्यवश आम जनता का एक हिस्सा भी साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों की रक्षक शासक वर्गों के द्वारा लगातार चलाये जा रहे भयानक दुश्प्रचार का शिकार बन रही है और अपने हित में काम करने वाली आम आदमी पार्टी को ही अपना दुश्मन मान ले रही है. ऐसे में आम जनता कि हित की बात करने वाली आम आदमी पार्टी कितना आगे जा पायेगी यह तो सवाल है ही, इससे भी बड़ा सवाल है कि आखिर हमारे देश की टुकड़ों में बंटी जनता कब तक साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों में अपने स्वत्व का बलिदान करती रहेगी और खूनी शोषण का पोषण करती रहेगी ? साम्राज्यवादी ताकतों और भारतीय दलाल पूंजीपतियों की पूंजी के हितों के सामने आत्मसर्मपण की मुद्रा में खड़ी चुनावी वामपंथियों के बाद अगर कोई इस खूनी शोषण से चुनाव के माध्यम से छुटकारा दिला सकता है तो वह आम आदमी पार्टी ही है, वरना शोषण की इस खूंरेजी वारदात को भला कौन रोक सकता है ? भारतीय जनता के सामने आज यह सबसे बड़ा सवाल मुंह बाये खड़ी है.

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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One Comment

  1. S. Chatterjee

    April 14, 2017 at 8:20 am

    सटीक विश्लेषण

    Reply

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