नई दिल्ली में एम0सी0डी0 द्वारा विगत 20 साल पहले से बनाये जा रहे एक पुल जो 70 करोड़ से बढ़कर अब 700 करोड़ की हो गयी है परन्तु अभी तक अधूरी है, का खबर आज देखने को मिला. ऐसे में एक परिचित के द्वारा वर्षों पूर्व की एक बातचीत याद आ गई.
वे दिल्ली में एक ठीकेदार के अधीन काम करने गये. एक दिन अपनी व्यथा बताते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं जब काम पर गया तो सोचा अधिक काम करूंगा तो ठीकेदार खुश होगा और प्रोत्साहन देगा. अपनी इसी सोच के कारण मैंने ईंट जोराई का काम खूब जोर-शोर से किया और शाम होते-होते मैंने दूसरों की तुलना में दुगुना ईंट जोड़ने का काम किया. शाम को जब ठीकेदार आया तो जोराई को देखकर बहुत नाराज हुआ और बोला, ‘किसने जोड़ा है इसे ?’ मैंने जब बताया तो उसने कहा, ‘आज पहला दिन है इसीलिए छोड़ रहा हूं. अगर दुबारा ऐसा किया तो निकाल कर भगा देंगे.’
हक्का-बक्का मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था. तब उसने कहा, ‘अगर इतना तेजी से जोड़ाई करोगे तो काम जल्दी खत्म हो जायेगा. फिर बिल भी कम का ही बनेगा. इसलिए रोज इतना (एक संख्या बताया) ही काम करना है. इससे अधिक नहीं. और अभी जितना अधिक जोड़ाई का काम किया है उसे तोड़ कर गिराओ.’ और फिर मैंने उस अतिरिक्त काम को तोड़कर गिराया तब घर गया.’’
उनकी यह पीड़ा दिल्ली सहित पूरे देश भर में चल रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए काफी है कि आखिर क्यों एक पुल या कोई भवन या अन्य सरकारी कार्य होने में सालों लग जाते हैं, फिर भी पूरा नहीं हो पाता. इस तरह सरकारी पैसा का भारी लूट और बंदरबांट अनेकों प्रकार से होता है, जिसमें एक उदाहरण यह भी है.
आखिर आज जब दो सालों से अरविन्द केजरीवाल की सरकार दिल्ली में कार्यरत् है और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा कर कार्य की गति को बढ़ाया जा रहा है तब आश्चर्य नहीं कि भ्रष्टाचार-मुक्त सारे कार्य क्यों कम लागत में और जल्दी पूरे हो रहे हैं ?
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