भारत धर्मान्ध नौटंकीबाजों का देश है. अर्श से खासकर सुप्रीम कोर्ट का जज लेकर फर्श तक ऐसे धर्मान्ध लोग भरे पड़े हैं. मामला हिजाब पर है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की खंडपीठ की खण्ड-खण्ड आदेश आया, फलतः इस खण्डित राय के विकल्प में अब मोदी के ऐजेंट यू. यू. ललित के नेतृत्व में अगली पांच सदस्यीय पीठ बैठेगी और उसमें मोदी के सम्पूर्ण विचारधारा की झलक दिखेगी. मामला इस प्रकार है.
कर्नाटक सरकार ने 5 फरवरी को राज्य के शिक्षण संस्थानों में हिजाब को बैन कर दिया था. ये विवाद इसी साल जनवरी में तब शुरू हुआ था जब एक छात्रा हिजाब पहनकर क्लासरूम जाना चाह रही थी. विद्यालय प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी. इससे बाद विवाद होने पर कर्नाटक में प्रशासन को कुछ दिनों के लिए शिक्षण संस्थाओं को बंद करना पड़ा.
इसके बाद राज्य सरकार ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब को बैन कर दिया. इसके बाद ये मामला हाई कोर्ट में गया. जहां हाई कोर्ट ने कहा कि हिजाब इस्लाम का आवश्यक हिस्सा नहीं है. अदालत ने हिजाब बैन करने के राज्य सरकार के आदेश को भी सही ठहराया. कर्नाटक हाई कोर्ट के इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में बंटा हुआ फैसला आया है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में जहां जस्टिस धूलिया ने हिजाब पर बैन को गलत करार दिया तो जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब पर बैन को जायज ठहराया. अब सीजेआई यूयू ललित इस पर पांच सदस्यीय कोर्ट में विचार करेगा. नोट किया जाये – ‘कोर्ट विचार करेगा.’
हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का खण्डित फैसला यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भारत में धार्मिक पोशाकों को लेकर कट्टरपंथियों (हिन्दू और मुस्लिम दोनों) अपनी संकीर्णता से बाहर नहीं निकल पाया है. कुख्यात आरएसएस ने हिन्दू कट्टरता को लेकर जहां दुनियाभर में भारत को बदनाम किया है तो वहीं मुस्लिम कट्टरपंथियों ने भी कुछ कम नहीं किया है.
ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं का बहादुराना संघर्ष
भारत में जहां एक ओर मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनने के लिए मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ कदम मिलाकर चल रही है तो वहीं मुस्लिम बहुल देश ईरान में मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरुद्ध हिजाब के खिलाफ अपनी जान दे रही है. प्राप्त खबर के अनुसार ईरान में 16 सितंबर से हिजाब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है. इस संघर्ष में अब महिलाओं के साथ पुरुष भी प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं. ये प्रदर्शन 15 शहरों में फैल गया है.
वहीं, पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें भी हो रही हैं. आंदोलन कर रहे लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाईं और अब तक मरने वालों की तादाद बढ़कर 31 हो गई है जबकि सैकड़ों लोग घायल भी हुए हैं. यह मामला 13 सितंबर को तब शुरू हुआ जब ईरान की मॉरल पुलिस ने 22 साल की युवती माशा अमीनी को हिजाब न पहनने के आरोप में गिरफ्तार किया और 3 दिन बाद यानी 16 सितंबर को उसकी लाश परिवार को सौंपी गई. यह मामला सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचा और हिजाब के खिलाफ लोगों, खासकर महिलाओं ने हल्ला बोल दिया.
माशा अमीनी के पिता अमजद अमीनी ने BBC से बातचीत में कहा कि पुलिस और सरकार सिर्फ झूठ बोल रही है. मैं बेटी की जान बख्शने के लिए उनके सामने गिड़गिड़ाता रहा. जब मैंने उसका शव देखा तो वो पूरी तरह कवर था. सिर्फ चेहरा और पैर नजर आए. पैरों पर भी चोट के निशान थे. ह्यूमन राइट्स वॉच की न्यूयॉर्क में रहने वाली हादी घामिनी कहती हैं- 2019 से मॉरल पुलिसिंग बेहद सख्त हो गई. इसके हजारों एजेंट्स सादे कपड़ों में भी घूमते रहते हैं. न जाने कितनी महिलाओं को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया, उन्हें टॉर्चर किया गया.
अब हिजाब जलाकर महिलाएं प्रदर्शन कर रही है. वे लंबे वक्त से यहां के धार्मिक कानून के खिलाफ आवाज उठा रही हैं. खास बात यह है कि इस बार इन प्रदर्शनों में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी नजर आ रहे हैं. सैकड़ों पुरुषों को भी गिरफ्तार किया जा चुका है. ईरानी महिलाओं ने 20 सितंबर को देश में एंटी हिजाब कैंपेन चलाया और बिना हिजाब के वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट की. इसके बाद दूसरे देशों में रह रही ईरानी महिलाओं ने भी अपने-अपने स्तर पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए.